देवी-देवताओं की जाति पर JNU चांसलर का बयान: बोलीं- कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं; शिव आदिवासी जो सांप के साथ कब्रिस्तान में बैठते थे

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10 घंटे पहले

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की कुलपति ने शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने सोमवार को देवी-देवताओं और जाति को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदू देवता किसी ऊंची जाति से नहीं आते हैं। भगवान शिव भी शूद्र हैं, क्योंकि वे श्मशान में बैठते हैं।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने दिल्ली में एक सेमिनार रखा, जिसका विषय था- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर थॉट ऑन जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड।

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हम आज तक कास्ट सिस्टम क्यों मान रहे- शांतिश्री
शांतिश्री पंडित ने कहा, “कोई देवता ब्राह्मण नहीं है। सबसे ऊंचा दर्जा क्षत्रिय का है। शिव जरूर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के होंगे, क्योंकि वह श्मशान में सांप के साथ बैठते हैं। उनके पास पहनने के लिए बहुत कम कपड़े हैं। मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण कब्रिस्तान में बैठ सकते हैं। तो स्पष्ट रूप से देवता ऊंची जाति से नहीं आते हैं। अगर आप देखें लक्ष्मी, शक्ति और जगन्नाथ सभी देवी-देवता आदिवासी हैं। तो हम अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रख रहे हैं, जो बहुत ही अमानवीय है।”

भारतीय समाज और अंबेडकर पर भी दिया बयान

  • अगर भारतीय समाज कुछ अच्छा करना चाहता है तो जाति को खत्म करना बेहद जरूरी है। मुझे समझ में नहीं आता कि हम उस पहचान के लिए इतने इमोशनल क्यों हैं, जो भेदभावपूर्ण और असमान है। हम इस आर्टिफिशियल आइडेंटिटी की रक्षा के लिए किसी को भी मारने के लिए तैयार हैं।
  • बौद्ध धर्म सबसे महान धर्मों में से एक है, क्योंकि यह साबित करता है कि भारतीय सभ्यता असहमति, विविधता और अंतर को स्वीकार करती है।
  • गौतम बुद्ध ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के पहले विरोधी थे। वे इतिहास के पहले तर्कवादी भी थे। आज हमारे पास डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की पुनर्जीवित की हुई एक परंपरा है।

जालौर की घटना पर कहा- दुर्भाग्य है आज जाति जन्म पर आधारित
शांतिश्री ने अपने भाषण में राजस्थान में नौ साल के दलित लड़के की मौत का जिक्र किया, जिस पर उसकी ऊंची जाति के टीचर ने हमला किया था। वे बोलीं-“दुर्भाग्य से आज जाति जन्म के आधार पर होती है। अगर कोई ब्राह्मण या मोची है, तो क्या वह पैदा होते ही दलित हो जाता है? नहीं, मैं ऐसा इसलिए कह रहीं हूं क्योंकि हाल ही में राजस्थान में एक दलित को सिर्फ इसलिए पीट-पीटकर मार डाला गया, क्योंकि उसने पानी को पिया नहीं, बस छुआ था। कृपया समझिए, यह मानवाधिकार का सवाल है। हम एक साथी इंसान के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं।”

9 भाषाओं की जानकार हैं JNU की कुलपति
प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, कन्नड, मलयालम और कोकणी भाषा अच्छी तरह जानती हैं। वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं। इनमें पार्लियामेंट एंड फॉरेन पॉलिसी इन इंडिया, रिस्ट्रक्चरिंग एन्वायरनमेंटल गवर्नेंस इन एशिया-इथिक्स एंड पॉलिसी शामिल हैं। पढ़ें पूरी खबर…

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