भास्कर ओपिनियन- चुनाव: मप्र और छत्तीसगढ़ चुनावी समर के लिए तैयार, राजस्थान की तैयारी में अभी देर

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एक घंटा पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजस्थान को छोड़ दें तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में दोनों प्रमुख पार्टियों ने ज़्यादातर सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। राजस्थान में माहौल अभी ठंडा चल रहा है। वहाँ मतदान की तारीख़ भी इन दोनों राज्यों की बजाय आठ दिन बाद है, इसलिए कहा जा सकता है वहाँ राजनीतिक पार्टियों के पास अभी वक्त है।

छत्तीसगढ़ में तो विरोध का बवंडर लगभग शांत हो चुका है। इक्का – दुक्का लोग पार्टी बदलने की बात कर रहे हैं। इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन मध्यप्रदेश में अजीब तरह का विरोध हो रहा है। भाजपा के ज़्यादातर विरोधी सुर सिंधिया ख़ेमे पर टूट पड़े हैं। वजह साफ़ है कि सिंधिया गुट की लगभग सारी सीटें क्लियर हो चुकी हैं। यह गुट कांग्रेस से भाजपा में आया था।

ग्वालियर में नाराज कार्यकर्ताओं को मनाते ज्योतिरादित्य सिंधिया।

ग्वालियर में नाराज कार्यकर्ताओं को मनाते ज्योतिरादित्य सिंधिया।

इसलिए इनके प्रत्याशियों को टिकट मिलने से वहाँ के स्थानीय भाजपाई जो वर्षों से भाजपा की ओर से लड़ाई लड़ रहे थे, उन्हें तकलीफ़ होना लाज़मी है। वही तकलीफ फूटकर बाहर आ रही है।

दूसरी तरफ़ कांग्रेस में भी इस बार भारी विरोध हो रहा है। भाई लोग कमलनाथ के घर जाकर कपड़े फाड़ रहे हैं। अब कमलनाथ भले ही कहते रहें कि दिग्विजय के कपड़े फाड़ो, लेकिन लोग तो समझते हैं कि कपड़े किसके फाड़ना चाहिए और किसके नहीं।

बहरहाल, डैमेज कंट्रोल का ज़िम्मा पार्टी की ओर से दिग्विजय सिंह को दिया गया है। वे कर भी रहे हैं, लेकिन इसमें समय तो लगता ही है। लगेगा भी। कुल मिलाकर मामला दोनों ही पार्टियों में समय के साथ सुलझ जाएगा, लेकिन बाग़ी जितने भी खड़े होंगे, पार्टियों को नुक़सान तो पहुँचाएँगे ही।

भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिग्विजयसिंह का पुतला जलाया।

भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिग्विजयसिंह का पुतला जलाया।

चुनाव की तरकीबें भी अलग ही होती हैं। किसी भी पार्टी का बाग़ी जब चुनाव जीत जाता है तो अमूमन वह वापस पार्टी जॉइन कर लेता है, लेकिन हार जाता है तो वह अपनी ही पार्टी को भी हराता है क्योंकि उसे जितने भी वोट मिलते हैं वे उसकी अपनी पार्टी के ही होते हैं। ऐसे में उस पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी का हारना लगभग तय रहता है। वोटों का बँटवारा इसे ही कहते हैं।

छत्तीसगढ़ में स्थिति लगभग साफ़ है। वहाँ सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस की चाल कुछ तेज नज़र आ रही है। भाजपा के बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पिछले पाँच साल तक छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी लगभग निष्क्रिय रही। यह निष्क्रियता उसे भारी भी पड़ सकती है।