गंगा में डूबे काशी के श्मशान, 5000 क्विंटल लकड़ी बर्बाद: गलियों में हो रहे दाह संस्कार, बाढ़ ने मणिकर्णिका-हरिश्चंद्र घाट के डोम समाज की आमदनी छीनी

3 घंटे पहलेलेखक: आशीष उरमलिया और देवांशु तिवारी

1 सितंबर, 2022, बनारस की सकरी गलियों से गुजरते हुए हम मणिकर्णिका पहुंचे। घाट तक पहुंचते, उससे पहले ही हमें गलियों में कतार में रखी हुईं 10 से 15 लाशें दिखीं। थोड़ा आगे बढ़े तो कुछ लोग लाशों को नाव पर चढ़ाते नजर आए।

दरअसल, काशी का महाश्मशान कहा जाने वाला मणिकर्णिका घाट गंगा में डूब चुका है। मुर्दों को जिस जगह जलाया जाता है, वहां तक शव पहुंचाने के लिए लोगों को नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। घाट पर क्रियाकर्म कराने वाले डोम समाज के लोग भी गंगा के इस विकराल रूप से सहमे हुए हैं।

भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर पूरी स्थिति का जायजा लिया। इसके साथ ही डोम समाज और घाट पर लकड़ी का बंदोबस्त करने वाले लोगों से बात कर उनके हालात जाने। आइए, एक-एक कर सब की बातों पर चलते हैं…

मसान के डूबने से 30% डोम समाज ने किया काम बंद

ये तस्वीर मणिकर्णिका घाट शवदाह ग्रह की है। डोम समाज के अमरजीत चौधरी ने बताया, "हमारे लोग यहां ड्यूटी लगा कर काम करते हैं।"

ये तस्वीर मणिकर्णिका घाट शवदाह ग्रह की है। डोम समाज के अमरजीत चौधरी ने बताया, “हमारे लोग यहां ड्यूटी लगा कर काम करते हैं।”

डोम समाज के अमरजीत चौधरी बीते 10 साल से मणिकर्णिका घाट पर क्रिया-कर्म करा रहे हैं। इंच-दर-इंच बढ़ रहे गंगा के पानी की ओर इशारा करते हुए वो कहते हैं, “20 दिन हो गए हैं, मसान बाबा को देखा नहीं। जब से ये काम शुरू किया है, इतनी बाढ़ कभी नहीं देखी। अगर पानी कम नहीं हुआ, तो आने वाले समय में यहां अंतिम संस्कार बंद करना पड़ेगा।”

अमरजीत आगे कहते हैं, “मुर्दे जलाने का काम हरिश्चंद्र घाट पर भी होता है। अधिकतर डोम समाज इन्हीं घाटों के आस-पास रहता है। यहां के ज्यादातर घर आधे डूब गए हैं। इसलिए हमारी बिरादरी के 30% लोग फिलहाल काम पर नहीं आ पा रहे हैं।”

बाढ़ में 5000 क्विंटल लकड़ी हुई गीली, शवदाह में घंटों लग रहे

मणिकर्णिका घाट पर लकड़ी की दुकान के मालिक शीतल प्रसाद कहते हैं- गीली होने की वजह से लकड़ियां 100 रुपए कम दाम में बेचनी पड़ रही हैं।

मणिकर्णिका घाट पर लकड़ी की दुकान के मालिक शीतल प्रसाद कहते हैं- गीली होने की वजह से लकड़ियां 100 रुपए कम दाम में बेचनी पड़ रही हैं।

डोम राजा परिवार के राजू चौधरी ने बताया कि बाढ़ से पहले यहां हर दिन 80 से 100 मुर्दे जलते थे, लेकिन अभी घाट पर पानी भरने से मुश्किल से 30-40 बॉडी आ रही हैं। बाढ़ के पानी के कारण अब तक 5000 क्विंटल से ज्यादा लड़की गीली हो गई है। इससे शवदाह के काम में देरी हो रही है और लोगों को घंटों परेशान होना पड़ रहा है।

हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में जलाए जा रहे शव

गंगा का जलस्तर बढ़ने के बाद हरिश्चंद्र घाट से सटी गलियों में दाह संस्कार किए जा रहे हैं।

गंगा का जलस्तर बढ़ने के बाद हरिश्चंद्र घाट से सटी गलियों में दाह संस्कार किए जा रहे हैं।

हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम संस्कार कराने वाले डोम बहादुर चौधरी ने बताया, “घाट पर रोजाना औसतन 15 से 20 डेड बॉडी आ रही हैं। घाट डूबने से अब गली में मुर्दे जलाए जा रहे हैं। गलियों में शव जलाए जाने से 2 दिक्कते हैं। पहली- गलियों के आस-पास रहने वालों को दिक्कत हो रही है। दूसरी- सकरी गली में जलती हुई चिता की आंच बहुत ज्यादा लगती है। इसके धुंए से तबीयत बिगड़ने लगती है।”

काशी में 5 हजार की डोम आबादी, सरकारी मदद नहीं मिलती

डोम लालू चौधरी ने बताया- हमारी बिरादरी के आधे से ज्यादा के पास राशन कार्ड तक नहीं है। फार्म भरते हैं, जवाब नहीं आता।

डोम लालू चौधरी ने बताया- हमारी बिरादरी के आधे से ज्यादा के पास राशन कार्ड तक नहीं है। फार्म भरते हैं, जवाब नहीं आता।

बाढ़ ने क्रिया-कर्म कराने वाले डोम समाज की आमदनी पर भी गहरी चोट पहुंचाई है। डोम लालू चौधरी कहते हैं, “पहले बंगाल और बिहार के साथ देश के कोने-कोने से लोग मिट्टी लेकर आते थे। बाढ़ के चलते बहुत कम लोग आ रहे हैं। पहले दिनभर में 5-6 मुर्दों को आग देने के 4 से 5 हजार रुपए मिल जाते थे, अब दिन भर में हजार रुपए भी मुश्किल से कमा पा रहे हैं।”

लालू ने आगे बताया, “सरकार को ये पता है कि बाढ़ में हम लोगों के लिए अंतिम संस्कार कराना कितना मुश्किल है। बावजूद इसके हमें और शव लेकर आ रहे यात्रियों को कोई मदद नहीं मिल रही है। पूरी काशी में डोम समाज के 5 हजार लोगों की आमदनी इसी काम से जुड़ी है, लेकिन आधे से ज्यादा लोगों के पास राशन कार्ड तक नहीं है।”

अब…
यहां तक आपने डोम समाज से जुड़े लोगों की बातें सुनी। अब काशी के श्मशान घाटों से जुड़े आंकड़ों पर चलते हैं…

आखिर में ‘डोम’ शब्द की मीनिंग जान लीजिए…
‘डोम’ का असल मतलब है अंतिम संस्कार करवाने वाला। हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं। आदमी का जीवन गर्भाधान संस्कार से शुरू होता है और दाह संस्कार के साथ खत्म। वैसे तो ज्यादातर डोम खुद को ब्राह्मण मानते हैं पर उनका असली धर्म श्मशान की सेवा ही है।

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