बंगाल बॉर्डर पर फंसी 72 हजार जिंदगियां: 260 गांवों का दर्द…घर का एक कमरा बंगाल में, दूसरा बांग्लादेश में

कोलकाता13 मिनट पहलेलेखक: प्रभाकर मणि तिवारी

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पश्चिम बंगाल के 10 जिलों के 260 गांवों के लोगों को 76 साल बाद भी आजादी महसूस नहीं होती है, क्योंकि ये गांव रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पूरी तरह से बांग्लादेश पर निर्भर हैं।

यहां बीमार होने पर बांग्लादेश इलाज कराने जाना पड़ता है, क्योंकि भारत वाला स्वास्थ्य केंद्र 15 किमी दूर है। खरीदारी बांग्लादेश के बाजारों में करनी पड़ती है, क्योंकि हमारे हिस्से में बाजार नहीं है।

दक्षिण दिनाजपुर जिले के गांव हरिपुकुर के मोहम्मद अली बताते हैं कि हमारी जिंदगी दो हिस्सों में बंटी है और 76 साल से यही हाल है। हमारे जैसे 72 हजार लोग यही जिंदगी जी रहे हैं। हर जगह बीएसएफ तैनात है।

बांग्लादेश से लगती बंगाल की 2216 किमी सीमा
भास्कर टीम को यहां पता चला कि बांग्लादेश से लगती बंगाल की 2216 किमी सीमा पर यह स्थिति भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति से अनजान रेडक्लिफ आयोग की अनदेखी के कारण बनी है। कई घर ऐसे हैं, जिनका एक कमरा बांग्लादेश तो दूसरा बंगाल में है। नो मेंस लैंड में कोई घर नहीं होने का नियम है, लेकिन यहां सैकड़ों घर नो मेंस लैंड पर ही हैं।

2015 में बांग्लादेश के साथ हुए सीमा समझौते के दौरान भी इन गांवों का मुद्दा उठा था, लेकिन यहां के लोग पुरखों की जमीन छोड़ दूसरी जगह बसने को तैयार नहीं थे, इसलिए मामला ठंडे बस्ते में चला गया। ये जिले हैं- कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, दार्जिलिंग, मालदा, नदिया, मुर्शिदाबाद, उत्तर 24-परगना और दक्षिण 24-परगना।

इलाज के लिए मोगलहाट या दुर्गापुर जाते हैं
कूचबिहार नगरपालिका के अध्यक्ष रबींद्रनाथ घोष मानते हैं कि कूचबिहार जिले के डारीबास गांव के लोग बरसात में इलाज के लिए बांग्लादेश के लालमोनिरहट स्थित मोगलहाट या दुर्गापुर के स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं। नदिया जिले के गांव झोरपाड़ा के अमीरूल हक कहते हैं- हमने इन परेशानियों के साथ जीना सीख लिया है। बीएसएफ के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं- हम मानवता के नाते उनकी मदद करते हैं।

एक कुआं बुझाता है दोनों ओर के गांवों की प्यास
आधा सरदारपाड़ा गांव जलपाईगुड़ी में है तो बाकी बांग्लादेश के तेंतुलिया थाना में। गांव में एक कुआं हैं, जो दोनों ओर प्यास बुझाता है। गांव के बांग्लादेश वाले हिस्से में रह रहे रहमत अली बताते हैं- हम चीनी, नमक और कपड़ों के लिए भारत पर निर्भर हैं।

बांग्लादेश जाते हैं फुटबॉल खेलने
दक्षिण दिनाजपुर के दक्षिणपाड़ा गांव के शुभोजित मजूमदार अपने घर के पिछले दरवाजे से निकल कर रोजाना फुटबॉल खेलने बांग्लादेश जाते हैं। इसके लिए उन्हें पासपोर्ट या वीसा की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि पिछला दरवाजा बांग्लादेश में ही खुलता है। यहां के लोग पानी के लिए भी बांग्लादेश की बस्तियों पर निर्भर हैं।

दिन में सिर्फ चार बार खुलता यह गेट
सीमा पर कंटीले तारों के साथ लोहे के बड़े गेट लगे हैं, जो दिन में 4 बार खुलते हैं। सुबह 6 से 8, 10 से 11, दोपहर 12 से 2 तो शाम 4 से 6 बजे तक। निश्चित समय में काम निपटाकर लौटना पड़ता है वरना वापसी मुश्किल हो जाती है। कुछ लोगों के खेत कंटीले तारों के दूसरी ओर पड़ते हैं।

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मजदूर बाल्टी में छिपाकर और औरतें चूड़ियों में बांग्लादेश से भारत ला रहीं सोना

स्टील की एक बाल्टी। बाल्टी में हरे बैंगन और एक हंसिया। बैंगन के नीचे छिपाई गई प्लास्टिक की बॉटल। ऊपर से उसका ढक्कन बंद और नीचे का हिस्सा कटा हुआ। बॉटल के अंदर एक पुरानी सी थैली में सोने के बिस्किट रखे थे। एक-दो नहीं, बल्कि 21। BSF ने इनका वजन करवाया तो 2.45 किलो निकला। कीमत 1 करोड़ 26 लाख रुपए। पढ़ें पूरी खबर…

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