कांग्रेस से आजाद हुए गुलाम: कांग्रेस के बुजुर्ग, युवाओं को संबल देने की बजाय पूछ-परख कम होने का रोना रो रहे हैं

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6 घंटे पहले

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कांग्रेस निराशा, बेचैनी और पराजय की अभ्यस्त है। 1957 में उसने पहली बार हार का स्वाद चखा था जब ईएमएस नम्बूदिरीपाद के नेतृत्व में वामपंथी गठबंधन ने केरल चुनाव में कांग्रेस को दचका था। वैसे फिलहाल कांग्रेस बदले स्वरूप में ही सही, इसके संस्थापक एओ ह्यूम के बताए रास्ते पर ही चल रही है।

संयुक्त प्रांत के आगरा और अवध में वर्षों सेवा देने वाले अंग्रेज अफसर ह्यूम ने सेवानिवृत्ति के बाद अंग्रेज अफसरों और भारतीयों के बीच कड़ी के रूप में एक आंदोलन शुरू किया जिसने 1885 में कांग्रेस का रूप लिया। सुरेंद्रनाथ चटर्जी द्वारा खड़ा किया गया आंदोलन भी कांग्रेस में ही विलीन हो गया था।

ह्यूम के शब्दों में उनके इस प्रयास का उद्देश्य तब के शासकों और भारतीयों के बीच एक सुरक्षा कपाट (सेफ्टी वॉल्व) बनना है। अभी भी कांग्रेस एक सेफ्टी वॉल्व बनकर ही रह गई है। एक जमाने में कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर खेत की मिट्टी में रची बसी कांग्रेस अब उन्हीं खेतों की मिट्टी में धंसती जा रही है, तो इसका ज़िम्मेदार कौन है?

दरअसल, गुलाम आज आजाद हो गए हैं। कश्मीरी नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ दी है। वे 73 बरस के हो गए हैं। कांग्रेस ने उन्हें हर सम्मान दिया। केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी महासचिव। … और वो सब कुछ जो वे पाना चाहते थे, लेकिन अभी भी उनकी भूख शांत नहीं हुई है।

ऐसे बुजुर्गों को पद की भूख की बजाय निःस्वार्थ भाव से कांग्रेस को वर्तमान संकट से उबारने का काम करना चाहिए। ग्रुप 23 बनाकर इन्होंने पार्टी में बदलावों का बीड़ा उठाया था, लेकिन खुद ही उठकर चल दिए। श्रीमती इंदिरा गांधी के जमाने से जब तक कांग्रेस का राज रहा, गुलाम नबी ने सत्ता ही तो भोगी है! फिर क्या कसर रह गई है जिसे वे अब पूरी करना चाहते हैं?

पार्टी में जब बदलाव होते हैं तो नए नेता आगे आते हैं और बुजुर्गों को पीछे खड़ा होकर उन्हें संबल देना होता है लेकिन गुलाम नबी और उनके जैसे कई मसलन आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल आदि को संबल देना तो आया नहीं, पूछ परख कम होने का गम सताने लगा।

यही वजह है कि गुलाम नबी कांग्रेस से जाते रहे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसने शायद पहले ही भांप लिया था कि गुलाम आजाद होने वाले हैं और शायद वह इस मूड में आ गई थी कि भला हो, इनसे पीछा छूटे!

पहले भी कांग्रेस से कई नेता गए हैं और निकाले भी गए हैं। राजीव गांधी ने तो मुहिम चलाकर एक बार तमाम बुजुर्गों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था; जिनमें विद्याचरण और श्यामचरण शुक्ल भी शामिल थे,। लेकिन पार्टी से जाते हुए किसी ने नेतृत्व पर सीधा धावा नहीं बोला था।

गुलाम नबी ने पार्टी की तमाम बर्बादी के लिए सीधे राहुल गांधी पर धावा बोल दिया है। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि आपके बेटे राहुल के कारण पार्टी को ये दिन देखना पड़ रहा है।

राहुल पर सीधा हमला अब तक किसी ने नहीं किया है। पार्टी से जाने वाले बुजुर्गों के लिए गुलाम नबी ने रास्ता खोल दिया है। अब बाहर होने वाला हर नेता राहुल गांधी नाम की गागर में ही पत्थर मारेगा

खैर कांग्रेस को अब विचार करना चाहिए कि पार्टी में ऐसा क्यों हो रहा है, लेकिन कांग्रेस है कि अपनी आदतों से बाज नहीं आती। मंथन करने की बजाय भाई लोग लगे हैं गुलाम नबी को कोसने में। सिर्फ इसलिए कि जो जितनी कड़ाई से गुलाम नबी की कठोर से कठोर निंदा करेगा, वह राहुल के उतने ही करीब होगा।

जनवरी 2021 में गुलाम नबी आजाद राज्यसभा से रिटायर हुए तो नेता प्रतिपक्ष का पद उनके हाथ से निकल गया। राज्यसभा से विदाई के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद को बेहतरीन दोस्त बताया और कश्मीर में गुजरात के लोगों पर हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए भावुक हो गए। आजाद के आंखों भी छलक गईं। तब दोनों गुजरात और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।

जनवरी 2021 में गुलाम नबी आजाद राज्यसभा से रिटायर हुए तो नेता प्रतिपक्ष का पद उनके हाथ से निकल गया। राज्यसभा से विदाई के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद को बेहतरीन दोस्त बताया और कश्मीर में गुजरात के लोगों पर हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए भावुक हो गए। आजाद के आंखों भी छलक गईं। तब दोनों गुजरात और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।

लगे हैं सब के सब नंबर बढ़वाने में। कह रहे हैं कि गुलाम नबी मोदीफाइड हो गए हैं। मोदी ने तो गुलाम नबी के सदन से रिटायरमेंट के दिन उनकी प्रशंसा करके एक राजनीतिक पांसा फेंका था। गुलाम नबी तो तब भी आपके परिपक्व नेता थे। वे इस पांसे में फंसे ही क्यों? और भावुक होकर वे फंस रहे थे तो तब आपने उन्हें क्यों नहीं रोका? अब जब चिड़िया चुग गई खेत, तब एक-दूसरे को कोसने से क्या होने वाला है? बात जितनी बढ़ेगी, कांग्रेस की ही छीछालेदर होनी है!

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