अशांत क्षेत्र: मणिपुर के समाधान के लिए थोड़ा इंतज़ार कीजिए, चुनाव सिर पर हैं

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31 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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चुनाव हैं तो सिर्फ़ चुनाव ही हैं। देश की तमाम समस्याएँ तब शांत हो जाती हैं जब चुनाव होते हैं। आपको याद होगा – कोविड के दौरान जब हम मास्क लगा रहे थे। हमें भीड़ में जाने से मना किया जा रहा था लेकिन नेताओं के लिए तब कोई कोरोना नहीं था। वे भारी – भरकम रैलियाँ मज़े से कर रहे थे। चुनावों के दौरान ऐसा ही होता है। देश में दूसरा कोई मुद्दा नहीं उठता। कोई सुनने वाला ही नहीं होता। सब के सब चुनावों में व्यस्त रहते हैं।

मणिपुर में भीड़ ने पुलिस वाहन में तोड़फोड़ की। साथ ही वाहन को गिरा दिया।

मणिपुर में भीड़ ने पुलिस वाहन में तोड़फोड़ की। साथ ही वाहन को गिरा दिया।

हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। राज्य सरकार तब भी कुछ नहीं कर पा रही थी जब हिंसा की शुरुआत हुई थी और अब भी कुछ नहीं कर पा रही है। महिलाओं के साथ अत्याचार, स्कूल या कॉलेज जाते बच्चों की हत्या, ये सब बदस्तूर हैं लेकिन किसी को चिंता नहीं है।

इस तस्वीर में मणिपुर में दो स्टूडेंट्स की हत्या करके शव झाड़ियों के बीच फेंक दिए गए।

इस तस्वीर में मणिपुर में दो स्टूडेंट्स की हत्या करके शव झाड़ियों के बीच फेंक दिए गए।

वैसे किसी को राजनीतिक इलाज भी दिखाई नहीं दे रहा है। सैन्य तरीक़े से विवाद का हल किया नहीं जा सकता क्योंकि राज्य के सभी नागरिक इस हिंसक आंदोलन में शामिल हैं। बुधवार को मैतेयी समुदाय के दो छात्रों के अपहरण के बाद उनकी हत्या कर देने का वीडियो सामने आने से मामले ने और भी गंभीर रूप ले लिया है। केंद्र सरकार ने मणिपुर को पहले से ही अशांत क्षेत्र घोषित कर रखा था। इस घटना के बाद इसकी मियाद और बढ़ा दी गई है।

पुलिस ने भीड़ पर काबू करने के लिए रबर बुलेट और पैलेट गन चलाई।

पुलिस ने भीड़ पर काबू करने के लिए रबर बुलेट और पैलेट गन चलाई।

उधर, असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी गोलीबारी हो रही है। यह सीमा विवाद यहाँ वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन मणिपुर का मामला गंभीर है। राज्य सरकार तो वहाँ कुछ कर नहीं पा रही है लेकिन केंद्र सरकार को इस बारे में कोई समाधान तलाशने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। अभी नहीं तो चुनाव बाद ही सही, मणिपुर का हल हर हाल में खोजा जाना ज़रूरी है। वहाँ लोगों के स्कूल छूट गए। घरों पर ताले पड़े हैं। लोग यहाँ- वहाँ अपने रिश्तेदारों के घर शरण लेकर वक्त गुजारने को मजबूर हैं। खेत सूने पड़े हैं। न उनके किसान वहाँ जा पा रहे हैं, न फसलों की बुआई हो पा रही है।

ये 27 सितंबर की तस्वीर है। स्टूडेंट्स ने लगातार दूसरे दिन छात्रों की हत्या को लेकर प्रदर्शन किया।

ये 27 सितंबर की तस्वीर है। स्टूडेंट्स ने लगातार दूसरे दिन छात्रों की हत्या को लेकर प्रदर्शन किया।

क़ीमतें आसमान छू रही हैं। लोगों के पास रहने का ठिकाना नहीं है। खाने को दाना नहीं हैं। आख़िर करें तो क्या करें? बहरहाल, फ़िलहाल पाँच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं। नेता अभी आम सभाओं और रैलियों में जुटे हुए हैं। मणिपुर को थोड़ा इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा। और कोई रास्ता भी नहीं है।

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