कुत्ते के छू लेने से अपवित्र हो जाता है गंगाजल: सिर्फ बाबा विश्वनाथ को ही चढ़ाया जाता है उत्तरायणी गंगा का जल, चार तरह की यात्रा-कठिन होते हैं नियम

कुत्ते के छू लेने से अपवित्र हो जाता है गंगाजल: सिर्फ बाबा विश्वनाथ को ही चढ़ाया जाता है उत्तरायणी गंगा का जल, चार तरह की यात्रा-कठिन होते हैं नियम

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: दीक्षा प्रियादर्शी

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सावन का महीना चल रहा है। कहते हैं ये महीना भगवान शिव को प्रिय है, इसलिए इस महीने में लोग शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना और जलाभिषेक करते हैं। लोग इस महीने में कांवड़ लेकर ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने जाते हैं, कई तो अपनी क्षमता अनुसार पैदल भी जाते हैं। कुछ इच्छा पूरी होने पर तो कुछ मन्नत लेकर बाबा की पूजा के लिए पहुंचते हैं। चाहे जैसे भी हो भगवान भोले के भक्त उनके दर पर पहुंच ही जाते हैं।

कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा की प्रथा

पंडा धर्मरक्षिणी सभा देवघर के महामंत्री कार्तिक नाथ ठाकुर की मानें तो कांवड़ यात्रा की प्रथा हजारों साल पुरानी है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीराम ने इस प्रथा की शुरुआत की थी और ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाया था। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि भगवान शिव के परम भक्त परशुराम ने पहली बार इस कांवड़ यात्रा को सावन के महीने में ही किया था। कहा जाता है कि इस यात्रा को पूरा करने वाले भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है। ज्यादातर लोग गोमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से गंगाजल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। भक्त जो कांवड़ लेकर जाते हैं वो बांस से बनी होती है। इसके दोनों छोरों पर घड़े बंधे होते हैं जिसमें गंगाजल होता है। इन्ही घड़ों को गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा को पैदल पूरा किया जाता है। कुछ लोग तो नंगे पांव ही यात्रा करते हैं, तो कुछ लोग अपनी सुविधा के मुताबिक वाहन का प्रयोग करते हैं।

मान्यता के अनुसार कांवड़ में जल भर कर जिस भी ज्योतिर्लिंग के लिए संकल्प करते हैं, वहीं जाकर जल चढ़ाया जाता है। झारखण्ड के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ धाम (जिसे देवघर के नाम से भी जाना जाता है) की बात करें तो वहां लोग पहले सुल्तानगंज से गंगाजल भर कर संकल्प करवाते हैं और फिर अपनी क्षमता अनुसार धाम पहुंचते हैं। वहीं वाराणसी में स्थित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की बात करें तो गंगा नदी के उत्तरायणी होने के कारण, वहां से जल भर कर केवल बाबा विश्वनाथ को चढ़ाया जाता है, वहां से जल भर कर किसी दूसरे ज्योतिर्लिंग पर नहीं चढ़ाया जाता।

वाराणसी में बहने वाली गंगा नदी उत्तरायणी है, इसलिए वहां से भरा हुआ जल सिर्फ विश्वनाथ मंदिर में ही चढ़ाया जाता है।

वाराणसी में बहने वाली गंगा नदी उत्तरायणी है, इसलिए वहां से भरा हुआ जल सिर्फ विश्वनाथ मंदिर में ही चढ़ाया जाता है।

कठिन होते हैं इस यात्रा के नियम

महामंत्री कार्तिक नाथ ठाकुर बताते हैं कि इस यात्रा को लेकर जो भी नियम हैं वो बेहद कठिन होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िये अपनी कांवड़ ​​​​​​को जमीन पर नहीं रख सकते। इसके अलावा बिना नहाए इसे छूना पूरी तरह वर्जित है।

कांवड़िया चाहे तो बीच में रुक कर कांवड़​​​​​​ को किसी पवित्र स्थान पर रखकर आराम, फलाहार या सात्विक भोजन, जैसा भी उसने तय किया हो ग्रहण कर सकता है। मगर इसके बाद दोबारा कांवड़ उठाने के पहले उसे नहाना होगा, उसके बाद ही वो अपनी यात्रा वापस शुरू कर सकता है। यात्रा के दौरान कांवड़ियों का मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन ग्रहण करना वर्जित माना गया है। पूरे महीने ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है

कांवड़ यात्रा के मद्देनजर सरकार द्वारा रास्ते में कई कैंप लगाए जाते हैं, जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

कांवड़ यात्रा के मद्देनजर सरकार द्वारा रास्ते में कई कैंप लगाए जाते हैं, जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

कुत्ता छू ले तो अपवित्र हो जाएगा गंगाजल

जिस गंगाजल को सबसे पवित्र माना गया है, जिसे शुद्धिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अगर उसे कुत्ता छू ले तो अपवित्र हो जाता है। इसलिए कांवड़ यात्रा करने वाले को सबसे ज्यादा ध्यान इस बात का रखना पड़ता है कि गलती से भी उसके कांवड़ को कोई कुत्ता न छू ले। अगर ऐसा होता है तो उसे दोबारा जल भरकर अपनी यात्रा शुरू करनी होगी।

कितने प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा

शास्त्रों में कांवड़ यात्रा के चार प्रकार बताए गए हैं। पहला, सामान्य कांवड़ यात्रा, इसमें कांवड़िया अपनी जरूरत के हिसाब से और थकान के मुताबिक जगह-जगह रुक कर आराम करते हुए इस यात्रा को पूरा कर सकता है। दूसरा, डाक कांवड़ यात्रा, जिसमें कांवड़िया जब तक भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं कर लेता, तब तक उसे लगातार चलते रहना होता है। तीसरा, दांडी कांवड़ यात्रा, इसमें कांवड़िया गंगा के किनारे से लेकर जहां पर भी उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना हैवहां तक दंड करते हुए यात्रा पूरी करता है। चौथा, खड़ी कावड़, जिसमें कांवड़िया के साथ एक सहयोगी रहता है। जब कावड़िया आराम कर रहा होता है तो सहयोगी उसे कंधे पर रखकर चलने की प्रक्रिया करते रहते है, जिससे ये माना जाता है कि बिना रुके यात्रा पूरी हुई।

कांवड़ यात्रा चार तरह की होती हैं, जिन्हें नियमानुसार पूरा करना पड़ता है।

कांवड़ यात्रा चार तरह की होती हैं, जिन्हें नियमानुसार पूरा करना पड़ता है।

गंगाजल को घर में रखने और प्रवाहित करने के नियम

गंगाजल को घर के किसी पवित्र स्थान में रख सकते हैं, जैसे पूजा घर। इसके अलावा महीने में एक दिन कलश में जल को भर कर 108 बार गायत्री मंत्र का पाठ करे के पूरे घर में जल को छिड़कें, इससे घर निगेटिविटी खत्म हो जाएगी। गंगाजल को किसी नदी या पीपल के पेड़ में ही प्रवाहित करना चाहिए। अगर ये न हो पाए तो घर के किसी पौधे में भी डाल सकते हैं।

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