भास्कर ओपिनियन- राजनीति: गहलोत की निगाहें कहीं और निशाने पर कोई और ही

13 घंटे पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

  • कॉपी लिंक

बीच चुनाव में भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मान नहीं रहे हैं। सचिन पायलट से मतभेद अब नहीं रहे, यह बात कहने में भी वे राजनीतिक दांव- पेंच करना नहीं भूले। पायलट के साथ मानेसर गए लोगों के सभी टिकट क्लियर हो चुके हैं। मैंने किसी एक पर भी आपत्ति नहीं जताई।

आपत्ति नहीं जताने की बात कहकर वे ये भी कहना चाहते हैं कि ये सभी विधायक बग़ावत की कोशिश में शामिल हैं और इनके लिए खुद को त्याग करने वाले राजनेताओं में भी शुमार करना चाहते हैं।

दिल्ली की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर भी परोक्ष रूप से निशाना ही साधा। उन्होंने कहा मेरी वजह से वसुंधरा जी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। मेरे मुँह से तो गलती से निकल गया था कि हमारी सरकार को बचाने के लिए वसुंधरा जी का धन्यवाद। यह एक स्वस्थ परम्परा थी जिसके तहत कई पुराने नेता मानते थे कि किसी दल की सरकार गिराना ठीक नहीं।

दरअसल, वसुंधरा राजे के बारे में बार- बार इस तरह के बयान देकर वे वही करना चाहते हैं जो पहले से करते रहे हैं।

उन्हें पता है कि भाजपा उनके कहने पर तो निर्णय लेगी नहीं, फिर इस तरह बार- बार वसुंधरा जी की प्रशंसा करके वे उन्हीं के लिए गड्ढा खोदने का काम करते हैं। जानते हैं वसुंधरा राजे मुख्य धारा में लौट आईं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

गहलोत जानते हैं कि वसुंधरा राजे मुख्य धारा में लौट आईं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

गहलोत जानते हैं कि वसुंधरा राजे मुख्य धारा में लौट आईं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

तीसरी बात गहलोत ने फिर से साफ़ कर दी है कि कांग्रेस जीती तो मुख्यमंत्री तो वही बनेंगे। बात कही ज़रूर कुछ अलग अंदाज में, लेकिन उसका मतलब कुछ ऐसा ही समझा जा रहा है। गहलोत ने कहा मैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहता हूँ। ये पद मुझे नहीं छोड़ता। … और छोड़ेगा भी नहीं!

हालाँकि, राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशियों की अब तक एक भी लिस्ट नहीं आई है। अगर गहलोत कह रहे हैं कि पायलट के साथ मानेसर गए सभी लोगों के टिकट क्लियर हो चुके हैं तो वही सही होंगे। वे कह रहे हैं कि इनमें से किसी के भी नाम पर उन्होंने आपत्ति नहीं की तो यह बात भी सही ही होगी।

ये बात और है कि दोनों नेताओं गहलोत और पायलट ने निश्चित रूप से अपनी- अपनी सूची दी होगी और एक – दूसरे की सूची पर निर्णय का अधिकार इन नेताओं के पास नहीं, बल्कि सीधे आलाकमान के पास रहा होगा। क्या हुआ, कैसे हुआ और क्यों हुआ, यह तो सूची सामने आने के बाद ही पता चल पाएगा।