बाढ़ के कारण 2 हजार मल्लाहों ने छोड़ी काशी: गंगा के 1 इंच बढ़ने से छिनी 15000 नाव चलाने वालों की रोजी-रोटी, उधार लेकर पाल रहे परिवार

14 घंटे पहलेलेखक: आशीष उरमलिया और देवांशु तिवारी

31 दिन बीत चुके हैं। बनारस में गंगा अभी भी उफान पर है। घाटों पर नाव चलाने वाले 15 हजार गंगा पुत्रों की बेचैनी हर सेकंड बढ़ती जा रही है। तंगी में आकर अब तक 2 हजार से ज्यादा मल्लाह परिवार के साथ पलायन कर चुके हैं। जो बचे हैं वो अपनी जान जोखिम में डालकर घाटों के किनारे बंधी नावों की रखवाली कर रहे हैं।

भास्कर ग्रांउड जीरो पर मौजूद है। 10 से ज्यादा घाटों पर मौजूद नाव चलाने वालों से बातचीत की। आइए, बारी-बारी उनका दर्द समझते हैं…

गंगा के 1 इंच बढ़ने से 2 गुना बढ़ जाती है चिंता

प्रदीप निषाद 10 अगस्त से दशाश्वमेध घाट पर अपनी नाव की रखवाली कर रहे हैं। उनका परिवार नाव पर ही खाना बनाता है।

प्रदीप निषाद 10 अगस्त से दशाश्वमेध घाट पर अपनी नाव की रखवाली कर रहे हैं। उनका परिवार नाव पर ही खाना बनाता है।

वाराणसी के गंगा पार के रहने वाले प्रदीप निषाद 17 साल से नाव चला रहे हैं। बीते 20 दिनों से उनकी नाव राजेंद्र प्रसाद घाट पर बंधी खड़ी है। राजू कहते हैं, “एक महीना होने वाला है, गंगा मैया रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पानी का बहाव इतना तेज है कि कल रात 2 नाव बह गईं। इसी नुकसान के डर से जोखिम उठाकर नाव पर ही रहते हैं। यहीं खाते हैं, यहीं सो जाते हैं।”

चूल्हे पर रोटी सेंकते हुए प्रदीप आगे कहते हैं, “घाट पानी में डूबे हैं, नाव भीतर से सूखी है। इसलिए इसी पर चूल्हा जलता है, पेट भरता है। यहां न बीवी है, न बच्चे हैं, कोई ऐसा नहीं है जो एक निवाले के लिए पूछ ले।”

दिन में 1 हजार कमाने वाले पाई-पाई को मोहताज

मल्लाह बच्चू निषाद ने बताया कि गंगा में बाढ़ आने से सबसे ज्यादा नुकसान नाव चालकों को हुआ है। प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई मदद नहीं मिली है।

मल्लाह बच्चू निषाद ने बताया कि गंगा में बाढ़ आने से सबसे ज्यादा नुकसान नाव चालकों को हुआ है। प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई मदद नहीं मिली है।

बनारस शहर के रहने वाले बच्चू निषाद का परिवार पीढ़ियों से नाव चलाता रहा है। बच्चू कहते हैं, “भइया रोटी के लाले पड़े हैं। 1 महीने से बिना कमाई के बैठे हैं। बच्चों की फीस से लेकर घर के राशन तक का बोझ बढ़ता जा रहा है। हमारे मल्लाह समाज के 2000 से ज्यादा लोग बाढ़ के कारण पलायन कर चुके हैं।”

बाढ़ से पहले के दिनों को याद करते हुए बच्चू ने कहा, “आम दिनों में काशी का हर नाव वाला रोजाना 500 से लेकर 1000 रुपए तो कमा ही लेता था। लेकिन अब एक रुपए भी नहीं मिल रहा है। हमें नाव चलाने के अलावा और कुछ नहीं आता, जिससे हम पैसे कमा सकें। उधार लेकर और सामान गिरवी रखकर परिवार पालना पड़ रहा है।”

काशी कोरिडॉर का हर खंभा कह रहा- हे मां गंगा तुम वापस जाओ

केशव ने बताया कि गंगा का जलस्तर यूं ही बढ़ता रहा तो 1978 में आई बाढ़ का भी रिकॉर्ड टूट जाएगा।

केशव ने बताया कि गंगा का जलस्तर यूं ही बढ़ता रहा तो 1978 में आई बाढ़ का भी रिकॉर्ड टूट जाएगा।

काशी मल्लाह संगठन के सदस्य केशव निषाद कहते हैं, “साल 1978 में काशी भयंकर बाढ़ आई थी। आधा बनारस डूब गया था। तब गंगा मइया को शांत करने के लिए काशी नरेश विभूति नारायण सिंह ने गुदौलिया चौराहे पर प्रार्थना की थी।”

केशव आगे कहते हैं, “राजा साहब ने प्रार्थना में कहा था- हे गंगा मइया तुम वापस जाओ। इस तरह आज हमारे साथ काशी कॉरिडोर का एक-एक खंभा गंगा मइया से वापस जाने को कह रहा है।”

अब…
यहां तक आपने काशी के मल्लाहों की बातें सुनी। आगे बनारस के नाव कारोबार से जुड़े कुछ आंकड़ों पर चलते हैं…

उफनाई गंगा ने 2000 नावों पर लगाया ब्रेक, 15000 नाविकों का काम ठप

ये तस्वीर अस्सी घाट की है। यहां का घाट पूरी तरह से डूब चुका है, ऐसे में सीढ़ियों पर ही पुरोहित पूजा-पाठ करवा रहे हैं।

ये तस्वीर अस्सी घाट की है। यहां का घाट पूरी तरह से डूब चुका है, ऐसे में सीढ़ियों पर ही पुरोहित पूजा-पाठ करवा रहे हैं।

बनारस के मल्लाह यूनियन के लोगों का कहना है कि बीते एक महीने से बनारस के 88 घाटों पर करीब 2000 से ज्यादा नाव एक-दूसरे से बंधी हुई खड़ी हैं। यूनियन के नेता कमल सिंह कहते हैं, “अस्सी से लेकर राजघाट तक नाव चलाने वाले 15000 से ज्यादा मल्लाह खाली बैठे हैं। बाढ़ का पानी घटने के बाद इनका काम कब शुरू हो पाएगा, ये भी किसी को पता नहीं है। पानी नीचे उतरेगा उसके बाद घाट पर जमा गाद और सिल्ट हटाई जाएगी। इसी में महीने भर का समय लगेगा फिर नाव चलनी शुरू होंगी।”

आखिर में गंगा का जलस्तर बढ़ने से वाराणसी पर हुए असर को आंकड़ों के जरिए समझते हैं…

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