नाबालिग आदिवासी लड़कियां बेची जा रही थीं: प्लेसमेंट-एजेंसी के मानव तस्करी रैकेट का भंडाफोड़, 10 को बचाया, ऐसे केस में उम्रकैद तक की सजा

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नई दिल्ली21 मिनट पहले

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दिल्ली में अवैध रूप से चल रही एक प्लेसमेंट एजेंसी पैसे का लालच देकर झारखंड से नाबालिग आदिवासी लड़कियों को लाई। इन लड़कियों को दिल्ली पुलिस ने तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया है। यह खेल 10 साल से चल रहा था।

नोबेल विजेता कैलाश सत्‍यार्थी द्वारा स्‍थापित बचपन बचाओ आंदोलन(बीबीए) ने राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(एनसीपीसीआर), एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट(एएचटीयू) और दिल्‍ली पुलिस के सहयोग से साउथ दिल्‍ली में चल रहे अवैध प्‍लेसमेंट एजेंसी से आदिवासी लड़कियों को छुड़वाया गया। यह सभी ट्रैफिकिंग के जरिए झारखंड के दक्षिणी सिंहभूम जिले से अच्‍छे काम और पैसे की लालच देकर लाई गई थीं।

दूसरे राज्‍यों से लड़कियों को अच्‍छे काम और पैसे के लालच में ट्रैफिकिंग के जरिए लाया जाता है।

दूसरे राज्‍यों से लड़कियों को अच्‍छे काम और पैसे के लालच में ट्रैफिकिंग के जरिए लाया जाता है।

लड़कियों की उम्र 13 से 17 साल के बीच है

पुलिस ने मामले में पांच ट्रैफिकर्स की पहचान की है, जिनमें से दो के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन लड़कियों की उम्र 13 से 17 साल के बीच है। सभी लड़कियों का मेडिकल टेस्‍ट करवाया गया और इसके बाद इन्‍हें चाइल्‍ड वेलफेयर कमेटी के सामने पेश किया जाएगा।

अवैध प्‍लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ कठोर कानून बने

बीबीए के निदेशक मनीश शर्मा ने कहा, ‘हमारा संगठन उन प्‍लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ है, जो गरीबों के बच्‍चों को बहला-फुसलाकर ट्रैफिकिंग का शिकार बनाती हैं।’ हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह आने वाले समय में ऐसी अवैध प्‍लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ एक कठोर कानून लाए।’

ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जब दूसरे राज्‍यों से लड़कियों को अच्‍छे काम और पैसे के लालच में ट्रैफिकिंग के जरिए लाया जाता है। पिछले महीने ही दिल्‍ली के ही एक इलाके से दो बहनों को छुड़ाया गया। इन्‍हें ट्रैफिकिंग के जरिए बहला-फुसलाकर लाया गया था। ट्रैफिकर्स का शिकार ज्‍यादातर नाबालिग लड़कियां होती हैं।

आदिवासी महिला पर डीजल छिड़ककर आग लगा दी।

आदिवासी महिला पर डीजल छिड़ककर आग लगा दी।

आदिवासी महिला को जिंदा जलाया

दो जुलाई को भी एक आदिवासी महिला के साथ हुई एक घटना सामने आई। मध्य प्रदेश के गुना जिले में रहने वाली राम प्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़ककर आग लगा दी। उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती राम प्यारी का वीडियो भी बनाया जो अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है। सहरिया के पति ने किसी तरह से उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया।

मानव तस्करी बड़ा अपराध है

हैरानी की बात ये है कि ड्रग्स और हथियारों के बाद ह्यूमन ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। ताज्जुब की बात ये है कि 82% मानव तस्करी महिलाओं की जिस्मफ़रोशी के लिए की जाती हैं। जबकि बच्चों की तस्करी उनसे भीख मंगवाने, होटलों, ढाबों और दुकानों में बाल मज़दूरी कराने के लिए की जाती है।

क्या है मानव तस्करी कानून

भारत में मानव तस्करी भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत एक अपराध है। इसके अतिरिक्त ऐसे कानून भी हैं जो विशिष्ट कारणों से की गई तस्करी को रेगुलेट करते हैं। जैसे यौन उत्पीड़न के लिए मानव तस्करी के संबंध में अनैतिक तस्करी एक्ट, 1986 है। इसी प्रकार बंधुआ मजदूरी रेगुलेशन एक्ट, 1986 और बाल श्रम रेगुलेशन एक्ट, 1986 बंधुआ मजदूरी के लिए शोषण से संबंधित हैं।

नाबालिग की तस्करी के लिए 10 साल की सजा से लेकर उम्र कैद और जुर्माना है।

नाबालिग की तस्करी के लिए 10 साल की सजा से लेकर उम्र कैद और जुर्माना है।

किसको कितनी सज़ा

नाबालिग की तस्करी के लिए 10 साल की सजा से लेकर उम्र कैद और जुर्माना, एक से ज्यादा नाबालिग व्यक्ति की तस्करी में उम्र कैद और जुर्माना है। इसके अलाव एक व्यक्ति की तस्करी में 7-10 साल की सजा और जुर्माना, एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी में 10 साल की सजा से लेकर उम्र कैद और जुर्माना और तस्करी में शामिल लोक सेवक या सरकारी अधिकारी को आजीवन कारावास, और जुर्माना का प्रावधान भी है।

आदिवासी महिला पर अत्याचार

भारत आदिवासी महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2020’ के आंकड़े के मुताबिक इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है। देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 की तुलना में 9.3 प्रतिशत ज्यादा है। इन मामले में सबसे आगे मध्य प्रदेश है जहां कुल 29 प्रतिशत केस दर्ज किए गए। ‘एनसीआरबी’ के मुताबिक अदालत में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 केस दर्ज हैं जिस पर सुनवाई पूरी हुई लेकिन सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है।

कैदियों में भी आदिवासियों की संख्या बढ़ी

एनसीआरबी के ही आंकड़ों के जेलों में बंद कैदियों में अनुसूचित जनजाति के कैदियों की संख्या भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में ही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद देश में लिंचिंग के मामले नहीं रुक रहे हैं।

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