आजादी की पहली सुबह की कहानी: ज्योतिषों ने 15 अगस्त को बताया था अशुभ, आधी रात नेहरू ने ली शपथ; अकेले फहराया था तिरंगा

14 मिनट पहलेलेखक: रक्षा सिंह

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14 अगस्त 1947 की शाम। सूरज डूबने के साथ ही करीब 200 साल तक अंग्रेजी शासन का प्रतीक बना अंग्रेजी झंडा अब सभी सरकारी इमारतों से उतारा जाने लगा। दूसरी तरफ लुटियंस की बनाई नई दिल्ली के यॉर्क रोड बंगला नंबर 17 पर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। ये उन दिनों जवाहरलाल नेहरू का घर हुआ करता था, जो कुछ ही घंटों में आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले थे।

ऐसे में संन्यासियों ने न सिर्फ उनको पीतांबर पहनाया, बल्कि उनका माथा राख, तिलक से सान दिया। नेहरू जैसे तर्कवादी व्यक्ति ने भी उन संन्यासियों को नहीं रोका। लैरी कॉलिन्स अपनी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखते हैं, ‘नेहरू के सामने जो कठिन समस्याएं आने वाली थीं, उसका उन्हें अंदाजा होने लगा था। उन्हें समझ आ गया था कि आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए हर रास्ते पर चलना होगा, चाहे वो साधन अध्यात्म ही क्यों ना हो, जिस पर वे यकीन नहीं करते थे।’

माथे पर लगी राख को नेहरू ने पोछा ही था कि लाहौर से एक फोन आया

आजादी से पहले हिन्दुस्तान बंट गया। भारत और पाकिस्तान दोनों ही ओर से 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने पलायन किया। इस दौरान करीब 10 से 20 लाख लोग मारे गए थे।

आजादी से पहले हिन्दुस्तान बंट गया। भारत और पाकिस्तान दोनों ही ओर से 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने पलायन किया। इस दौरान करीब 10 से 20 लाख लोग मारे गए थे।

कुछ वक्त बीता। नेहरू ने अपने माथे पर लगी राख पोछी और भाषण की तैयारी में लग गए जो उन्हें कुछ ही घंटे बाद देश को संबोधित करना था। उसी बीच फोन की घंटी बजती है। ये एक ट्रंक कॉल थी जो पाकिस्तान का हिस्सा बन चुके लाहौर से की गई थी। फोन पर बात करने के बाद नेहरू इतने घबराए हुए थे कि उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकल रहा था। उनके चेहरे के हाव भाव पूरी तरह बदल चुके थे।

फोन का रिसीवर रखने के बाद ही उन्होंने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख लिए। हाथ हटाए तो आंखों में आंसू भरे थे। उस वक्त नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी और मेहमान पद्मजा नायडू भी उनके पास थीं। उनके पूछने पर नेहरू ने बताया, “लाहौर के नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाकों में पानी की सप्लाई बंद कर दी है। छोटे-छोटे बच्चे प्यास से तड़प रहे हैं। औरतें हों या बच्चे जो भी पानी लेने के लिए बाहर निकल रहा उसे मार दिया जा रहा। लाहौर शहर धू-धू कर जल रहा था। वहां कत्लेआम मचा हुआ है।”

नेहरू बोले- जब पूरी दुनिया सो रही होगी, भारत आजादी की सांस ले रहा होगा
रुंधे हुए गले से नेहरू बोलते हैं, “मैं अब कैसे देश को संबोधित कर पाऊंगा? क्या बोलूंगा, क्या कहूंगा? जब मुझे पता है कि मेरे दिल का टुकड़ा लाहौर जल रहा है तो मैं कैसे जता पाऊंगा कि मैं देश की आजादी पर खुश हूं।” अपने पिता को ऐसे परेशान देखकर इंदिरा ने काफी देर उन्हें दिलासा देने की कोशिश की। नेहरू ने खुद को संभाला। ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर नेहरू संसद के सेंट्रल हॉल पहुंचे।

नेहरू की सूती बंडी के एक काज में गुलाब का फूल पिरोया हुआ था। वो समय से पहुंच तो गए लेकिन लाहौर की खबर वाला टेलीफोन आने के बाद से ही उनका मन भरा हुआ था। इस भाषण के लिए भी उन्होंने कोई तैयारी नहीं की थी। भाषण लिखने का ना तो नेहरू का मन था और ना ही इतना समय मिल पाया कि वो तैयारी कर पाते। नेहरू को पता था कि सदन के पटल पर वे जो भी बोलें, वो उनके मन की सच्ची आवाज हो। तभी नेहरू की आवाज गूंजी… “आज हमारी प्रतिज्ञा पूरी हो रही है। आज जब दुनिया सो रही होगी, भारत जागेगा और जागते ही आजाद हो जाएगा।”

भाषण के बाद नेहरू बोले- मुझे होश नहीं, मैं क्या कह रहा था

आजादी के लिए 15 अगस्त 1947, दिन शुक्रवार तय हुआ था, लेकिन ज्योतिषी कह रहे थे कि ये दिन अशुभ है। इस‌लिए 14 अगस्त की रात 12 बजे जवाहरलाल नेहरू ने पीएम पद की शपथ ली।

आजादी के लिए 15 अगस्त 1947, दिन शुक्रवार तय हुआ था, लेकिन ज्योतिषी कह रहे थे कि ये दिन अशुभ है। इस‌लिए 14 अगस्त की रात 12 बजे जवाहरलाल नेहरू ने पीएम पद की शपथ ली।

अपने भाषण में नेहरू ने लाहौर या यूं कहें कि पाकिस्तान को भो याद किया। उन्होंने कहा, “इस मौके पर हमें अपने वो भाई-बहन भी याद हैं जो राजनीतिक सीमाओं की वजह से हमसे अलग-थलग हो गए हैं। वो आजादी की खुशियां नहीं मना सकते। वो लोग भी हमारे अपने हैं और हमेशा हमारे ही बने रहेंगे चाहें कुछ भी हो।”

लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखा है- “पंडित नेहरू ने बाद में अपनी बहन को इस भाषण के बारे में बताया कि मुझे होश ही नहीं था कि क्या कह रहा हूं। शब्द जुबान पर आते जा रहे थे और फिसलते जा रहे थे। जबकि दिमाग में लाहौर की आग लगी हुई थी।’’ हालांकि वीडियो में नेहरू कुछ पढ़ते नजर आ रहे हैं।

जैसे ही घड़ी ने 12 का कांटा छुआ, कड़कती बिजली के साथ जोरदार शंखनाद हुआ। हजारों की भीड़ ने संसद भवन को घेर रखा था। नेहरू के साथ हॉल में मौजूद हर व्यक्ति की आंख में आंसू थे। मूसलाधार बारिश के बीच ‘महात्मा गांधी की जय’, ‘जवाहर लाल नेहरू की जय’ के नारे लगने लगे। सुचिता कृपलानी ने पहले अल्लामा इकबाल का लिखा ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा’ और फिर राष्ट्रगीत ‘वंदेमातरम्’ गाया। रात में ही नेहरू ने पीएम की शपथ ली। दरअसल आजादी के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन तय हुआ था लेकिन ज्योतिषी कह रहे थे कि ये दिन अशुभ है। इस‌लिए 14 अगस्त की रात 12 बजे जवाहरलाल नेहरू ने पीएम पद की शपथ ली।

लेखक खुशवंत सिंह भी उस रात भीड़ में मौजूद थे। उस दिन के वाकये को याद करते हुए वो लिखते हैं- ‘14-15 की रात को मैं पार्लियामेंट हाउस के बाहर था। लोगों में जोश इतना था कि कोई हिसाब ही नहीं था। वहां मौजूद लोगों में ज्यादातर मेरे जैसे लोग थे, जो पाकिस्तान से शरणार्थी बनकर भारत आए थे। लोग अपना सब कुछ गंवा चुके थे, लेकिन उस वक्त भीड़ में इतना उत्साह था कि वे सब कुछ भुलाकर देश की आजादी के नारे लगा रहे थे।’

…अगले दिन देश में आजादी का जश्न होने वाला था।

नेहरू के लिफाफे से गायब हो गई थी मंत्रियों की लिस्ट
15 अगस्त 1947. ये आजाद भारत की पहली सुबह थी। डोमिनिक लापिएर और लैरी कॉलिंस ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाईट’ में इस दिन का आंखों देखा हाल बताया है। उसमें लिखा है कि इंडिया गेट पर आजादी का जो कार्यक्रम होना था उसकी रणनीति लॉर्ड माउंटबेटन के सलाहकारों ने बनाई थी। अंग्रेजी हुकूमत के वक्त कई बड़े कार्यक्रम हुए। उससे ही उन्होंने अनुमान लगाया कि 15 अगस्त के जश्न के लिए इंडिया गेट पर ज्यादा से ज्यादा 30 हजार लोग जुटेंगे।

सुबह 8 बजे सबसे पहले शपथ ग्रहण कार्यक्रम रखा गया। माउंटबेटन ने इस आयोजन को भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन को शपथ दिलाई गई। इसके बाद नेहरू और उनके मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। पंडित नेहरू सूती जोधपुरी पायजामा और कोट पहने हुए थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल सफेद धोती पहने हुए थे। बाकी नेता गांधी टोपी लगाए हुए थे, जिनसे उनको पहचाना जा सकता था।

इस दौरान एक और वाकया हुआ। नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद माउंटबेटन के पास गए और उन्हें देश का पहला गवर्नर जनरल बनने का न्योता दिया। साथ ही पंडित नेहरू ने लार्ड माउंटबेटन को एक लिफाफे में पहली कैबिनेट मंत्रियों की सूची सौंपी। जब वो लिफाफा खोला गया, तो वो खाली निकला। सब हैरान रह गए, लेकिन काफी ढूंढने के बाद वो लिस्ट नेहरू के दफ्तर में ही मिल गई।

पहले माउंटबेटन ने अपना दायां हाथ आगे करके शपथ ली कि स्वतंत्र भारत के पहले सेवक के रूप में वो पूरे हृदय और मेहनत के साथ सेवा करेंगे। इसके बाद एक के बाद एक नेता आते गए और मंत्री पद की शपथ लेते गए। इस कैबिनेट में 5 अलग-अलग धर्मों से आए 13 मंत्री थे, जिनमें एक महिला मंत्री राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया थीं। वायसराय को पहले 31 तोपों की सलामी हुआ करती थी, गवर्नर जनरल की सलामी घटाकर 21 तोपें कर दी गईं। गवर्नमेंट हाउस के बाहर उन 21 तोपों ने गर्जना शुरू किया और पूरी दिल्ली में आजादी की पहली सुबह का ऐलान हो गया।

अंदाजा 30 हजार का था, जश्न मनाने 5 लाख लोग पहुंचे

आजादी का जश्न मनाने के लिए 30 हजार लोगों की उम्मीद थी लेकिन वहां 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।

आजादी का जश्न मनाने के लिए 30 हजार लोगों की उम्मीद थी लेकिन वहां 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।

दिन बीतने के साथ ही दिल्ली की सभी दिशाओं से लोगों का सैलाब संसद भवन और इंडिया गेट के बाहर उमड़ने लगा था। बैलगाड़ियों, तांगों, कारों, ट्रकों, रेलगाड़ियों, बसों, साइकिलों और पैदल चलकर लोगों का रेला पहुंच रहा था। शाम 5 बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में माउंटबेटन को भारत का तिरंगा झंडा फहराना था। उम्मीद 30 हजार लोगों की थी लेकिन वहां 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।

भीड़ को रोकने के लिए लगाई गईं बल्लियां, बैंड वालों के लिए बनाया गया मंच, VIP के बैठने की व्यवस्था और रास्तों पर बांधी गई रस्सियां… सब कुछ जन सैलाब में बह गई। लोग सारी बाधाओं को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे। माउंटबेटन ने इस आयोजन के लिए जो प्लानिंग की थी, वो धरी की धरी रह गई। उनकी खुद की बग्घी भीड़ में फंस गई। बैरिकेडिंग का पता ही नहीं चला।

नेहरू ने पामेला से कहा, लोगों पर चढ़कर मंच पर आ जाओ
इन सब में शाम के करीब 4 बज चुके थे। माउंटबेटन की बेटी पामेला भी अपने पिता के साथ इंडिया गेट पहुंची थीं। सामने जो नजारा था वो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। मंच के आस-पास एक पेपर रखने तक की जगह नहीं थी। मंच से करीब 100 गज पहले से लोग जमीन पर बैठे हुए थे। पामेला को लग रहा था मानो कोई ठोस दीवार हो जिसे भेद पाना उनके लिए नामुमकिन था।

पामेला परेशान खड़ी थीं। तभी नेहरू की नजर उनपर पड़ी। नेहरू से जोर से पामेला को पुकारा और कहा, ‘लोगों के ऊपर से फांदती हुई चली आओ।’ पामेला ने कहा, ‘कैसे आऊं, मैंने ऊंची सैंडल पहन रखी है लोगों को चोट लग जाएगी। नेहरू ने कहा, सैंडल उतार दो। लैरी कॉलिंस लिखते हैं कि पामेला ऐसे ऐतिहासिक मौके पर सैंडल उतारकर लोगों के ऊपर से जाने जैसी हरकत नहीं करना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने हांफते हुए आने से मना कर दिया।

लेकिन नेहरू ने कहा, ‘नादान बच्चों जैसी बातें ना करो। सैंडल उतारकर लोगों के ऊपर पैर रखकर चली आओ। लोग कुछ नहीं कहेंगे। ये सुनकर पामेला ने गहरी सांस ली और सैंडल उतारकर हाथ में पकड़ ली। वो मंच तक बैठे लोगों के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ने लगीं। लोग पूरी खुशी से उनकी मदद कर रहे थे। जब उनके पांव लड़खड़ाने लगते तो लोग उन्हें संभाल लेते। धीरे-धीरे करके वो मंच पर पहुंच गईं। पामेला ने इस वाकए के बारे में अपनी किताब, ‘इंडिया रिमेंबर्ड’ में भी लिखा है।

गवर्नर जनरल माउंटबेटन की बग्गी भीड़ में ही अटक गई थी। वो स्टेज तक नहीं पहुंच पाए और बग्घी पर ही खड़े-खड़े तिरंगे को सलामी दी।

गवर्नर जनरल माउंटबेटन की बग्गी भीड़ में ही अटक गई थी। वो स्टेज तक नहीं पहुंच पाए और बग्घी पर ही खड़े-खड़े तिरंगे को सलामी दी।

पामेला जब मंच पर पहुंचीं तो जो नजारा उन्होंने देखा उसे वो ताउम्र नहीं भूल पाईं। मंच के चारों ओर उमड़ी भीड़ में कुछ महिलाएं ऐसी भी थीं जो आजादी के उल्लास में अपने दूध पीते बच्चों को गेंद की तरह हवा में उछाल दे रही थीं। जब बच्चे नीचे आते तो वो वापस उन्हें उछाल देतीं। इस तरह एक बार में हवा में सैंकड़ों बच्चे नजर आ रहे थे।

सालों के संघर्ष के बाद आखिरकार भारत आजाद हो गया
इसी बीच काफी दूर पर पामेला के पिता और गवर्नर जनरल माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडमिना भी भीड़ में थे, जो स्टेज पर नहीं पहुंच सके, जहां से तिरंगा फहराया जाना था। बग्घी पर बैठे हुए माउंटबेटन समझ चुके थे कि मंच तक जाकर झंडा फहराना उनके बस की बात नहीं है। तभी उन्होंने वहीं से चिल्लाकर नेहरू से कहा, “आप ना मेरा इंतजार करें। ना बैंड बजने का। बैंड वाले भीड़ में कहीं खो गए हैं। आप बस झंडा फहरा दीजिए।”

मंच पर मौजूद नेहरू ने माउंटबेटन की आवाज सुनी और उनके इशारा करते ही हरे, सफेद और केसरिया रंग का तिरंगा पोस्ट के ऊपर जाने लगा। तोपों से गोले छूटने लगे। लाखों लोगों से घिरे माउंटबेटन ने अपनी बग्घी पर ही खड़े-खड़े तिरंगे को सलामी दी। बताते हैं कि जैसे ही तिरंगा लहराया, पश्चिम दिशा की ओर आसमान में एक बड़ा सा ‘इंद्र धनुष’ दिखाई दिया। माउंटबेटन ने अपनी उंगली उठायी और आसमान की ओर इशारा किया।

…आखिरकार अब भारत आजाद हो चुका था।

16 अगस्त 1947 को लाल किले के प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराते देश के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू।

16 अगस्त 1947 को लाल किले के प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराते देश के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू।

ये तो थी आजादी की पहली सुबह की बात। कुछ और स्टोरीज आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं…

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