भविष्य बताने वाले ताश के पत्तों जैसे टैरो कार्ड: बंजारों ने इटली पहुंचाई कला, पहले ही बताया था वर्ल्डकप में भारत से हारेगा पाकिस्तान

  • Hindi News
  • Women
  • The Banjaras Of India Brought Art To Italy, Since Then The Journey Of Creating A Future Has Changed

नई दिल्ली5 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

  • कॉपी लिंक

दीवाली मेला हो या कोई एग्जीबिशन, सेलिब्रिटी की शादी हो या रियलिटी शो का फिनाले, क्रिकेट मैच हो या चुनाव का सीजन…हर अहम मौकों पर टैरो कार्ड रीडर्स भविष्य बताने के लिए बैठे मिलते हैं। सुबह अखबार में भी जो कॉलम उत्सुकता के साथ पढ़ा जाता है, वह भविष्य फल का होता है। जाने-अनजाने निगाह ठहर ही जाती है, यह सोचकर कि आज का दिन कैसा गुजरेगा।

एग्जाम में अच्छे नंबर आएंगे या नहीं, करियर में सफलता मिलेगी या नहीं, सितारे लव मैरिज की इजाजत देंगे या नहीं? पार्टनर कैसा मिलेगा? यह सभी सवाल जब मन में उठते हैं तो हम इन उलझनों के हल ढूंढने के लिए भविष्य बताने वालों की शरण में पहुंच जाते हैं।

कुंडली तो हजारों साल से भविष्य बताती आ रही है और आगे भी बताती रहेगी, लेकिन इधर कुछ सालों से टैरो कार्ड रीडिंग का ट्रेंड चल पड़ा है। खासकर साल 2000 के बाद टैरो कार्ड रीडिंग के जरिए अपने फ्यूचर में झांकना ज्यादा पॉपुलर हुआ है।

इटली के रसूखदार और ‘तरोच्ची’ के 78 कार्ड्स

सवाल उठता है कि क्या टैरो कार्ड्स भी ज्योतिष का एक रूप हैं या कुछ और। क्या इसकी भविष्यवाणी सटीक होती है? कभी इन 78 कार्ड्स से गेम खेला जाता था और आज ये कैसे व्यक्ति का भविष्य बताने के एक्सपर्ट बन गए हैं? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए आइए चलते हैं 14वीं सदी के यूरोप के एक देश इटली में। इटली इसलिए, क्योंकि यहीं से टैरो कार्ड फेमस होने शुरू हुए थे।

इन दिनों इटली में टैरो कार्ड का इस्तेमाल ताश के पत्तों की तरह खेलने के लिए होने लगा था। यह अमीर लोगों के बीच एंटरटेनमेंट का तरीका था। जैसे-जैसे इस खेल को लेकर लोगों का शौक बढ़ा, इसका रूप और मायने बदलने लगे। लेकिन कार्ड पर छपी तस्वीरें वैसी ही रहीं। 17वीं सदी आते-आते इन कार्ड्स को दैवीय शक्ति से जोड़कर देखा जाने लगा।

भारत की रोमा जनजाति ने शुरू किया था टैरो कार्ड्स का चलन

कुछ लोगों का मानना है कि टैरो कार्ड्स का चलन भारत से शुरू हुआ। यहां की बंजारा जनजाति ‘जिप्सी’ जिन्हें ‘रोमा’ भी कहा जाता है, वह टैरो कार्ड को लेकर यूरोप गई और वहीं उन्होंने इन कार्ड्स की मदद से भविष्यवाणी करनी शुरू की।

फ्रांस के लेखक एलिफस लिवे ( Eliphas Lévi) ने अपनी किताब ‘द टैरो ऑफ द बोहेमियन’ में भी जिप्सी समुदाय का जिक्र किया। उनका मानना था कि जिप्सी समुदाय मिस्र से आया था और उन्होंने ही इस कार्ड गेम की शुरुआत की। हालांकि, टैरो कार्ड पर छपे चिह्न या प्रतीक हिब्रू भाषा की लिपि से मिलते-जुलते हैं जो यहूदी परंपरा से जुड़े हैं।

जिप्सी भारत से यूरोप कैसे पहुंचे, इस पर भी कई मत

जिप्सी यूरोप कैसे पहुंचे, इस पर इतिहासकारों की राय अलग-अलग है। कुछ मानते हैं कि सिकंदर के भारत पर हमले के समय इस समुदाय ने देश छोड़ दिया था। कुछ का मानना है कि महमूद गजनी ने उन्हें गुलाम बनाया और अफगानिस्तान ले गया। 15वीं शताब्दी के आस-पास वे आजाद होकर यूरोप चले गए थे।

तो टैरो कार्ड यूरोप कैसे पहुंचा? क्या तब कागज बनने लगा था?

टैरो कार्ड का संबंध प्राचीन मिस्र से भी बताया गया

फ्रांस के भविष्य वक्ताओं ने टैरो कार्ड का सीधा संबंध प्राचीन मिस्र से बताया है। कुछ शोधकर्ताओं ने इन कार्ड्स को प्राचीन मिस्र के ‘मक्लुक डेक’ से जोड़ा। उनका मानना था कि मुस्लिम सैनिक इन्हें अपने साथ लाए। ‘मक्लुक’ कार्ड्स में भी सूट, कप्स, सिक्के, तलवारें और पोलो-स्टिक्स जैसे प्रतीक बने होते थे।

कुछ रिसर्च कहती हैं कि हो सकता है कि जब कागज की खोज हुई तभी यह कार्ड एशिया से यूरोप पहुंचे हों।

अगर इस तथ्य पर गौर करें तो कागज का आविष्कार 202 ईपू में काई लुन नाम के चीन के व्यक्ति ने किया। चीन के बाद भारत में सिंधु सभ्यता के दौरान कागज बनने का प्रमाण मिलता है। ऐसे में इस बात को फिर से बल मिलता है कि जिप्सी समुदाय के लोग ही टैरो कार्ड को अपने साथ यूरोप ले गए हों।

भविष्य बताने पर लगी रोक तो लोगों ने छपवा दिए चित्र

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जिस टैरो कार्ड को आज हम भविष्य बताने की कला की तरह देखते हैं, 14वीं सदी में यूरोप में टैरो कार्ड रीडर्स को अच्छा नहीं माना जाता था। लोग उन्हें ‘ब्लैक मैजिक’ करने वाला समझते थे। इसलिए वहां भविष्यवाणी करने पर रोक लगा दी गई थी। इसके पीछे यह वजह थी कि उस दौर में भविष्य बताने का काम केवल पोप का था। पोप की सत्ता को तब राजा भी चुनौती देने से बचते थे। ऐसे में पोप के अलावा कोई दूसरा भविष्य बताने का काम करे तो उसे धर्म के विरूद्ध माना जाता था।

टैरो कार्ड रीडर पूनम वेदी भी इस बात की पैरवी करते हुए बताती हैं कि टैरो कार्ड पर ऐसी तस्वीरें छापी गईं जो संकेतों में भविष्य बताती थीं। उन पुराने टैरो कार्ड्स में चिह्न और तस्वीरें दोनों होते थे। समय के साथ इन कार्ड्स का रूप बदलता गया।

आइए, अब आपको टैरो कार्ड से जुड़ा ब्रिटेन का एक किस्सा बताते हैं…

ब्रिटेन के राइडर और वेट की जोड़ी को दिखती थीं तस्वीरें

ब्रिटेन में एक जादूगर थे एई वेट (A.E. Waite)। कुछ लोग उन्हें तांत्रिक भी कहते थे। वेट और एक छापेखाने के मालिक राइडर (Rider) मिलकर एक कंपनी चलाते थे। कहा जाता है कि दोनों को खुली आंखों से कुछ तस्वीरें दिखती थीं। राइडर ने 1909 में टैरो कार्ड्स की छपाई की थी। उन्होंने इन कार्ड्स काे आगे प्रिंट नहीं किया क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध में उनकी प्रिंटिंग प्लेट नष्ट हो गई थी। दोनों को जो तस्वीरें दिखती थीं, उन्होंने इन तस्वीरों के मतलब निकाले। उन्हें तस्वीरों में कभी घर, कप या पानी जैसी चीजें नजर आती थीं। उनका मानना था कि हर चित्र के पीछे एक संदेश छुपा है। इस तरह आज के टैरो कार्ड और इनकी रीडिंग का जन्म हुआ।

हैदराबाद की टैरो कार्ड रीडर प्रणिता देशमुख के अनुसार टैरो कार्ड रीडिंग एक यूरोपियन आर्ट है। आज टैरो कार्ड्स जिस रूप में दिखते हैं, उन्हें राइडर-वेट टैरो डेक कहा जाता है।

आइए अब आपको बताते हैं कि टैरो कार्ड से भविष्यवाणी कैसे की जाती है।

छपे कार्ड में छुपा है जिंदगी का सफर

टैरो कार्ड रीडिंग एक अलग तरह की विधा है जो 78 पत्तों के इर्द-गिर्द बुनी हुई है। टैरो कार्ड में छपी तस्वीरें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताती हैं।

नोएडा की टैरो कार्ड रीडर प्रियंका अनिल ढाका ने वुमन भास्कर को बताया कि टैरो कार्ड्स के एक बंडल को ‘डेक’ कहते हैं। इसमें 77 कार्ड्स हैं और एक कार्ड जीरो (Zero) कहलाता है। इस कार्ड को ‘फूल’ (Fool) भी कहते हैं। इन्हें मिलाकर 78 कार्ड्स होते हैं।

‘फूल’ (Fool) से इंसान का सफर शुरू होता है और अंत का कार्ड ‘डेथ’ कहलाता है। जन्म के समय हम सभी मूर्ख होते हैं इसलिए इस कार्ड को ‘फूल’ कहा गया है। फिर धीरे-धीरे जिंदगी बदलती है। जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है, लाइफ बदलती है। ऐसे में कार्ड की सिचुएशन भी बदलती जाती है। हर कार्ड पर बनी तस्वीर जीवन में कभी न कभी आने वाली स्थिति को दर्शाती है।

टैरो कार्ड का सबकॉन्शियस माइंड और एनर्जी से कनेक्शन

टैरो कार्ड रीडिंग में व्यक्ति की एनर्जी और सबकॉन्शियस माइंड का बड़ा महत्व होता है। कार्ड रीडिंग इन्हीं चीजों से जुड़ी है। प्रणिता देशमुख कहती हैं कि टैरो कार्ड की रीडिंग ‘इन्ट्यूशन’ पर निर्भर करती है। ‘इन्ट्यूशन’ को हम अपनी छठी इंद्रिय या मनोभाव कहते हैं।

हम सभी जानते हैं कि इंद्रियां 5 ही होती हैं लेकिन जब दिल और दिमाग मिलकर ऐसी किसी बात के बारे में सोचते हैं जो अभी हुई नहीं है लेकिन हो सकती है, उसे ही हमारी इन्ट्यूशन या छठी इंद्रिय का संकेत कहा जाता है।

इसलिए, हमें अपनी उलझनों और मुश्किल सवालों के जवाब पता होते हैं। ये जवाब हमारे अवचेतन मन (सबकॉन्शियस माइंड) में रहते हैं, लेकिन कॉन्शियस माइंड या चेतन मन इन्हें स्वीकार नहीं कर पाता। टैरो कार्ड रीडिंग में परेशान व्यक्ति के अवचेतन मन को एनर्जी से जोड़कर कार्ड रीडिंग की जाती है। वह व्यक्ति की एनर्जी को एक्टिवेट करते हैं ताकि उसके द्वारा चुना गया कार्ड उसकी जिंदगी से जुड़े और व्यक्ति को उसके हर सवाल का जवाब खुद-ब-खुद मिल जाए।

टैरो कार्ड से जुड़ी एक और रोचक जानकारी। इसमें ज्योतिष विद्या की तरह न तो कुंडली देखी जाती है और न ही जन्म की तारीख पूछी जाती है।

टैरो कार्ड को निगेटिव एनर्जी से बचाने की जरूरत

विज्ञान हो या आध्यात्म, सभी ब्रह्मांड की शुरुआत एनर्जी से ही मानते हैं। टैरो कार्ड रीडिंग में टैरो कार्ड्स का ताल्लुक एनर्जी से माना जाता है। हर इंसान में अलग एनर्जी होती है जिसे ऑरा कहा जाता है। यही ऑरा, कार्ड रीडिंग में काम आता है और सवाल करने वाले और सवाल पूछने वाले दोनों के लिए जरूरी होता है।

प्रियंका अनिल ढाका बताती हैं कि टैरो कार्ड रीडर को अपने आपको और कार्ड को निगेटिविटी से दूर रखना पड़ता है। टैरो कार्ड रीडर को मेडिटेशन करना होता है ताकि हम खुद को और अपने मन को इस सृष्टि से जोड़ सके। हम अपनी एनर्जी और कार्ड्स को निगेटिव एनर्जी से बचाने के लिए क्रिस्टल का इस्तेमाल करते हैं। इन कार्ड्स को कपूर, गूगल, लॉन्ग और तेजपत्ते का धुंआ दिया जाता है। इसे एक तरह से कार्ड्स का शुद्धिकरण माना जाता है।

इसके अलावा टैरो कार्ड्स की एनर्जी को चार्ज करना भी जरूरी होता है जिसके लिए इन्हें सूरज की रोशनी में, पूर्णिमा और नए चांद की चांदनी में रखा जाता है।

सवाल पूछने आया व्यक्ति परेशान होता है और अपने साथ बहुत सारी निगेटिविटी लेकर आता है। उसकी सोच कार्ड्स पर हावी न हो जाए इसलिए सबसे पहले कार्ड रीडर उस व्यक्ति को अपने इष्ट देव से प्रार्थना करने के लिए कहता है। माना जाता है कि ऐसा करने से सवाल करने आए व्यक्ति का कार्ड न्यूट्रल यानी निष्पक्ष आता है और कार्ड रीडर उन्हें सही मार्गदर्शन दे पाते हैं।

आप कह सकते हैं कि टैरो कार्ड्स और टैरो कार्ड रीडर्स का एक रिश्ता होता है। इस रिलेशनशिप में एक एनर्जी होती है जो दोनों को आपस में जोड़ती है।

आप सोचते होंगे कि टैरो कार्ड रीडर्स ज्यादा महिलाएं ही क्यों?

अगर आपने गौर किया हो तो ज्यादातर टैरो कार्ड रीडर्स महिलाएं ही होती हैं। इस बारे में हमने पूनम वेदी से पूछा तो उन्होंने कहा कि वैसे यह बात पूरी तरह से ठीक नहीं है। पुरुष भी इस प्रोफेशन में आने लगे हैं।

लेकिन पूनम मानती हैं कि आज भी 70% टैरो कार्ड रीडर महिलाएं ही हैं। वो इसकी वजह बताती हैं कि दरअसल महिलाओं का इंट्यूशन यानी मनोभाव पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मजबूत माना जाता है। टैरो कार्ड रीडिंग में इसी इन्ट्यूशन का सबसे अहम रोल होता है। कार्ड रीडिंग में महिलाओं की गणना ज्यादा सटीक होने की वजह से उन्हें ज्यादा सफलता मिलती है।

इसके अलावा, महिलाएं भावुक और संवेदनशील भी होती हैं। जब सवाल पूछने वाले और जवाब बताने वाले के बीच एक कनेक्शन बनेगा तभी भविष्य की गणना ज्यादा सटीक हो सकती है। इस प्रक्रिया में एक तरह का त्रिकोण बनता है जिसमें तालमेल (Synchronicity), संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता शामिल है। महिलाओं में यह तीनों गुण होते हैं।

वहीं, प्रणिता देशमुख कहती हैं कि महिलाएं इमोशन से जुड़ी दिक्कतें जल्दी पहचानती हैं। इसके अलावा पिछले कुछ सालों से इस प्रोफेशन से ग्लैमर भी आ जुड़ा है। इस वजह से महिलाओं का टैरो कार्ड रीडर बनने में रुझान बढ़ा।

60% महिलाएं तो 40% पुरुष पूछते हैं भविष्य

टैरो कार्ड रीडिंग में महिलाएं और पुरुष दोनों ही रुचि दिखाते हैं। लेकिन महिलाएं ज्यादा आती हैं। प्रियंका ने बताया कि उनके पास आने वालों में 60% महिलाएं तो 40% पुरुष अपनी समस्याओं के हल तलाशने आते हैं। महिलाएं हर विषय पर खुलकर बात करती हैं। चूंकि उनके सामने भी एक महिला ही बैठी होती है तो उन्हें अपना दिल खोलकर बात करने में दिक्कत नहीं होती।

प्रियंका का यह भी मानना है कि महिला टैरो कार्ड रीडर्स इसलिए अच्छी होती हैं क्योंकि वह खुद महिला होने के नाते सामने बैठी महिला की परेशानी को गहराई से समझ सकती है। उनके पास ऐसी कई महिलाएं आती हैं जो टैरो कार्ड रीडिंग के जरिए रिश्तों, बच्चों और करियर से संबंधित परेशानियों के हल ढूंढती हैं।

चलिए बताते हैं कि अगर आपका टैरो कार्ड रीडर बनने का मन है तो कैसे बनें?

एक अच्छा टैरो कार्ड रीडर उनके पास आने वाले व्यक्ति से कभी भी समस्या नहीं पूछता। वह सीधे कहेगा कि ‘कार्ड निकालें, हम खुद आपकी समस्या बताएंगे।’ यही 6th सेंस कहलाती है। यह शक्ति बहुत कम लोगों में होती है और जिनमें होती है वह अच्छे टैरो कार्ड रीडर बनते हैं। उनकी 6th सेंस यूनिवर्स से जुड़ी होती है। ऐसे लोग इंसान को देखकर ही पहचान जाते हैं कि क्या दिक्कत हो सकती है।

वहीं, कुछ टैरो कार्ड रीडर इस विधा को एक पढ़ाई के तौर पर देखते हैं। वह इस विषय का गहराई से अध्ययन करते हैं क्योंकि इस फील्ड में पैसा, इज्जत और पॉपुलैरिटी सब कुछ है। इसके बाद एक बिजनेस की तरह यह काम करते हैं। यह विधा किसी भी उम्र में सीखी जा सकती है।

रिलेशनशिप से जुड़े 90% सवाल महिलाओं के होते हैं

टैरो कार्ड रीडर्स के मुताबिक 18-60 साल की उम्र के कई लोग सवाल पूछने आते हैं। रिलेशनशिप से जुड़े 90% सवाल महिलाओं के होते हैं। 18 से 45 उम्र की महिलाएं ऐसे सवाल ज्यादा पूछती हैं। रिलेशनशिप के ये सवाल सिर्फ गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड से जुड़े नहीं होते। इसमें सभी रिश्ते शामिल होते हैं। अधिकतर मां अपने बच्चों के भविष्य के बारे में पूछती हैं। इसके बाद पैसा, हेल्थ, शोहरत के सवाल पूछे जाते हैं।

अधिकतर टैरो कार्ड रीडर्स ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पुरुष रिलेशनशिप के सवाल कम ही पूछते हैं क्योंकि वह रिश्तों में जल्दी से नहीं बंधना चाहते। आजकल लोग एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, वजन कब कम होगा और अपनी लुक और इमेज को लेकर सवाल ज्यादा पूछते हैं। कुछ सवाल कभी परिवार और प्राॅपर्टी से जुड़ी कलह को लेकर होते हैं तो कभी परिवार में बनते-बिगड़ते रिश्तों को लेकर होते हैं जिनसे सोसायटी में आए बदलाव का चेहरा देखने को मिलता है।

2003 में क्रिकेट वर्ल्ड कप से बढ़ा चलन

टैरो कार्ड रीडर्स मानते हैं कि भारत में टैरो कार्ड रीडिंग का चलन 2000 के बाद शुरू हुआ। खासकर तब जब 2003 में क्रिकेट वर्ल्ड कप चल रहा था। साउथ अफ्रीका के सेंचुरियन में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच खेला जा रहा था। हर कोई भारत की जीत की दुआ कर रहा था। टीवी चैनल पर टैरो कार्ड रीडर्स भी भारत की जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे। इस मैच में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने शोएब अख्तर की बॉल पर सिक्सर जड़ा लेकिन बाद में आउट हो गए। इस मैच में सचिन ने 75 गेंदों पर 98 रन बनाकर भारत को जीत दिलाई थी। इसके बाद लोगों का रुझान टैरो कार्ड्स की तरफ बढ़ा।

हैदराबाद की टैरो कार्ड रीडर प्रणिता देशमुख का कहना है कि टैरो कार्ड रीडर्स के प्रति मीडिया ने लोगों की सोच को बदला। मूवी, रियलिटी शो और टीवी प्रोग्राम के जरिए लोगों ने इस विधा को जाना और समझा।

प्रणिता ने बताया कि जब वह टैरो कार्ड रीडर बनने की ट्रेनिंग ले रही थीं तो लोगों को इसके बारे में समझाना मुश्किल था। अधिकतर लोगों को लगता था कि यह ब्लैक मैजिक है। पहले टीवी पर ज्यादातर टैरो कार्ड रीडर्स बड़े-बड़े क्रिस्टल बॉल या अजीबोगरीब कपड़े पहने बैठी दिखाई देती थीं। लोग उनसे बात करते हुए डरते थे।

वहीं, टैरो कार्ड्स में कुछ डार्क कार्ड हैं जैसे डेथ, डेविल और पावर। इन पर बनीं तस्वीरें काले जादू जैसा महसूस कराती हैं लेकिन ऐसा नहीं है । मीडिया ने ही टैरो कार्ड और रीडर्स के प्रति लोगों का नजरिया बदला।

लॉकडाउन ने बढ़ाया टैरो कार्ड्स का बिजनेस

कोरोना के चलते जब लॉकडाउन लगा और लोग घर में बंद हो गए तब टैरो कार्ड रीडर्स का बिजेनस बढ़ा। टैरो कार्ड रीडर्स सोशल मीडिया के जरिए लाइव हुए और मुफ्त में लोगों के सवालों का जवाब देने लगे। इससे लोग उनसे तेजी से जुड़ गए।

टैरो कार्ड रीडर्स मानते हैं कि उस समय सभी मानसिक रूप से परेशान थे। ऐसे में फ्री रीडिंग करना ही ठीक था। इससे लोगों का झुकाव और विश्वास इसकी तरफ बढ़ा। इससे बिजनेस भी बढ़ा क्योंकि बाद में लोग टैरो कार्ड रीडर्स के रेगुलर क्लाइंट बन गए।

लेकिन दिल्ली की टैरो कार्ड रीडर रुकमा सलुजा कहती हैं कि टैरो कार्ड्स के सामने अगर व्यक्ति बैठा हो और खुद कार्ड चुने तो उसकी वाइब्रेशन कार्ड में आती हैं। इससे भविष्यवाणी सटीक होती है। रुकमा की नजर में फोन या सोशल मीडिया के जरिए टैरो कार्ड रीडिंग शायद सफल न हो।

अब जानते हैं कि टैरो कार्ड का पैटर्न और उसके तकनीकी पहलू को….

टैराे कार्ड के डेक का बदलता रहा पैटर्न

टैराे कार्ड के डेक का पुराना पैटर्न ‘टैरो डी मर्सले’ (Tarot de Marseille) है। यह कार्ड 17वीं शताब्दी में डिजाइन किया गया था जो मूल रूप से ताश की तरह खेलने के लिए बने थे। यह दुनिया में टैरो कार्ड डेक का सबसे पुराना डिजाइन है जो काफी समय तक लगातार चला।

मेजर अरकाना और माइनर अरकाना

आजकल टैरो कार्ड 2 डेक (कार्ड के बंडल) में आता है: मेजर अरकाना और माइनर अरकाना।

मेजर अरकाना में 22 कार्ड होते हैं और माइनर अरकाना में 56 कार्ड होते हैं।

माइनर अरकाना के कार्ड्स को 4 भागों में बांटा जाता है और इसके हर सेट में 14 कार्ड्स होते हैं:

1- द वैन्ड्स (The Wands): ये कार्ड्स जिंदगी में एक्शन को बताते हैं और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए रास्ता दिखाते हैं।

2- द कप्स (The Cups): ये कार्ड्स इमोशन और रिलेशनशिप के बारे में बताते हैं।

3- द स्वॉर्ड्स (The Swords): ये जीवन की चुनौतियों के बारे में बताते हैं। और साथ ही हर परिस्थिति में कैसे मजबूत बने, यह सलाह देते हैं।

4- द पेंटिकल्स (The Pentacles): यह प्रोफेशन, पैसे और दांपत्य जीवन के बारे में जानकारी हैं।

इन टैराे कार्ड्स में जो तस्वीरें दिखती हैं वह 19वीं सदी के अंत में ब्रिटेन के एडवर्ड अलेक्जेंडर क्रॉली ने डिजाइन की थीं। एडवर्ड भी भविष्य बताते थे। उन्होंने विभिन्न अलौकिक शक्तियों के संपर्क में होने का दावा भी किया। उन्होंने अपना एक अलग धर्म ‘थेल्मा’ भी बना लिया था। इस वजह से ब्रिटिश टैब्लॉइड प्रेस ने उन्हें “दुनिया का सबसे शैतान आदमी” करार दिया।

और शुरू हो गए टैरो कार्ड्स की तर्ज पर ओरेकल कार्ड्स

अब टैरो कार्ड्स के अलावा दूसरे कार्ड्स पढ़कर भी भविष्य बताया जा रहा है। इन्हें ‘ओरेकल कार्ड्स’ कहा जाता है। फ्यूचर बताने वाले कई लोग इनका खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें कुछ प्रमुख हैं: काली ओरेकल कार्ड्स, एंजल कार्ड्स, साईं बाबा कार्ड्स, रेकी कार्ड्स और रूमी ओरेकल कार्ड्स।

प्रणिता देशमुख कहती हैं कि टैरो कार्ड और ओरेकल कार्ड्स अलग होते हैं। ओरेकल कार्ड पिछले 7-8 साल से शुरू हुए हैं। टैरो कार्ड्स आपको ‘क्यों’ का जवाब देते हैं जबकि ओरेकल कार्ड्स ‘परिस्थितियों’ का अस्थायी ‘हल’ देते हैं। आपको तकलीफ क्यों हो रही है, इसका जवाब उनके पास नहीं होता। ओरेकल कार्ड्स पर जो तस्वीर निकलेगी, वह यह बताएगी कि ‘आपको करना क्या है’। यह ठीक वैसे ही है जैसे ‘आपको दर्द हुआ’ तो आपने पेन किलर खा ली। लेकिन ‘दर्द क्यों हुआ’ और इसे ठीक करने के लिए इलाज क्या है, यह ओरेकल कार्ड्स बता पाने में सक्षम नहीं हैं।

ग्रैफिक: सत्यम परिडा

नॉलेज बढ़ाने वाली और जरूरी जानकारी देने वाली ऐसी खबरें लगातार पाने के लिए डीबी ऐप पर ‘मेरे पसंदीदा विषय’ में ‘वुमन’ को सेलेक्ट करें या प्रोफाइल में जाकर जेंडर में ‘मिस’ सेलेक्ट करें।

खबरें और भी हैं…