देश में बिना सोचे-समझे दवा ले रहे लोग: एक साल में 500 करोड़ एंटीबायोटिक टैबलेट्स खरीदी गईं, इनमें एजिथ्रोमाइसिन टॉप पर

नई दिल्ली9 मिनट पहले

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कोरोना महामारी की शुरुआत से ही भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की खरीदारी काफी बढ़ गई थी। हालांकि, इसके पहले भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया जर्नल में प्रकाशित एक हालिया स्टडी के मुताबिक, 2019 में देश में 500 करोड़ एंटीबायोटिक टैबलेट्स कंज्यूम की गईं। इनमें से कई दवाएं ऐसी हैं, जिन्हें ड्रग कंट्रोलर से मंजूरी भी नहीं मिली है।

ऐसे हुई रिसर्च
रिसर्चर्स ने प्राइवेट सेक्टर के ड्रग सेल्स डेटाबेस PharmaTrac के डेटा को एनालाइज किया। यह डेटा 9 हजार विक्रेताओं से इकट्ठा किया गया था। इसके बाद एक्सपर्ट्स ने कई श्रेणियों में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रति व्यक्ति निजी क्षेत्र की खपत की गणना करने के लिए डिफाइनन्ड डेली डोज (DDD) मेट्रिक्स का इस्तेमाल किया। किसी भी ड्रग को कंज्यूम करने के लिए उसकी एक औसत डोज तय की जाती है, जिसे DDD कहते हैं।

एजिथ्रोमाइसिन सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा
रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि 2019 में 500 करोड़ DDD कंज्यूम की गईं। यह हर दिन प्रति 1,000 लोगों पर 10.4 DDD के बराबर है। वैज्ञानिकों की मानें तो देश में सबसे ज्यादा एजिथ्रोमाइसिन 500 mg की गोली खाई जाती है। एक साल में 7.6% लोगों ने इसे कंज्यूम किया। वहीं, सेफिक्सिम 200 mg टैबलेट 6.5% के साथ दूसरे नंबर पर है।

बिना सोचे-समझे दवा ले रहे लोग
रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लोग बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक दवाओं को लेने लगते हैं और इनसे होने वाले नुकसानों पर ध्यान नहीं देते। प्रमुख रिसर्चर डॉ शाफी कहते हैं- वो एंटीबायोटिक्स दवाएं जिनका इस्तेमाल अज्ञात बैक्टीरिया के खिलाफ किया जाता है, उनका इस्तेमाल भी संभलकर करने की जरूरत है। ऐसे ड्रग का इस्तेमाल उसी सूरत में किया जाना चाहिए जब किसी मरीज की जान संकट में हो और उसके अंदर अज्ञात बैक्टीरिया का पुख्ता संदेह हो।

कई ड्रग्स को मंजूरी नहीं
रिसर्च में शामिल दवाओं में से केवल 45.5% दवाएं सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के नियमों को फॉलो करती हैं। शाफी ने कहा कि कंपनियां राज्यों से बिना केंद्रीय रेगुलेटर की इजाजत के ही लाइसेंस प्राप्त कर लेती हैं। इस तरह फंसने वाला पेंच देश में एंटीबायोटिक्स की उपलब्धता और बिक्री को और उलझा देता है।

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