चंद्रयान-3 टीम के कैप्टन सौरभ की कहानी: बेटा पढ़ पाए…इसलिए मां ने कभी नौकरी नहीं की, लंच ब्रेक में साइकिल से घर छोड़ने आते थे पिता

लखनऊ6 मिनट पहलेलेखक: अनुराग गुप्ता

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”हमने जब बेटे को टीवी पर ताली बजाते देखा, तो हमारी आंखों में आंसू थे। ये खुशी के आंसू थे। हम तालियां बजा रहे थे और दूसरी तरफ फोन की घंटियां बज रही थीं। बधाई देने वालों की भीड़ थी। मोहल्ले के लोग भी आ गए। सब बहुत खुश थे। सब कह रहे थे कि आपके बेटे ने इतिहास रच दिया। हम उनसे सिर्फ इतना कहते, यह पूरे देश की जीत है।”

ये शब्द चंद्रयान-3 की लैंडिंग करवाने वाली टीम के सदस्य सौरभ मोहन के पिता राजकुमार धानुक के हैं। जब चंद्रयान की लैंडिंग हुई, तो सौरभ पहली लाइन में बैठे थे। सौरभ की शुरुआती कहानी इंट्रेस्टिंग है। 12वीं के बाद ही इसरो में सिलेक्ट हुए। फिर बीटेक किया। हम पूरी कहानी जानने उनके घर पहुंचे। मां-पिता से बात की।

आइए सौरभ के सफर को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं…

सौरभ के पिता राजकुमार धानुक। जवाहर भवन और इंदिरा भवन के कर्मचारी संघ के महामंत्री हैं।

सौरभ के पिता राजकुमार धानुक। जवाहर भवन और इंदिरा भवन के कर्मचारी संघ के महामंत्री हैं।

सौरभ मोहन का घर लखनऊ के आलमबाग स्थित जेतीखेड़ा में है। घर में माता-पिता और दो बहनें हैं। सौरभ भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। एक बहन सौम्या प्राइवेट कंपनी में जॉब करती है। जबकि छोटी बहन सृष्टि हरियाणा की साई एकेडमी में क्रिकेट की तैयारी कर रही है। पिता रामकुमार धानुक जवाहर भवन में नौकरी करते हैं। वह जवाहर भवन-इंदिरा भवन कर्मचारी महासंघ, उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के महामंत्री भी हैं।

ऑफिस से आकर सौरभ को स्कूल से घर छोड़ते
हमने सौरभ के पिता से चंद्रयान-3 की लैंडिंग वाले दिन का माहौल पूछा, तो वो भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसलिए आरडीएसओ स्थित सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में पढ़ाया। घर से ऑफिस की दूरी करीब 8 किलोमीटर है। ऑफिस जाने के लिए उस वक्त साइकिल हुआ करती थी। ऑफिस आने-जाने में काफी समय लग जाता था। फिर इस बीच स्कूल छूटने पर बच्चों को घर छोड़ना होता था। तो दोपहर के समय भी एक चक्कर साइकिल से आता था।

बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसलिए खुद को कभी सुविधाभोगी नहीं बनाया। जो मिला, उसमें खुश रहा। सौरभ के स्कूल के नंबरों ने कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। हमेशा यही लगता था, जिस चीज के लिए मेहनत कर रहे हैं, उसका परिणाम तो मिल ही रहा है। इंटर-हाई स्कूल में जब इंडिया लेवल पर रैंक आई, तो खुशी दोगुनी हो गई।

मां की मेहनत से हुआ देश का नाम रोशन
सरकारी नौकरी से सारी जरूरतें पूरा होना संभव नहीं था। थोड़े हालात बदले, तो एक स्कूटी ली। लेकिन तब तक पत्नी सुषमा से सारी जिम्मेदारी संभाल ली। सौरभ की सफलता का सारा श्रेय उसकी मां को जाता है। मैं तो कर्मचारी राजनीति से जुड़ने के बाद और व्यस्त हो गया। सौरभ की पढ़ाई-लिखाई का सारा काम सुषमा ही देखती थीं। घर में बैठाकर पढ़ाना, ट्यूशन ले जाना। मुझे घर आने में देर होती थी, तब तक बच्चे सो जाते थे।

यह सौरभ की मां सुषमा हैं, जिन्होंने ने बच्चों की पढ़ाई के लिए नौकरी नहीं की।

यह सौरभ की मां सुषमा हैं, जिन्होंने ने बच्चों की पढ़ाई के लिए नौकरी नहीं की।

बच्चों की पढ़ाई में बाधा न आए, इसलिए नहीं की नौकरी
परिवार में लगभग सभी लोग अच्छे पदों पर हैं। सौरभ की मां सुषमा की बहनें भी सरकारी नौकरी में हैं। लेकिन बच्चों की जिम्मेदारी ने उन्हें नौकरी नहीं करने दिया। सुषमा हाउसवाइफ बनकर बच्चों की पढ़ाई में पूरा समय दिया। जिसका परिणाम आज देश देख रहा है। एक मां की मेहनत ने पूरे देश का नाम रोशन कर दिया।

मां बताती हैं, सौरभ ने शुरू से ही CMS से पढ़ाई की। हाईस्कूल में ऑल इंडिया सेकेंड रैंक आई। इंटर में भी ऐसा ही रहा। ऑल इंडिया रैंक में सेकेंड पोजिशन हासिल की। स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही कॉम्पिटिशन का फॉर्म भरा। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) में 2007 में सिलेक्शन हो गया और सौरभ चला गया।

प्रमोशन पाकर बने स्पेस साइंटिस्ट
इसरो के साथ ही सौरभ ने बीटेक की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 में इंजीनियर के पद पर नियुक्ति मिली। लंबे समय तक इसरो के साथ काम करके सीखते रहे। करीब 4 साल पहले सौरभ को प्रमोशन मिला, तो स्पेस साइंटिस्ट बन गए। चंद्रयान-3 मिशन में सौरभ को बतौर कैप्टन की जिम्मेदारी दी गई। इस मिशन में वह ऑपरेशन मैनेजर थे।

सौरभ मोहन इस प्रोजेक्ट में लगने के बाद कम ही घर आते थे। इधर एक साल से घर ही नहीं आए थे। परिवार से भी उनकी बहुत कम बातचीत होती थी। लेकिन 23 अगस्त को परिवार ने बेटे सौरभ को पहली लाइन में देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लैंडिंग के वक्त पूरा देश वैज्ञानिकों के लिए तालियां बजा रहा था। पीएम नरेंद्र मोदी वैज्ञानिकों को बधाई दे रहे थे।

हम लोग देश के लिए काम कर रहे हैं…
मां ने बताया, आज भी जब फोन आता है, तो सौरभ बताते हैं कि यहां सब चीज काफी अच्छी है। हम लोग देश के लिए काम कर रहे हैं। हम इतना इसीलिए पढ़े-लिखे हैं, जिससे देश का गौरव बढ़ाएं। अब इधर-उधर कहीं नहीं जाना है। इसके आगे की तैयारी करनी है।

मां ने बताया कि जब से चंद्रयान की लैंडिंग हुई है, सिर्फ हाल-चाल ही मिल रहा है। सौरभ की व्यस्तता और बढ़ गई है। जिस दिन लैंडिंग हुई, उस दिन हर तरफ खुशी का माहौल था। एक तो हमारे देश ने इतना बड़ा काम किया। उसमें हमारा बेटा भी शामिल था, तो खुशियां और बढ़ गईं। टीवी पर बेटे को पहली पंक्ति में देखकर आंख में आंसू थे। इतनी खुशी हो रही थी कि बता नहीं सकते। छोटी बेटी हरियाणा में थी और वहां से सौरभ को टीवी पर देख रही थी। वह अगले ही दिन वहां से लखनऊ के लिए चल दी।

सौरभ मोहन का परिवार। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद जवाहर भवन में उनके पिता को सम्मानित किया गया।

सौरभ मोहन का परिवार। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद जवाहर भवन में उनके पिता को सम्मानित किया गया।

बचपन से ही कुछ न कुछ बनाता रहता था सौरभ
मां सुषमा बताती हैं कि सौरभ को बचपन से ही ऐसे खेलों में लगा रहता था। छोटी उम्र होने की वजह से ये तो नहीं बता पाता था कि साइंटिस्ट बनना है, लेकिन कुछ न कुछ बनाता रहता था। कभी किसी फिजूल चीजों पर ध्यान नहीं दिया। पढ़ने में काफी अच्छा था, तो स्कूल से भी काफी सपोर्ट मिलता था। उसका रुझान देखकर स्कूल से ही फॉर्म भरने की राय दी गई। पहली बार में ही सौरभ का सिलेक्शन हो गया।

जगदीश गांधी ने दी बधाई
पिता रामकुमार धानुक ने बताया कि चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद सीएमएस के संस्थापक जगदीश गांधी ने सौरभ को कॉल करके बधाई दी। साथ ही सौरभ को पढ़ाने वाली टीचरों के कॉल अभी तक आ रहे हैं। इन बधाई संदेशों से सौरभ को और हौसला मिल रहा है।

इस सफलता के बाद से लोगों के कॉल तो आ ही रहे हैं। साथ ही कर्मचारी संघ के महामंत्री होने के चलते काफी लोग जानते हैं। ये खबर ऑफिस में आग की तरह फैल गई। साथ के कर्मचारियों ने एक सम्मान समारोह का आयोजन किया। जहां पर सौरभ के माता-पिता को सम्मानित किया गया।

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