बंगाल गवर्नर को हैरेसमेंट केस में राजभवन से क्लीन चिट: महिला कर्मचारी के आरोपों को निराधार बताया; TMC ने पूछा- अपने खिलाफ खुद जांच कैसे करवाई

कोलकाता11 मिनट पहले

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राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल के खिलाफ हैरेसमेंट का केस किया था। - Dainik Bhaskar

राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने 2 मई को राज्यपाल के खिलाफ हैरेसमेंट का केस किया था।

बंगाल गवर्नर सी वी आनंद बोस को हैरेसमेंट केस में राजभवन ने क्लीन चिट दे दी है। राजभवन ने गवर्नर के खिलाफ वहां काम करने वाली महिला कर्मचारी के आरोपों को निराधार बताया। राजभवन ने पुडुचेरी के एक रिटायर्ड जज से गवर्नर के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करवाई थी।

न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, शनिवार (20 जुलाई) को रिपोर्ट सामने आई है। इसमें बताया गया कि घटना के प्रत्यक्षदर्शी और आसपास मौजूद लोगों की गवाही की पड़ताल से पता चलता है कि शिकायतकर्ता का आचरण, समय और स्ट्रेटेजी शक पैदा करती हैं। महिलाओं के आरोप और उन्हें लगाने का तरीका संदेह के घेरे में है।

रिपोर्ट में कहा गया, ‘2 मई, 2024 को घटना के दिन प्रधानमंत्री मोदी राजभवन दौर पर थे। उनके दौरे को लेकर स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) ने पहले से ही राजभवन में सिक्योरिटी का जिम्मा ले लिया था। ऐसे में राज्यपाल महिला के साथ छेड़छाड़ के लिए उस दिन को चुनेंगे, यह असंभव लगता है।’

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राजभवन की अन्य महिला कर्मचारियों ने गवाही दी कि राज्यपाल ने उनके साथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया। इसलिए गवर्नर पर लगे आरोप शक पैदा करते हैं। इन आरोपों के पीछे एक भयानक मकसद हो सकता है।’

TMC बोली- राजभवन में एक कॉमेडी सीरियल चल रहा
तरफ, सीएम ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने राजभवन की जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। TMC नेता कुणाल घोष ने कहा है कि राजभवन के भीतर एक कॉमेडी सीरियल चल रहा है। बंगाल गवर्नर अपने खिलाफ खुद ही जांच कैसे करा सकते हैं? वो भी उनसे जो उनका परिचित है। क्या यह कॉमेडी है?

कुणाल घोष ने कहा कि अगर वह निर्दोष हैं तो उन्हें कहना चाहिए कि वह आर्टिकल 361 का गलत फायदा नहीं उठाएंगे और जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं। आर्टिकल 361 के बारे में सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है, हम उसका इंतजार कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों को आपराधिक मुकदमे से मिली छूट की जांच को तैयार
इधर, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार (19 जुलाई) को संविधान के आर्टिकल 361 की रूपरेखा की जांच करने के लिए तैयार हो गया। आर्टिकल 361 राज्यपालों को किसी भी प्रकार के आपराधिक मुकदमे से पूरी तरह छूट देता है।

दरअसल, गवर्नर पर राजभवन की एक महिला संविदा कर्मचारी ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। महिला ने 2 मई को हरे स्ट्रीट थाने में राज्यपाल के खिलाफ लिखित शिकायत दी थी। उसने आरोप लगाया कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी। तब राज्यपाल ने बदसलूकी की।

2 मई को फिर यही हुआ तो वह राजभवन के बाहर तैनात पुलिस अधिकारी के पास शिकायत लेकर गई। हालांकि, संवैधानिक प्रावधान के चलते उन पर कोई केस दर्ज नहीं हुआ। इसके बाद महिला कर्मचारी ने राज्यपाल को छूट देने वाले आर्टिकल 361 की न्यायिक जांच की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश- केंद्र को भी पार्टी बनाएं
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मदद मांगी है। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार को भी नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला कर्मचारी से कहा है कि वह अपनी याचिका में केंद्र को भी पार्टी बनाए।

महिला ने अपनी याचिका में पश्चिम बंगाल पुलिस से मामले की जांच करने और पीड़िता और उसके परिवार को सुरक्षा देने के साथ-साथ उसकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए सरकार से मुआवजा दिलाने की भी मांग की है।

क्या है आर्टिकल 361
भारतीय संविधान का आर्टिकल 361 राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान आपराधिक मुकदमे से पूरी तरह छूट देता है। राष्ट्रपति और राज्यपालों के खिलाफ कोई भी सिविल कार्यवाही 2 महीने की पूर्व सूचना के बाद ही शुरू की जा सकती है। राष्ट्रपति या राज्यपाल बनने के पहले अगर उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ है तो आगे उनके पद पर रहने तक इस तरह के मामलों पर भी रोक लग जाती है।

आर्टिकल 361 (2): राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी कोर्ट में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।

आर्टिकल 361 (3): राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या जेल में रखने की कोई प्रक्रिया उनके कार्यकाल के दौरान नहीं की जाएगी।

वे मौके जब राज्यपाल पर आरोप लगे, लेकिन पद पर रहते हुए कार्रवाई नहीं हुई

पहला मौका: जब​​ सेक्स सीडी में फंसे थे आंध्र प्रदेश के गवर्नर रह चुके एनडी तिवारी​
2009 में एक तेलुगु चैनल ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल एनडी तिवारी की एक वीडियो क्लिप चलाई थी। इस वीडियो में राज्यपाल तीन महिलाओं संग आपत्तिजनक स्थिति में दिख रहे थे।

उस वीडियो क्लिप को तेलुगू चैनल ने प्रसारित किया था। हैदराबाद हाई कोर्ट ने इस वीडियो क्लिप को चलाने पर तुरंत रोक लगवाई थी। उस समय कई महिला संगठनों ने तिवारी के खिलाफ एक्शन लिए जाने की मांग की थी।

एनडी तिवारी के सेक्स स्कैंडल में शामिल होने के बाद विपक्षी दलों और कई महिला संगठनों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

एनडी तिवारी के सेक्स स्कैंडल में शामिल होने के बाद विपक्षी दलों और कई महिला संगठनों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

आर्टिकल 361 की वजह से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस सीडी के सियासत ने ऐसा रंग दिखाया कि राज्यपाल ने उसी दिन शाम को तबीयत ठीक न होने की बात कहकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

दूसरा मौका: जब राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को आरोपों से छूट मिली
1992 के बाबरी मस्जिद बिध्वंस मामले में BJP नेता लालकृष्ण आडवानी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने नए आरोपों के जांच की अनुमति दी थी।

बाबरी मस्जिद विध्वंस में कल्याण सिंह भी शामिल थे, लेकिन 2017 में जब इस बारे में मुकदमा चला तब अनुच्छेद 361 के तहत उन्हें छूट मिली थी।

बाबरी मस्जिद विध्वंस में कल्याण सिंह भी शामिल थे, लेकिन 2017 में जब इस बारे में मुकदमा चला तब अनुच्छेद 361 के तहत उन्हें छूट मिली थी।

बाबरी मस्जिद विध्वंस में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर भी आरोप थे, लेकिन 2017 में वे राजस्थान के राज्यपाल थे, इसलिए उनके खिलाफ न आरोप तय किए गए न मुकदमा चला।

तीसरा मौका: जब मेघालय के राज्यपाल पर कार्रवाई नहीं हुई
2017 में मेघालय के तत्कालीन राज्यपाल वी शनमुगनाथन के खिलाफ भी इस तरह की शिकायतें हुई थीं। तब राजभवन के 80 से ज्यादा कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को 5 पेज में शिकायत लिखी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने राजभवन के कामों के लिए केवल महिलाओं को सलेक्ट किया गया है और एक तरह से राजभवन को ‘यंग लेडीज क्लब’ बना दिया गया है।

इसी साल एक महिला ने भी उन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। हालांकि, शनमुगनाथन ने अपने खिलाफ लगे आरोपों से इनकार किया था। इस मामले में भी राज्यपाल के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकी थी। उस समय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से इस पर फैसला लेने की मांग की थी।

इस आरोपों में घिरने के दो दिन बाद ही शनमुगनाथन ने राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया था।

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हाईकोर्ट ने ममता को गवर्नर पर अपमानजनक टिप्पणी से रोका

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तीन अन्य लोगों पर गवर्नर सीवी आनंद बोस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मनमाना नहीं है। बोलने की आजादी की आड़ में अपमानजनक बयान देकर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं कर सकते। जस्टिस कृष्ण राव ने 16 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि 14 अगस्त तक किसी पब्लिकेशन या सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के जरिए गवर्नर के खिलाफ अपमानजनक या गलत बयानबाजी नहीं की जाएगी। पढ़ें पूरी खबर…

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