भास्कर ओपिनियन: संविधान रक्षा मुहिम का जवाब है “संविधान हत्या दिवस”

14 घंटे पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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संविधान की रक्षा को लेकर लोकसभा चुनाव के पहले से ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल एक तरह का आंदोलन चलाए हुए हैं। नई सरकार के गठन के बाद पहले संसद सत्र में भी विपक्षी दल के सदस्य संविधान की प्रति लेकर सदन में पहुँचे थे।

संविधान की प्रति हाथों में लेकर ही विपक्षी सदस्यों ने सांसद पद की शपथ भी ली थी। सत्ता पक्ष को विपक्ष के इस शस्त्र की सचमुच दिव्य काट मिल गई।

उसने इमरजेंसी का मुद्दा उठाया। कहा- इमरजेंसी लगाकर और इमरजेंसी के दौरान संविधान की बुरी तरह हत्या करने वाले लोग संविधान की रक्षा की दुहाई न ही दें तो अच्छा रहेगा।

बात पुरानी है, लेकिन यह सही है कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर संविधान के तहत आम आदमी को प्रदत्त तमाम अधिकारों को कुचल डाला था।

यह फोटो 7 जून का है। NDA के संसदीय दल की मीटिंग के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने पुराने संसद भवन में रखे गए संविधान को नमन किया।

यह फोटो 7 जून का है। NDA के संसदीय दल की मीटिंग के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने पुराने संसद भवन में रखे गए संविधान को नमन किया।

जिसको चाहे सरकार जेल में ठूँस रही थी। तमाम विपक्षी नेता जेलों में बंद कर दिए गए थे। मीडिया में वे ही खबरें आती थीं जो सरकार की वाहवाही से भरी होती थीं। बाक़ी खबरों के प्रकाशन या प्रसारण का मीडिया को अधिकार नहीं था।

कुल मिलाकर सत्ता पक्ष ने विपक्ष के संविधान बचाओ आंदोलन या मुहिम की तोड़ निकाली और आखिरकार शुक्रवार को एक नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया, जिसमें 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” घोषित कर दिया गया।

सरकार का कहना है कि इस दिन को याद करके लोगों को और आने वाली पीढ़ी को यह पता चलेगा कि 25 जून 1975 को आख़िर क्या हुआ था और भारत के संविधान को किस तरह कुचला गया था।

इधर कांग्रेस का कहना है कि सुर्ख़ियाँ बटोरने का सत्ता पक्ष का ये एक और प्रयास है। कांग्रेस का कहना है कि आपातकाल तो पिछले दस वर्षों से इस सरकार ने भी लगा रखा है। फ़र्क़ बस इतना सा है कि यह अघोषित आपातकाल है।

राहुल ने 25 जून को लोकसभा में संविधान की कॉपी लेकर सांसद की शपथ ली थी।

राहुल ने 25 जून को लोकसभा में संविधान की कॉपी लेकर सांसद की शपथ ली थी।

खैर, संविधान की रक्षा और उसे तोड़ने- मरोड़ने की विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच की यह लड़ाई लंबे समय से चल रही है। आगे भी चलती रहेगी। इसका कोई सिरा फ़िलहाल नज़र नहीं आता।

दोनों पक्ष अपनी- अपनी जगह सही हैं। ये बात सही है कि इमरजेंसी के सवाल का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है। हो भी नहीं सकता, क्योंकि वह दौर ही ऐसा था कि जिसने भोगा, वही जानता है।

इसी इमरजेंसी की वजह से पहली बार कांग्रेस को केंद्र की सत्ता खोनी पड़ी थी।

जहां तक सत्ता पक्ष का सवाल है, उसने संविधान को तोड़ा- मरोड़ा तो नहीं ही है। कुछ छोटे नेताओं के बयानों को छोड़ दिया जाए तो सरकार ने ऐसा कोई कदम तो फिलहाल नहीं उठाया जिससे संविधान की आत्मा को चोट पहुँचे।