भास्कर ओपिनियन: नीट को क्लीन करने के लिए परीक्षा रद्द करना ही सही रास्ता

17 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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नीट परीक्षा में गड़बड़ी के कई क़िस्से सामने आ चुके हैं। पेपर लीक की कहानियाँ भी छन छनकर बाहर आ रही हैं लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है।

शिक्षामंत्री का ताज़ा बयान है कि बिहार से गड़बड़ी की शिकायत मिली है लेकिन फिलहाल नीट रद्द नहीं होगी। तीस लाख बच्चों के भविष्य का सवाल है। एक तरफ़ मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और दूसरी तरफ बिहार से परीक्षा देने वाले एक छात्र ने क़बूल किया है कि उसे कोटा से

बिहार बुलाकर प्रश्न दिए गए थे। उनके उत्तर भी रटवाए गए थे और हुबहू वही प्रश्न परीक्षा में आए थे। यह सब क़बूलनामा पुलिस के सामने का है। लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है। हालाँकि इसमें सरकार का कोई क़सूर नहीं है।

परीक्षा कराने वाली संस्था यानी एनटीए की गलती है और ये ग़लतियाँ मानने की बजाय एनटीए द्वारा कई दिनों तक बहाने बनाए जाते रहे। उस संस्था को दोषी बताकर लाखों बच्चों की मदद करने की बजाय सरकार अड़ी हुई है परीक्षा रद्द करने से बचने पर। ऊपर से सौ से डेढ़ सौ तक ग्रेस अंक तक देने का भी कोई गणित एनटीए अब तक समझा नहीं सका है।

सरकार भी यह कहानी अब तक सामने नहीं ला पाई है जबकि सरकार के लिए तो यह सुनहरा मौक़ा है। लाखों बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए तुरंत आगे आकर दोबारा नीट परीक्षा करानी चाहिए और उसमें गड़बड़ी नहीं हो सके, यह सुनिश्चित भी करना चाहिए। नई केंद्र सरकार को सबसेपहला बड़ा काम बच्चों के भविष्य को संवारने के साथ ही शुरू करना चाहिए।

अगर ऐसा किया जाता है तो सरकार लाखों परिवारों का भला कर पाएगी और निष्पक्ष परीक्षा का मार्ग भी प्रशस्त हो सकेगा। आख़िर परीक्षाओं की विश्वसनीयता ही ख़तरे में पड़ी रहेगी तो पास हुए याउसमें सफल हुए बच्चों की क़ाबिलियत पर कोई कैसे भरोसा करेगा? फिर यह तो डॉक्टर के प्रोफ़ेशन से संबंधित परीक्षा है।

इसमें गड़बड़ी का मतलब लोगों के सबसे क़ीमती स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना होगा। कोविड के बाद देश के ज़्यादातर लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग हो गए हैं। इसलिए देश के ज़्यादातर लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए नीट परीक्षा को रद्द करके नए सिरे से यह परीक्षा करानी चाहिए।