वकीलों के गलत बयान देने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज: कहा- हमारा भरोसा हिल रहा, रोज 80 केस लिस्ट होते हैं, हर पेज से गुजरना मुश्किल

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नई दिल्ली32 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हर मामले को सावधानीपूर्वक देखने का प्रयास किया जाता है। - Dainik Bhaskar

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हर मामले को सावधानीपूर्वक देखने का प्रयास किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की कार्यशैली को लेकर नाराजगी जताई है। 10 सितंबर के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि दोषियों को रिहाई में छूट दिलाने के लिए वकील झूठ बोलते हैं। इससे हमारी आस्था डगमगा जाती है।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि वकील बार-बार अदालत के सामने और दोषियों की समयपूर्व रिहाई के लिए दायर याचिकाओं में झूठे बयान पेश करते हैं। पिछले तीन सप्ताह में हमें ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जिनमें याचिका में झूठे बयान दिए गए हैं।

बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हर रोज हर बेंच के सामने 60 से 80 मामले लिस्ट होते हैं। जज के लिए अदालत में लिस्ट हर एक मामले के हर एक पेज पढ़ना संभव नहीं होता है। हालांकि, सभी मामले को बहुत ही सावधानीपूर्वक देखने का प्रयास किया जाता है।

हमारी प्रणाली विश्वास पर काम करती है

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हमारी प्रणाली विश्वास पर काम करती है। जब हम मामलों की सुनवाई करते हैं तो हम बार के सदस्यों पर भरोसा करते हैं। लेकिन जब हम इस तरह के मामलों का सामना करते हैं, तो हमारा विश्वास डगमगा जाता है। इस अदालत में बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिनमें स्थायी छूट न दिए जाने की शिकायत की गई हैं। पिछले तीन सप्ताह में यह छठा या सातवां मामला है, जिनमें याचिकाओं में साफ तौर पर झूठे बयान दिए गए हैं।

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बेंच ने कहा- याचिका में झूठ बोल गया, अदालत में झूठे बयान दिए गए

  • पहला मामला- बेंच ने कहा- रिहाई में छूट की मांग के लिए दायर रिट याचिका में झूठे बयान दिए गए। अदालत के सामने भी झूठा बयान दिया गया। जो 19 जुलाई 2024 को दर्ज किया गया था। चिकाकर्ताओं के तत्कालीन वकील के जेल अधिकारियों को 15 जुलाई 2024 के भेजे ईमेल में झूठे बयान दोहराए थे। बेंच ने कहा कि हमें इसके बारे में जानकारी थी। लेकिन 19 जुलाई 2024 को झूठा बयान दिया गया कि सभी याचिकाकर्ताओं (दोषियों) की फरलो की अवधि समाप्त नहीं हुई है।
  • दूसरा मामला- बेंच ने कहा- एक मामले में रिट याचिका इस आधार पर आगे बढ़ी कि सभी चार याचिकाकर्ताओं ने बिना छूट के 14 साल की वास्तविक कारावास की सजा काटी है। दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में बताया है कि चार में से दो कैदियों ने छूट का लाभ उठाने के लिए आवश्यक 14 साल की कारावास की सजा पूरी नहीं की। इस प्रकार रिट याचिका में एक झूठा बयान दिया गया कि सभी चार याचिकाकर्ताओं ने वास्तव में 14 साल की कारावास की सजा काटी। याचिकाकर्ताओं को अलग-अलग मामलों में अलग-अलग अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है, जैसा कि नाममात्र रोल से देखा जा सकता है।

पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वो चार याचिकाकर्ताओं में से एक के मामले पर विचार करे, जिसने लागू पॉलिसी के मुताबिक जेल में 14 साल की सजा काट ली है। इसके अलावा दो अन्य याचिकायों को राहत देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने जेल में जरूरी 14 साल की सजा पूरी नहीं की है।

पीठ ने कहा कि चौथे दोषी को हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देनी होगी। क्योंकि सरकार ने उसे छूट देने से इनकार किया है। पीठ ने इन निर्देशों के साथ चारों दोषियों की छूट के लिए दायर याचिका खारिज कर दी।

इसी तरह रिहाई में छूट से संबंधित एक और मामले में बेंच ने पाया कि जिन अपराधों में पांचों आरोपियों को दोषी ठहराया गया है, उनके संबंध में गलत बयान दिए गए। उनकी याचिका में कहा गया कि पांचों को हत्या के आरोप में दोषी पाया गया है।

सुनवाई में अदालत को पता चला कि दो आरोपियों पर और भी केस हैं। एक को आर्म्ड लाइसेंस के तहत दोषी ठहराया गया था। दूसरे को फिरौती के लिए अपहरण और सबूत नष्ट करने के अपराध के लिए भी दोषी ठहराया गया था।

पीठ ने कहा कि समय से पूर्व रिहाई के लिए रिट की मांग करने वाली याचिका में अपराध का नेचर पर विचार होना चाहिए। पीठ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह छूट के लिए उनके मामलों पर गौर करे और तदनुसार आदेश पारित करे।

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