ईमेल-सोशल मीडिया पोस्ट में गलत शब्द लिखना भी अपराध: बॉम्बे हाईकोर्ट बोला- इससे भी महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाती है

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मुंबई6 मिनट पहले

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने साल 2009 के मामले में सुनवाई की। - Dainik Bhaskar

बॉम्बे हाईकोर्ट ने साल 2009 के मामले में सुनवाई की।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार (21 अगस्त) को महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले मामले में सुनवाई की। जस्टिस एएस गडकरी और नीला गोखले की बेंच ने कहा कि ईमेल, सोशल मीडिया पर लिखे गए ऐसे शब्द जो किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचा सकते हैं तो वो आईपीसी की धारा 509 के तहत अपराध है।

दरअसल, बेंच ने 2009 के मामले में सुनवाई की। केस में शिकायतकर्ता महिला है। उसने एक व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 509 के केस दर्ज कराया था।

महिला का आरोप था कि साउथ मुंबई की एक सोसायटी में रहे के दौरान व्यक्ति ने उसके खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक ईमेल लिखे थे। मेरे चरित्र पर टिप्पणी की गई थी। और इन ईमेल को सोसायटी के दूसरे लोगों को भी भेजा गया था।

महिला के दर्ज कराए केस को खारिज करने की मांग को लेकर व्यक्ति ने हाईकोर्ट का रुख किया था। उसकी दलील थी कि IPC की धारा 509 में बोले गए शब्द का मतलब केवल बोले गए शब्द होंगे न कि ईमेल या सोशल मीडिया पोस्ट आदि में लिखे गए शब्द।

कोर्ट ने IPC की धारा 354 के तहत लगाए आरोप हटाए बेंच ने कहा कि ईमेल की सामग्री निस्संदेह अपमानजनक है और समाज की नजर में शिकायतकर्ता की छवि और प्रतिष्ठा को कम करने के उद्देश्य से है। अदालत ने मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया।

हालांकि, बेंच ने IPC की धारा 354 (शील भंग करने के इरादे से किसी महिला पर हमला करना या आपराधिक बल का प्रयोग करना) के तहत व्यक्ति पर लगे आरोपों को हटा दिया।

सुनवाई में बेंच की कही बातें

  • आधुनिक तकनीक ने अपमान करने के कई तरीके खोल दिए हैं। जब किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली आपत्तिजनक सामग्री वाला कोई ईमेल उसे देखता है, तो क्या हम अपराधी को बिना डरे चले जाने की अनुमति दे सकते हैं। वो भी सिर्फ इसलिए कि अपमान लिखित है, बोला नहीं गया है।
  • कानून की व्याख्या सामाजिक परिवर्तनों के अनुरूप होनी चाहिए। निष्पक्षता, न्याय और समानता तय करने के लिए कानूनी सिद्धांतों का रिवैल्यूवेशन करना चाहिए।
  • समाज जैसे-जैसे विकसित होता है, कानून की व्याख्या भी उभरती चुनौतियों का समाधान करने और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए विकसित की जानी चाहिए।
  • कानून एक गतिशील यूनिट है जो समाज की बदलती जरूरतों और मूल्यों को प्रतिबिंबित करने और उनके अनुकूल होने में सक्षम है। कानून में उच्चारण शब्द को ‘पांडित्यपूर्ण व्याख्या’ नहीं दी जानी चाहिए।
  • इस तरह की छोटी व्याख्या को स्वीकार किया जाता है, तो पुरुष किसी महिला को बदनाम करने के लिए केवल ईमेल भेजने या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने से परिणाम को सोचे बिना बच निकलेंगे।

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