मणिपुर हिंसा में 175 की मौत, 96 शव लावारिस मिले: अब तक 5668 हथियार लूटे गए जिसमें से 1329 रिकवर

इंफाल4 मिनट पहले

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यह तस्वीरें मणिपुर में अलग-अलग घटनाओं से जुड़ी हैं। राज्य में पिछले चार महीनों से हिंसा जारी है। - Dainik Bhaskar

यह तस्वीरें मणिपुर में अलग-अलग घटनाओं से जुड़ी हैं। राज्य में पिछले चार महीनों से हिंसा जारी है।

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच 3 मई से हो रही सामुदायिक हिंसा में अब तक 175 लोगों की मौत हो चुकी हैं। राज्य में 1108 घायल, 32 अभी भी लापता है जबकि 96 लावारिस लाशें शवगृह में मिली।

इंफाल में शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेस के दौरान IGP(ऑपरेशन) आइके मुहवा ने ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मणिपुर के इस चुनौतीपूर्ण समय में हम नागरिकों को विश्वास दिलाते है कि पुलिस, सुरक्षा बल और राज्य सरकार 24 घंटे उनकी सुरक्षा में लगी हुई है।

सितंबर में अब तक 4 बार हो चुकी हिंसा…

6 सितंबर : हजारों प्रदर्शनकारी बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ इखाई में इकट्ठा हुए थे। वे सभी तोरबुंग में अपने सूने पड़े घरों तक पहुंचने के लिए सेना के बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद एहतियात के तौर पर मणिपुर के सभी पांच घाटी जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया था।

7 सितंबर : सितंबर महीने में मणिपुर में अब तक तीन बार हिंसा की खबर सामने आई है। पहली घटना मणिपुर के तेंगनौपाल जिले के पैलेल में ​​​​​​हुई थी। यहां फायरिंग की दो अलग-अलग घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई थी वहीं 50 अन्य घायल हो गए। घायलों में सेना का एक मेजर भी शामिल है।

12 सितंबर : दूसरी घटना 12 सितंबर को हुई। कांगचुप इलाके में कुकी-जो समुदाय के गांव के तीन लोगों की हत्या एंबुश लगाकर कर दी गई थी।

13 सितंबर : चुराचांदपुर जिले में एक पुलिस सब इंस्पेक्टर की हत्या कर दी गई। मृतक सब इंस्पेक्टर की पहचान ओनखोमांग हाओकिप (45) के तौर पर की गई है। अधिकारियों के मुताबिक जब हमला हुआ तब ये सब इंस्पेक्टर हाओकिप एन चिंगफेई में तैनात थे। इसी हमले में पास में ही खड़े दो और लोगों को भी गोली लगी है। अभी तक उनकी पहचान नहीं हो सकी है।

भीड़ को हटाने के लिए असम राइफल्स के जवानों ने आंसू गैस के गोले दागे।

भीड़ को हटाने के लिए असम राइफल्स के जवानों ने आंसू गैस के गोले दागे।

4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इम्फाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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मणिपुर में असम राइफल्स के खिलाफ आंदोलन,जवानों को हटाने की मांग

असम राइफल्स को हटाने की मांग को लेकर मैतेई महिलाओं ने असहयोग आंदोलन शुरू किया है। खुद को मैतेई बताने वाली महिलाओं के एक संगठन ने पहाड़ी जिलों के उलट घाटी जिलों में सेंट्रल फोर्सेस, खासतौर से असम राइफल्स को वापस बुलाने की मांग को लेकर घाटी में केंद्र सरकार के संस्थानों पर ताले लगाना शुरू कर दिया है।

गरुवार को कुछ महिलाओं ने इंफाल पढ़े पूरी खबर…

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