भास्कर ओपिनियन: हरियाणा में कांग्रेस और आप के बीच का तनाव भाजपा के लिए लाभकारी

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6 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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हरियाणा में पहलवानों को अपने पक्ष में करके जीत जैसा उत्साह मना रही कांग्रेस पार्टी को भी झटका लग ही गया। चुनाव पूर्व समझौते की जो बात कांग्रेस और आप पार्टी में चल रही थी, वह टूट चुकी है। कुल मिलाकर भाजपा को इसका फायदा होने वाला है।

दरअसल, आप पार्टी और कांग्रेस के वोट बैंक में ज़्यादा अंतर नहीं है। लगभग एक जैसा ही है। सीधा सा मतलब है कि आप पार्टी अब अपने दम पर सभी नब्बे सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उसे जितने भी वोट मिलेंगे वे कांग्रेस के खाते के ही होंगे। यही भाजपा चाहती थी।

दरअसल, कांग्रेस की निर्णय क्षमता में कई तरह की दिक़्क़तें हैं जो ऐसे समय में सामने आ ही जाती है। आख़िर आप पार्टी कुल नब्बे में से दस सीटें ही तो माँग रही थी। क्या फ़र्क़ पड़ता अगर कांग्रेस नब्बे की बजाय अस्सी सीटों पर ही लड़ती?

कहा जाता है कि कांग्रेस की हरियाणा ब्रिगेड आप से समझौता करने के पक्ष में नहीं थी। अब भी नही है। यह दूरदर्शिता नहीं दिखाई गई कि आप प्रत्याशी को पच्चीस-पचास वोट भी मिले तो वे कांग्रेस के खाते के ही होंगे। हो सकता है राज्य कांग्रेस के अपने दंभ रहे हों। वहाँ आप पार्टी से उनकी समझ अलग रही हो लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को क्या हो गया है?

हो सकता है हरियाणा में कांग्रेस जीत जाए, लेकिन आप पार्टी का साथ होता तो उनकी जीत और बड़ी हो सकती थी! मगर कांग्रेस हारती है तो आप पार्टी का इसमें बड़ा योगदान होगा। आख़िरकार कांग्रेस से मात्र दस सीटें अपने लिए माँग रही आप पार्टी ने राज्य में सोमवार शाम को बीस प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी।

यह सूची दोनों पार्टियों के बीच चल रही समझौता वार्ता का विराम समझा जा रहा है। हो सकता है आप पार्टी ने प्रत्याशियों की सूची जारी करके कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई हो, फिर भी बात बनना अब मुश्किल ही लग रहा है।

कहने को इंडिया गठबंधन है लेकिन जब आपसी हितों के टकराव से ही गठबंधन में शामिल दल नहीं उबर पा रहे हैं तो भाजपा से मुक़ाबले का दंभ कैसे भर सकते हैं? फिर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के उस नारे का क्या हुआ जो पहलवानों के कांग्रेस ज्वाइन करने के दिन उन्होंने जोर- शोर से लगाया था – “चक दे इंडिया, चक दे हरियाणा”।

आप पार्टी से अगर समझौता नहीं हो पाता है जिसकी संभावना अब क्षीण लग रही है तो काहे का चक दे इंडिया? क्योंकि हरियाणा में इंडिया गठबंधन का तो कोई वजूद रह ही नहीं जाएगा! वैसे कम से कम इस माहौल में अब कांग्रेस यह भी नहीं कह सकती कि आप पार्टी आख़िरकार भाजपा की बी पार्टी है।