तलाक के बाद गोद लिए बच्चे का क्या होता है: प्रॉपर्टी और पैसे पर उसका कानूनी हक लेकिन मेंटल टॉर्चर बना सकता है क्रिमिनल

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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देश में बेटियों को गोद लेने वाले लोग बढ़े हैं। सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी ने अपनी वेबसाइट पर नया डेटा अपलोड किया है। अप्रैल 2021 और मार्च 2022 के बीच देश में 2991 बच्चों को गोद लिया गया जिनमें 1698 लड़कियां हैं। भारत के लिए यह एक अच्छी खबर है कि लोगों की लड़कियों के प्रति सोच बदल रही है।

लेकिन कुछ ऐसे मामले भी देखने को मिले, जिसमें कपल्स ने बच्चा गोद लिया और बाद में उनका तलाक हो गया। ऐसे में जब रिश्ते टूटते हैं तो बहुत कुछ बदल जाता है। खासकर बच्चे का भविष्य सबसे ज्यादा खतरे में होता है।

मम्मी-पापा का तलाक, बच्चे का भविष्य न कर दे खाक

दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता ने बताया कि तलाक हमेशा तकलीफ देता है। यह बच्चे की मानसिक स्थिति के लिए कभी अच्छा नहीं होता। बच्चा पहले ही गोद लिया होता है, ऐसे में उसके मन में आता है कि वह अनचाहा बच्चा है। कई बार वह खुद को तलाक के लिए दोषी समझने लगता है। या पेरेंट्स ही उसे तलाक के लिए जिम्मेदार बता देते हैं।

इन हालातों से गुजरे बच्चे खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए खतरनाक हो सकते हैं। बच्चा डिप्रेशन का शिकार होने के अलावा क्रिमिनल भी बन सकता है। यहां तक कि वह आत्महत्या या दूसरों का मर्डर कर सकता है। वहीं, अगर कोई गोद ली गई बच्ची है तो वह टीनेज में गलत कदम उठा सकती है।

पेरेंट्स हर कदम सोच कर उठाएं

तलाक की स्थिति में पेरेंट्स को बहुत समझदारी से काम लेने की जरूरत है। सबसे पहले तो कभी भी बच्चे को इस बात का अहसास नहीं होने दें कि वह गोद लिया हुआ है।

अगर बच्चा 10-12 साल का है तो उसे बता दें कि वह एडॉप्ट किया हुआ है क्योंकि अगर उसे बाहर से बता चलेगा तो उसकी मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा।

कोर्ट बच्चे की उम्र देखकर लेता है कस्टडी का फैसला

तीस हजारी कोर्ट के एडवोकेट नवीन कौशिक ने हमें बताया कि अगर कोई कपल तलाक लेता है तो अधिकतर मामलों में कस्टडी मां को मिलती है। लेकिन इसके लिए बच्चे की उम्र भी देखी जाती है। उसी हिसाब से फैसला होता है। अगर मां को कस्टडी मिली है तो पिता को बच्चे का खर्च देना होता है।

हालांकि पिछले 2 साल में कोर्ट ने यह भी फैसला किया कि अगर पति-पत्नी वर्किंग हैं तो बच्चे पर मां को 40% और पिता को 60% खर्च करना होता है।

अगर कपल बच्चे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होते तो कोर्ट उन्हें तलाक नहीं देता। वहीं, गोद लिया हुआ बच्चा वापस अनाथ आश्रम को लौटाया नहीं जा सकता है।

गोद लिया बच्चा मां-बाप की प्रॉपर्टी में पूरा हकदार

कानून की नजर में गोद लिया बच्चा लीगल संतान ही माना जाता है। उसका अपने माता-पिता की प्रॉपर्टी और पैसे पर पूरा हक होता है। अगर किसी पेरेंट्स की जॉइंट प्रॉपर्टी हो या उनकी जितनी भी सेविंग हैं, उसका हिस्सा बच्चे को मिलेगा।

बच्चे का 2 साल तक पूछते हैं हालचाल

घरौंदा संस्था के संस्थापक ओमकार ने बताया कि सरकारी नियमों के मुताबिक ही बच्चे को गोद दिया जाता है। एक बार एडॉप्ट होने के बाद हम 2 साल तक बच्चे की स्थिति को मॉनिटर करते हैं। उसके हालातों पर नजर रखते हैं।

अगर कोई दंपति बच्चे को मारता-पीटता है, उसे स्कूल नहीं भेजता या किसी और तरह की समस्या होती है तो हम बच्चे को वापस ले लेते हैं। अगर माता-पिता का तलाक हो रहा है तो कोर्ट उस बच्चे को लीगल ही मानता है और माता-पिता में से किसी एक को कस्टडी देता है।

गोद लेने वाले कपल्स और बच्चे में 25 साल का अंतर हो

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को सेंटर एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी देखता है। यह महिला और बाल कल्याण मंत्रालय का एक हिस्सा है। गोद लेने वाले कपल्स और बच्चे की उम्र में 25 साल का अंतर होना चाहिए। उन्हें बच्चे के लिए नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिकाओं के ऑफिस में आवेदन करना होता है।

इसके साथ ही दोनों पेरेंट्स को एक-एक शपथ पत्र देना होता है। नियम के मुताबिक अगर कोई भारतीय बच्चे को गोद लेता है तो उसे 40 हजार रुपये शुल्क के रूप में देने होते हैं।

वहीं, कानूनी शुल्क अधिकतम 8 हजार रुपये तक तक हो सकता है। अगर कोई विदेशी कपल बच्चे को गोद ले तो उन्हें 5 हजार डॉलर शुल्क के रूप में जमा करना होता है।

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