डार्क वेब से हो रहा नारकोटिक्स का कारोबार: लखनऊ से ऑपरेट हो रहा इंटरनेशनल गैंग, 400 रुपए की दवा 400 डॉलर में बेची जाती है

2 घंटे पहलेलेखक: आशीष उरमलिया

लखनऊ के आलमबाग से नकली और बैन की गई दवाओं की सप्लाई विदेशों तक हो रही है। इस धंधे से जुड़े लोग मेडिसिन मार्केट से दवाइयां खरीदकर मेक्सिको के रास्ते अमेरिका और रूस भेजते हैं। ये काला कारोबार डार्क वेब से चलता है और इसमें पैसों का लेनदेन बिटकॉइन से होता है।

इस धंधे का नेटवर्क बड़ा है। फिलहाल, UP STF ने इससे जुड़े 6 लोगों को गिरफ्तार किया है। रेड में आरोपी शहबाज खान, जावेद खान, शाहिद अली आर्यन राज और गौतम लामा के पास से Tramanof- p, Tramef- Ap, spasmo proxyvon की 1300 टैबलेट बरामद हुई हैं। ये सभी दवाइयां अमेरिका समेत सभी यूरोपीय देशों में प्रतिबंधित हैं।

भास्कर ने इस गैंग की चेन तोड़ने वाले एसटीएफ अफसरों से बात की। हमने डार्क वेब से चलने वाले इस काले धंधे को समझा। आइए, पहले डार्क वेब को समझते हैं फिर इस मामले की तह तक जाते हैं…

UP STF ने डार्क वेब के जरिए नारकोटिक्स ड्रग्स सप्लाई करने वाले गैंग का सरगना शाहबाज खान को बताया है।

UP STF ने डार्क वेब के जरिए नारकोटिक्स ड्रग्स सप्लाई करने वाले गैंग का सरगना शाहबाज खान को बताया है।

ड्रग्स, हथियार, आतंकवाद जैसे गैरकानूनी कामों का अड्डा है डार्क वेब
डार्क वेब एक ऐसी जगह है जहां ड्रग्स, हथियार, अंडरवर्ल्ड, हैकिंग, टेरर फंडिंग और सभी गैरकानूनी काम होते हैं। एक्सपर्टस के मुताबिक, आम लोग यानी हम और आप जिस इंटरनेट का उपयोग करते हैं वो इंटरनेट की दुनिया का महज 5 से 10% हिस्सा है। इसे सरफेस वेब कहा जाता है। बाकी का 90 से 95% हिस्सा डार्क वेब है। इसे सर्च इंजन पर इंडेक्स यानी सूचीबद्ध नहीं किया जाता।

यूज करने के लिए एनोनिमिटी टूल्स और खास ब्राउजर्स की जरूरत
डार्क वेब को नार्मली एक्सेस नहीं किया जा सकता है। इसके लिए यूजर को अपना IP एड्रेस बदलकर एक खास ब्राउजर का इस्तेमाल करना होता है। इसके साथ ही सर्फिंग करने के लिए कुछ खास तरह के एनोनिमिटी टूल्स यानी यूजर की आइडेंटिटी प्राइवेट रखने वाले टूल्स और VPN का इस्तेमाल भी करना होता है। फिर इसके जरिए अपराधी मानव तस्करी, ड्रग्स स्मगलिंग, चाइल्ड ट्रैफिकिंग करने जैसी कई खतरनाक चीजों के लिए करते हैं। इसके जरिए सायनाइड जैसे जहर तक की बिक्री होती है।

डार्क वेब पर वेबसाइट का डोमेन नेम .Onion के साथ खत्म होता है।

डार्क वेब पर वेबसाइट का डोमेन नेम .Onion के साथ खत्म होता है।

वेबसाइट एक्सटेंशन के पीछे .com या .in नहीं होता, .Onion होता है
डार्क वेब पर ये पता लगा पाना लगभग असंभव होता है कि यहां पर कितनी वेबसाइट हैं? और उन्हें कौन किस काम के लिए यूज करता है? यहां कौन किसको क्या बेच या खरीद रहा है इसका पता लगा पाना काफी मुश्किल है। पूरा लेन-देन क्रिप्टो करेंसी से होता है। इसके चलते कौन किसको कितना अमाउंट भेज रहा है? ये कोई नहीं बता सकता।

इन वेबसाइट्स के डोमेन नेम फुली सिक्योर्ड और इनक्रिप्टेड होते हैं। इनके एक्सटेंशन के पीछे .com या .in नहीं बल्कि .Onion लगता है।

अमेरिकी सेना ने अपनी सहूलियत के लिए बनाया था डार्क वेब
डार्क वेब की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी। अमेरिकी सेना ने दुनियाभर में फैले अपने खुफिया एजेंट्स से सूचनाएं प्राइवेट तरीके से पाने के लिए इसे बनाया था। डार्क वेब पर कम लोग होने की वजह से सूचनाएं लीक हो जाती थीं। इसके चलते अमेरिका ने डार्क वेब को आम लोगों के लिए भी जारी कर दिया ताकि किसी भी हालत में सूचनाएं लीक ना होंं।

अमेरिकी सेना ने ये Tor ब्राउजर बनाया था जिसे डार्क वेब की जड़ माना जाता है।

अमेरिकी सेना ने ये Tor ब्राउजर बनाया था जिसे डार्क वेब की जड़ माना जाता है।

अब,
डार्क वेब के जरिए विदेशों में बैन दवाइयां सप्लाई करने वाले लखनऊ के गैंग के काम करने के तरीके को जान लेते हैं…

ड्रग्स तलाश रहे विदेशियों का डेटा निकालकर उनसे कांटेक्ट करते हैं
इस नेटवर्क की चेन को तोड़ने वाले UP STF के डीएसपी अमित कुमार सिंह ने बताया, “अपराधी डार्क वेब के जरिए यूएस, रशिया और मेक्सिको में ऑनलाइन ड्रग्स की तलाश कर रहे लोगों की लिस्ट तैयार करते हैं। फिर वहीं पर उनसे कांटेक्ट कर डील करते हैं।”

नारकोटिक दवाओं का बैच नंबर मिटा कर, जहाज से करते हैं सप्लाई
डीएसपी अमित कुमार ने आगे बताया, “कुछ नारकोटिक ड्रग्स विदेशों में बैन हैं। लेकिन भारत में नहीं। हालांकि, भारत में भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के नहीं मिलती है। धंधा करने वाला गैंग अपनी खास सप्लाई चेन के जरिए इन दवाइयों को बिना प्रिस्क्रिप्शन हासिल कर लेता है। फिर दवाई का बैच नंबर दिया जाता है।”

डार्क वेब में ड्रग्स खरीदना और बेचना सबसे बड़े अपराधों में से एक है।

डार्क वेब में ड्रग्स खरीदना और बेचना सबसे बड़े अपराधों में से एक है।

उन्होंने आगे बताया, “ये गैंग 400 रुपए तक की दवाई 400 डॉलर की कीमत पर विदेशों में सप्लाई कर देते हैं। ये सप्लाई बाई पोस्ट जहाज के जरिए होती है। दवाइयों को खिलोनों जैसी चीजों में भरकर भेजा जाता है। अभी जो 6 अपराधी पकड़े हैं, उन्हें ट्रेस करने के लिए हमने डार्क वेब के साथ उनके सप्लाई के तरीके पर ज्यादा फोकस किया है। पकड़े गए अपराधियों से पूछताछ के बाद हम जल्द ही बड़े ऑपरेटर्स को गिरफ्तार करेंगे और इंटरनेशनल गैंग तक पहुंचेंगे।”

खबरें और भी हैं…