अमरनाथ यात्रा की आंखों देखी: CRPF और जम्मू पुलिस संभाल रही व्यवस्था, खाने-रहने का इंतजाम लंगर समितियों के नाम, श्राइन बोर्ड का नजर नहीं आया काम

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  • Amarnath Yatra : CRPF And Jammu Police Are Dealing with Preparations, Meals And Lodging Preparations In The Title Of Langar Committees, Work Of Shrine Board Was Not Seen

नई दिल्ली18 मिनट पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा

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अमरनाथ यात्रा शुरू हुए आज 22वां दिन है। इस बीच बादल फटा, शिवलिंग का आकार कम हुआ, लेकिन श्रद्धालुओं के उत्साह में कमी नहीं आई। इन दिनों में कई दफा यात्रा रोकी गई और फिर सुचारू की गई। आधी यात्रा संपन्न होने पर भास्कर की महिला रिपोर्टर ने पैदल यात्रा कर हालात का जायजा लिया। यह यात्रा बालटाल रूट से की गई, जिसमें रिपोर्टर ने पैदल आने-जाने में 17 घंटे लगाए। पढ़िए, अमरनाथ यात्रा की आंखों देखी, जो किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं…

उधमपुर से 10 जुलाई को सुबह करीब 11 बजे श्रीनगर के लिए निकली। दोपहर 1 बजे नाशेरी टनल पार करते ही जम्मू पुलिस ने रोक लिया। पहले पूछताछ और फिर लंबी बातचीत के बाद आगे जाने की इजाजत मिली। शाम के करीब 6 बजे हम बनिहाल पहुंचे, जहां से किसी भी सूरत में आगे जाने की इजाजत नहीं मिली। आखिरकार, पास के ही एक भंडारे में रात गुजारनी पड़ी।अगली सुबह 6 बजे बनिहाल से आगे जाने की इजाजत मिली, जहां से श्यामा प्रसाद मुखर्जी टनल पार करते ही कश्मीर के काजीकुंड में पहुंच गई।

टनल पार करते ही बदल जाता है नजारा
जम्मू की तरफ से जाने पर टनल पार करते ही मंजर बदलने लगता है। चौराहों, गली के मुहानों, छतों, बाजारों में सुरक्षाबलों के जवान भारी संख्या में दिखने लगते हैं। यहां से यात्रा दस्ते को रास्ता देने के लिए पूरे शहर का ट्रैफिक रोक दिया जाता है। सुरक्षाकर्मियों की गाड़ियां साथ चलती हैं। बस की सीट पर बैठी खिड़की के उस पार की हर एक चीज को देखने की भरसक कोशिश करते हुए दोपहर के करीब 2:00 बजे मैं सोनमर्ग पहुंची। रात यहीं बिताने का फैसला किया। लंच करने के बाद स्थानीय लोगों से मिलने, चाय पीने और बातचीत का लंबा सिलसिला शुरू हुआ, जो रात नौ बजे तक चला। उसके बाद होटल के कमरे में आकर सो गई।

बालटाल यात्रा मार्ग से अमरनाथ गुफा की ओर जाते श्रद्धालु। मार्ग बेहद संकरा था, इस कारण श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने के लिए इंतजार भी करना पड़ रहा था।

बालटाल यात्रा मार्ग से अमरनाथ गुफा की ओर जाते श्रद्धालु। मार्ग बेहद संकरा था, इस कारण श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने के लिए इंतजार भी करना पड़ रहा था।

तीसरा दिन: 12 जुलाई की सुबह 5 बजे सोनमर्ग से बालटाल के लिए निकल गई। रास्ते में चेक पोस्ट पर रुकी, जहां से जांच प्रक्रिया पूरी करने के बाद बालटाल पहुंची और फिर दो किलोमीटर पैदल चलकर 7:50 मिनट पर डोमिल चेक पोस्ट में प्रवेश किया। यहां से अमरनाथ पवित्र गुफा के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। बता दें कि सुबह 8 बजे के बाद डोमिल चेकपोस्ट से श्रद्धालुओं की एंट्री बंद कर दी जाती है।

यात्री को आया अटैक, मदद को दौड़े जवान
ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ ऑक्सीजन कम हो रही थी। सांस फूल रही थी। 5 कदम चलते ही थक जा रही थी। इस दौरान मौसम इतना अटपटा कि पल में धूप और दूसरे पल बादल और तीसरे ही पल बारिश शुरू हो गई। जब यात्रियों को लेकर उड़ रहे हेलीकॉप्टर हमसे नीचे नजर आने लगे, तब ‘जल्द पहुंचने वाली हूं’, यह अहसास उत्साह बढ़ाने लगा। रास्ते में एक यात्री को हार्ट अटैक आ गया। सीआरपीएफ के जवान दौड़कर मदद के लिए आ पहुंचे। यात्री को उपचार के लिए ले जाया गया और मुझ समेत बाकी यात्रियों को आगे बढ़ते रहो, चलते रहो..का निर्देश दिया गया।

3 बजे के करीब हम लोग काली माता मंदिर के पास पहुंच चुके थे। यहां से गुफा का रास्ता बेहद कठिन था। चार कदम सीधी खड़ी चढ़ाई। फिर अगले ही चार कदम ढलान। बारिश की वजह से फिसलन और कीचड़। बड़े पत्थरों वाला बेहद संकरा रास्ता, दोनों तरफ सैंकड़ों फीट गहरी खाई और श्रद्धालुओं की भीड़। रास्ते में आगे बढ़ते हुए आता है संगम पॉइंट, यहां पहलगाम से आने वाला रास्ता मिलता है। यहां संकरे से रास्ते पर ट्रैफिक दोगुना हो जाता है। लंबी-लंबी कतारों में गुफा तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को इंतजार करना पड़ता है।

यात्रा मार्ग से गुजरता श्रद्धालुओं का कारवां। संगम प्वाइंट पर बारिश के चलते मार्ग पर फिसलन बढ़ गई। इस कारण पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं को हर कदम संभल-संभल के रखना पड़ रहा था।

यात्रा मार्ग से गुजरता श्रद्धालुओं का कारवां। संगम प्वाइंट पर बारिश के चलते मार्ग पर फिसलन बढ़ गई। इस कारण पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं को हर कदम संभल-संभल के रखना पड़ रहा था।

‘बस थोड़ी दूर और..जल्दी जाइए’
इस बीच दर्शन कर लौट रहे यात्री उत्साह बढ़ाने के साथ ही जल्दी पहुंचने की हिदायत भी दे रहे थे। ज्यादातर यात्रियों से एक ही बात सुनने को मिली- ‘बस थोड़ी दूर और..जल्दी जाइए। वरना मंदिर बंद हो जाएगा।’ यह सुनते ही थकान को परे रख। हम सब फिर आगे बढ़ने लगते। लगातार आठ घंटे तक पहले पहाड़ की खड़ी चढ़ाई। ऊंचे-नीचे फिसलन भरे ढलान और फिर सीढ़ियां चढ़ने के बाद अमरनाथ की पवित्र गुफा पहुंची।

दर्शन करने के बाद मैंने ऊपर से श्रद्धालुओं की भीड़ को देखना शुरू किया। कुछ नारा लगाते तो कुछ हांफते, एक-दूसरे का सहारा देते सीढ़ियां चढ़ रहे थे। रास्ते में जान-पहचान होने के साथ ही मेरे संगी-साथी बने कोई भी शख्स दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था। इस बीच, एक अनाउंसमेंट बार-बार सबका ध्यान खींच रहा था- ”कृपया दर्शन कर चुके सभी यात्री पंचतरणी या फिर बालटाल कैंप के लिए लौट जाएं। मौसम बिगड़ रहा है। यहां किसी का भी रुकना सुरक्षित नहीं है। अनुरोध है कि कोई भी यहां न रुके।”

न दिखे वालंटियर और न नजर आई व्यवस्था
खैर, सुबह से सिवाय एक चॉकलेट और कुछ घूंट पानी के पेट में कुछ नहीं गया था। ऐसे में प्यास से गला सूख रहा था और भूख भी सता रही थी। मंदिर की सीढ़ियों से उतरकर कुछ खाने और फिर घोड़े से वापसी के बारे में सोचा। सीढ़ियों से उतरते वक्त दूर-दूर तक पीने के पानी कोई व्यवस्था नजर नहीं आई। दो जगह पानी की व्यवस्था थी, लेकिन वहां पानी नहीं था। सीढ़ियों के दोनों ओर लगे सीआरपीएफ के कैंप में जवान से मांग कर पानी पिया। बाहर निकलकर अपना मोबाइल और पर्स कलेक्ट किया। फिर श्राइन बोर्ड के वालंटियर्स को खोजने की कोशिश की, लेकिन दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया।

अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन कर लौट रहीं महिला श्रद्धालु।

अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन कर लौट रहीं महिला श्रद्धालु।

तभी मेरा ध्यान गया कि पूरी यात्रा में दिल्ली, पंजाब, राजस्थान समेत कई के राज्यों के लंगर लगे हैं, जो श्रद्धालुओं को निशुल्क रहने और खाने की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। जबकि श्राइन बोर्ड की ओर से खाने-पीने का किसी तरह का कोई इंतजाम नजर नहीं आया। लंगर के अलावा, खाने-पीने की कुछ कमर्शियल शॉप थीं, जिन पर 5 रुपए का बिस्कुट 35 रुपये, चाय 40 से 60 रुपये, कोल्ड ड्रिंक की 24 रुपये की बोतल 70 रुपये, नमकीन का 5 रुपये का पैकेट 20 से 25 रुपये और मैगी 180 से 250 रुपये तक में मिल रही थी।

शाम होते ही मुंह मांगी रकम मांगने लगते हैं घोड़े वाले
इस दौरान रास्ते में मिले दो और यात्री भी साथ आ गए। अब बारी थी- घोड़े वाले से बात करने की। हम तीनों घोड़ा पड़ाव पहुंचे, जहां दो-चार ही घोड़े खड़े थे। बात करने पर जवाब मिला- चलेंगे मैडम, लेकिन 12000 लूंगा, लेकिन घोड़े का दाम तो 2250 से 2800 रुपए ही है, फिर इतना क्यों? मेरे इस सवाल पर घोड़ा वाला थोड़ा झल्ला गया। बोला- मैडम, मौसम खराब है। रात होने को है। यहां रुकने नहीं दिया जाएगा। आपको चलना है तो चलिए, मेहरबानी करके दिमाग खराब मत कीजिए। मेरे पास ही राजस्थान के चुरू का दंपती खड़ा था, जो अपने तीन बच्चों के साथ दर्शन के लिए आया था। बच्चे इतने थक चुके थे कि वे पैदल लौटने की कंडीशन में नहीं थे, लेकिन घोड़े वाले के दाम सुनकर पिता ने पहले कैलकुलेशन किया और फिर पत्नी और बच्चों के साथ पैदल ही चलने के लिए निकल पड़ा।

हम तीनों भी घोड़ा पड़ाव से बालटाल जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ने लगे। तभी मुझे लगा कि एक टेंट में 10 मिनट रुक कर थोड़ी सांस ली जाए। फिर आगे निकला जाए तो ज्यादा बेहतर रहेगा, लेकिन किसी भी टेंट की ओर से इस बात की इजाजत नहीं मिली। मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा- मेडिकल इमरजेंसी है, सिर्फ 10 मिनट। उधर से जवाब मिला- जाइए एसएचओ से परमिशन लीजिए। फिर आना। खैर, यहां से हम तीनों बालटाल की ओर जाने लगे।

अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास घोड़ा पड़ाव पर खड़े घोड़े। फिसलन भरे रास्ते में घोड़े पर सवार यात्री को बचाते हुए घोड़े वाले फिसलकर खाई में गिर जाते हैं। एक घोड़े वाले ने मेरे सामने दम तोड़ दिया।

अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास घोड़ा पड़ाव पर खड़े घोड़े। फिसलन भरे रास्ते में घोड़े पर सवार यात्री को बचाते हुए घोड़े वाले फिसलकर खाई में गिर जाते हैं। एक घोड़े वाले ने मेरे सामने दम तोड़ दिया।

थकते-रुकते कदमों को सहारा दे रहे जवान
नीचे उतरते वक्त हमारे साथ कुछ उम्रदराज महिलाएं भी थीं, जिन्हें एक-एक डग भरना मुश्किल हो रहा था। पत्थरों का सहारा लेकर चलतीं। फिर बैठ जातीं, लेकिन सीआरपीएफ के जवानों की सीटी और आवाज सुनकर फिर चलने को खड़ी हो जातीं। इन महिलाओं से बात करने पर पता चला कि वे आगरा, कोटा, भोपाल, चुरू, राजकोट और दिल्ली से आई हैं। सुबह घोड़े से चढ़ाई की थी, लेकिन अभी घोड़ा या पालकी कुछ नहीं मिल सका और गुफा के पास रुकने भी नहीं दिया जा रहा है। इसलिए वे पैदल ही उतर रहीं हैं।

सीआरपीएफ और एनडीआरएफ के जवान इन महिलाओं को सहारा देकर चढ़ाई वाला इलाका पार करवा रहे थे। साथ ही निर्देश भी दे रहे थे कि यहां कभी भी लैंडस्लाइड हो सकती है, इसलिए जल्दी-जल्दी बढ़ते रहिए। खैर, रुकते-रुकाते हम लोग रात के 1 बजे डोमिल बेस कैंप पर लौट आए। उधमपुर से पुणे से आईं मीना जडेजा और मुंबई की प्रीत कौर भी हमारे साथ चल पड़ी थीं। 13 जुलाई की सुबह जब उनसे कांटेक्ट किया, तब पता चला कि प्रीत की तबियत बिगड़ गई थी, इसलिए वे रात को नहीं लौट पाईं। वे रुकीं कहां? इस पर जवाब मिला कि गुफा के पास तैनात फोर्स से काफी मशक्कत करने के बाद टेंट में रुकने की इजाजत मिल गई थी।

पंचतरणी में 6000 महिलाएं फंसीं
13 जुलाई से तेज बारिश शुरू हुई, जो 16 तक जारी रही। इस बीच, कई दफा यात्रा रोकी गई। 5 दिन तक पंचतरणी में फंसे रहने के बाद अयोध्या के सौरव तिवारी 16 जुलाई को श्रीनगर पहुंचे। सामाजिक कार्यकर्ता सौरव तिवारी बताते हैं कि 15000 से अधिक महिलाएं और पुरुष वहां अभी भी फंसे हैं। इनमें 6000 से अधिक महिलाएं हैं। दो से ढाई हजार महिलाएं 50 साल से अधिक उम्र की हैं, जो इस फिसलन भरे रास्ते पर चलने सक्षम नहीं हैं। वहां उनको बिगड़ते मौसम और रहने-खाने समेत कई तरह की परेशानियां हो रहीं हैं। पंचतरणी में लंगर में भी खाने पीने के सामान की किल्लत होने लगी है।

सौरव तिवारी के मुताबिक, श्राइन बोर्ड की तरफ से दिए गए दिशा-निर्देश क्लियर नहीं हैं। हेल्प डेस्क है, लेकिन वहां कोई मौजूद नहीं है, जिससे समस्याओं को लेकर बात की जा सके। श्राइन बोर्ड की और से बोर्ड लगाए हैं, उन पर कोई नंबर नहीं दिया गया है। श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर जो हेल्पलाइन नंबर दिए हैं, उन पर भी कॉल पिक नहीं हो रही हैं। मेरी आंखों के सामने घोड़े वाला खाई में गिरकर मर गया। लोगों को हार्ट अटैक आ रहे हैं, लेकिन पैनिक सिचुएशन से निपटने के लिए वहां कोई काउंसलर नहीं है। इस दौरान, रिपोर्टर ने श्राइन बोर्ड के सीईओ नितिश्वर कुमार से फोन और मैसेज के जरिये बात करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।

संगम प्वाइंट: यहां पंचतारणी और बालटाल से आने वाला रास्ता मिलता है, जिससे भीड़ बढ़ जाती है। यात्रियों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।

संगम प्वाइंट: यहां पंचतारणी और बालटाल से आने वाला रास्ता मिलता है, जिससे भीड़ बढ़ जाती है। यात्रियों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।

बता दें कि सोमवार शाम तक 2.10 लाख लोग अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन कर चुके हैं। 8 जुलाई को अमरनाथ गुफा के पास बादल फट गया था, जिसमें 19 लोगों की मौत होने और 48 के लापता होने की जानकारी दी गई। जबकि गुफा के पास तैनात एक सीआरपीएफ जवान ने नाम ने बताने की संख्या पर बताया कि हादसे में 37 से ज्यादा जानें गईं हैं, जिनमें से नौ महिलाएं थीं। वहीं करीब 100 लोग लापता हैं।

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