बिलकिस के सपोर्ट में प्रशासनिक सेवा के 134 पूर्व अधिकारी: CJI को चिट्‌ठी लिखकर कहा- 11 दोषियों की रिहाई भयानक फैसला, दोबारा जेल भेजा जाए

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20 मिनट पहले

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2002 के गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप का शिकार हुई बिलकिस बानो के सपोर्ट में प्रशासनिक सेवा के 134 पूर्व प्रशासनिक अधिकारी आ गए हैं। इन लोगों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को चिट्‌ठी लिखकर गैंगरेप और हत्या करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के फैसले को भयानक गलत करार दिया है। साथ ही इन सभी ने सुप्रीम कोअर् से मांग की है कि गुजरात सरकार का आदेश रद्द किया जाए और दोषियों को वापस जेल भेजा जाए।

134 अधिकारियों ने बनाया ग्रुप
अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के 134 पूर्व सदस्यों ने एक ग्रुप बनाया है, जिसे कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप नाम दिया है। उन्होंने CJI को खुले खत में लिखा कि देश के अन्य नागरिकों की तरह वे भी 11 लोगों रिहा करने के गुजरात सरकार के निर्णय से नाराज हैं, जिन्होंने इतना घिनौना अपराध किया था। समय से पहले रिहाई का न केवल बिलकिस, उनके परिवार पर बल्कि भारत में सभी महिलाओं की सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ेगा, जो खासतौर पर अल्पसंख्यक और कमजोर समुदायों से जुड़ी हैं।

इस लेटर में भारत संघ बनाम श्रीहरन केस में दी गई मिसाल का हवाला दिया गया है और तर्क दिया है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना था कि इस मुद्दे को तय करने के लिए उपयुक्त सरकार राज्य सरकार होगी जहां दोष साबित हुआ था।

IAS बोले- सरकार को सलाह लेनी थी
उम्रकैद की सजा काट रहे दोषियों की जल्दी रिहाई के लिए इन पूर्व अधिकारियों ने लिखा है- चूंकि CBI ने जांच की थी। CrPC की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार को छूट देने से पहले सलाह लेनी चाहिए थी। इस प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं, यह मालूम नहीं है। सीआरपीसी की धारा 432(2) के अनुसार सजा में छूट देने से पहले अदालत के पीठासीन न्यायाधीश की राय ली जानी चाहिए थी, जिन्होंने दोषसिद्धि का आदेश पारित किया था। ऐसा लगता है इस मामले में राय नहीं ली गई।

सलाहकार समिति पर भी उठाए सवाल
ऐसे केस जिनमें जहां पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के लिए खतरा है, छूट देने से पहले सरकार को यह पता लगाना चाहिए था कि रिहाई पीड़िता के जीवन पर क्या असर करेगी। सलाहकार समिति के 10 में से 5 सदस्य जिन्होंने समय से पहले रिहाई को मंजूरी दी है, वे भारतीय जनता पार्टी के हैं, जबकि अन्य पदेन सदस्य हैं। लेटर में समिति के गठन में निष्पक्षता और निर्णय की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाए हैं।

केंद्र की मौजूदा नीति के तहत बलात्कार के दोषी नहीं हो सकते है रिहा
जून 2022 में केंद्र सरकार ने दोषी कैदियों को जेल से रिहा करने के मकसद से राज्य सरकारों के लिए एक गाइडलाइन जारी की थी। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत जारी इस गाइडलाइन में रेप के दोषी समय से पहले जेल से रिहाई के हकदार नहीं थे।

हालांकि गुजरात के अतिरिक्त मुख्य गृहसचिव राजकुमार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से तब रेमिशन पॉलिसी यानी समय से पहले जेल से रिहा करने की नीति के तहत इन 11 दोषियों की जल्द रिहाई पर विचार करने के लिए कहा था, जब उन्हें ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाई थी।

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