भास्कर ओपिनियन- चुनाव: क्या पराजय के बाद वाक़ई कांग्रेस आत्ममंथन करती है?

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एक घंटा पहले

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कांग्रेस को क्या हो गया है? चुनावों में वह भाजपा के सामने हार रही है और इस हार के कारण अपने विपक्षी साथी भी उसे अछूत कहने से बाज नहीं आ रहे हैं।

दरअसल, कांग्रेस के पास कोई चमत्कारिक नेता अब नहीं है, जिसकी एक आवाज़ पर सारे विपक्षी दल एक हो जाएँ। एक मंच पर आ जाएँ या हारी हुई कोई भी बाज़ी को जीता जा सके।

कांग्रेस नेतृत्व की हालत तो आज यह है कि राजस्थान का कोई कांग्रेस नेता उसकी बात नहीं मानता। बल्कि उल्टे नेतृत्व के खिलाफ बग़ावत कर देता है और फिर भी बना रहता है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस को अपने राष्ट्रीय नेतृत्व से कोई लेना- देना नहीं है। बुरी तरह हारने के बाद भी राज्य के नेताओं के चेहरों पर कोई अफ़सोस, कोई समीक्षा का भाव नज़र नहीं आता। वे ईवीएम का झूठा मुद्दा उठाकर पहलवान बने घूमते फिरते हैं।

मान लीजिए कि ईवीएम में कुछ होता है तो मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी, मान सकते हैं कि कुछ हुआ होगा लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस की ही सरकार थी वहाँ कैसे ईवीएम बदल ली गई?

या उनमें कुछ ग़लत कैसे कर लिया होगा? और आगे की बात करें तो तेलंगाना चलते हैं। वहाँ इसी ईवीएम से कांग्रेस कैसे जीत गई। वहाँ भी भाजपा जीत सकती थी! मिज़ोरम में भाजपा अगर नहीं भी जीतती तो कम से कम दो की बजाय उसकी ज़्यादा सीटें तो आ ही सकती थी!

दरअसल, हार स्वीकारने की जिनमें हिम्मत नहीं होती वे इस तरह के बहाने बनाते फिरते हैं। होना यह चाहिए कि चुनाव जीतने के लिए पूरे मन से तैयारी करनी चाहिए जैसी कि भाजपा किया करती है। इसके बाद पराजय हो भी जाए तो कोई दिक़्कत नहीं होती। कोई अफ़सोस नहीं होता।

मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस जैसे घर ही बैठ गई थी। कहा जा रहा था कि हमारी तरफ़ से तो जनता चुनाव लड़ रही है। जो घमण्ड बीस साल से सरकार चला रही भाजपा को होना चाहिए था, वो इतने ही साल तक सत्ता से बाहर रही कांग्रेस में आ गया था। कम से कम राजनीति में इस तरह के अहम् का कोई इलाज नहीं होता।

एक बात यह भी समझ से परे है कि हर पराजय के बाद आत्ममंथन के नाम पर कांग्रेस करती क्या है? क्या सचमुच कोई रणनीति बनाई जाती है? क्या सचमुच पुरानी ग़लतियों को पहचान कर उनमें सुधार किया जाता है? हालात तो ऐसा कुछ नहीं कहते। क्योंकि चुनाव दर चुनाव कोई सुधार नज़र आता नहीं है।

अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस पराजय के बाद कार्यकर्ताओं के टूटे हौसलों के साथ आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कितना और क्या कर पाएगी? फ़िलहाल तो इस बारे में कोई सकारात्मकता दूर- दूर तक दिखाई नहीं देती।