अतीक से पहले मारे गए 3 माफियाओं की कहानी: किसी की प्रेमिका से लोकेशन लेकर STF ने मार गिराया तो कोई पोस्टमॉर्टम हाउस से जिंदा लौट आया

लखनऊ7 मिनट पहलेलेखक: रक्षा सिंह

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माफिया ने हत्या की। इस बात की उतनी चर्चा नहीं। लेकिन माफिया मारा गया। इस बात की चर्चा महीनों चलती है। अतीक और अशरफ की मौत को 7 दिन बीत गए लेकिन आज भी सिर्फ उसकी हत्या, हत्या के तरीके और उपयोग किए गए हथियार की बात हो रही है। यूपी में यह पहली बार नहीं जब किसी माफिया की हत्या हुई हो। इसके पहले भी तीन ऐसे नाम हैं जिनके अपराध इतने भयानक थे कि आज भी लोग याद करते हैं।

आज हम उन्हीं तीन माफियाओं की बात करेंगे। पहला नाम श्रीप्रकाश शुक्ला का है। जिसने सीएम को मारने की सुपारी ली। उसे खत्म करने के लिए एसटीएफ का गठन करना पड़ा। दूसरा नाम मुन्ना बजरंगी का है, जिसे मरा मानकर विधानसभा में जश्न मना लेकिन वह जिंदा निकला। तीसरा नाम विकास दुबे का है जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसवालों को गोलियों से भून दिया था। इन तीनों को ही भयानक मौत मिली। आइए शुरुआत से जानते हैं…

सबसे पहले बात श्री प्रकाश शुक्ल की, जिसकी प्रेमिका से लोकेशन लेकर STF ने उसे मार गिराया। चलिए श्री प्रकाश के जन्म से पूरी कहानी शुरू करते हैं।

श्री प्रकाश शुक्ल ने अपनी बहन को छेड़ने वाले का मर्डर कर दिया, जिसके बाद वो अंडरग्राउंड हो गया।

श्री प्रकाश शुक्ल ने अपनी बहन को छेड़ने वाले का मर्डर कर दिया, जिसके बाद वो अंडरग्राउंड हो गया।

सरकारी टीचर का बेटा था श्री प्रकाश
साल 1973. गोरखपुर के मामखोर गांव में एक सरकारी टीचर के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा श्रीप्रकाश शुक्ल। 20 साल की उम्र तक तो वो लड़का स्कूल जाता, घर पर दोस्तों के साथ खेलता, परिवार के साथ रहकर नॉर्मल जिंदगी जी रहा था। पर अब धीरे-धीरे लड़के का मन पढ़ाई छोड़कर रंगबाजी में लगने लगा।

साल 1993. एक 16 साल की लड़की स्कूल से घर वापस जा रही थी। रास्ते में राकेश तिवारी नाम के एक आदमी ने उसके साथ छेड़छाड़ की। लड़की रोते हुए घर पहुंची और पूरी बात अपनी पिता को बताने लगी। ये लड़की श्रीप्रकाश की बहन थी। जब वो पूरी बात अपने पिता को बता रही थी, उसी वक्त श्रीप्रकाश को भी अपनी बहन के साथ हुई बदतमीजी का पता चल गया।

श्रीप्रकाश बिना कुछ सोचे समझे गया और राकेश तिवारी के सीने में गोली उतार दी। राकेश की मौत हो गई। इसी वाकये से शुरू हुई एक आम लड़के की गैंगस्टर बनने की कहानी। राकेश का मर्डर करके श्रीप्रकाश अंडरग्राउंड हो गया। अब उसकी तलाश दो लोग कर रहे थे। पहली थी पुलिस और दूसरा गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी। पुलिस श्रीप्रकाश को सजा देने के लिए खोज रही थी और हरिशंकर उसे इनाम देने के लिए।

गैंगस्टर बना तो रेलवे के ठेके उसके इशारे पर दिए जाने लगे
राकेश तिवारी, हरिशंकर के कट्टर विरोधी वीरेंद्र प्रताप शाही का खास आदमी था। इसलिए हरिशंकर उसको मारने वाले को इनाम देना चाहते थे और ऐसा हुआ भी। पुलिस से पहले हरिशंकर श्रीप्रकाश तक पहुंच गए। उन्होंने श्रीप्रकाश को पुलिस से बचाकर चार महीने के लिए बैंकॉक भेज दिया।

चार महीने बीते। श्रीप्रकाश बैंकॉक से वापस लौटा। अब वो हरिशंकर के कहने पर अपराधों को अंजाम देने लगा। उसने सबसे पहले हमला किया गोरखपुर में विधायक वीरेंद्र शाही पर। लेकिन वीरेंद्र की जान बच गई। कुछ दिन बाद रेलवे ठेके को लेकर श्रीप्रकाश का हरिशंकर से विवाद हो गया। इसके बाद श्रीप्रकाश ने बिहार के बाहुबली सूरजभान सिंह की तरह दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

श्रीप्रकाश हरिशंकर को छोड़कर सूरजभान के साथ जरूर शामिल हो गया था। लेकिन वो हरिशंकर के दुश्मन वीरेंद्र शाही से अपनी दुश्मनी नहीं भूला। एक दिन वीरेंद्र अपनी प्रेमिका को किराए पर कमरा दिखाने के लिए ले जा रहे थे। प्रेमिका में बारे में किसी को पता ना चले इसलिए गनर और ड्राइवर को घर पर रहने को कहा। इस बात की भनक श्रीप्रकाश को लग गई। वो मौके पर पहुंचा और धड़ाधड़ वीरेंद्र शाही पर फायरिंग शुरू कर दी। वीरेंद्र की मौत हो गई।

साक्षी महराज ने कहा, श्रीप्रकाश ने सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है। इसके बाद हर जगह उसको जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पोस्टर्स लगाए गए।

साक्षी महराज ने कहा, श्रीप्रकाश ने सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है। इसके बाद हर जगह उसको जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पोस्टर्स लगाए गए।

सीएम को जान से मारने की सुपारी ली
3 जून 1998. बिहार में राबड़ी देवी की सरकार में साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री रहे बृज बिहारी प्रसाद की 7 नकाबपोश बदमाश ताबड़तोड़ फायरिंग कर हत्या कर देते हैं। हत्या की जांच हुई तो उसमें श्रीप्रकाश के गुरु सूरजभान का नाम सामने आया। सूरजभान को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि बाद में ये फैसला पलट गया। कहा जाता है कि उन 7 बदमाशों में श्रीप्रकाश भी शामिल था।

UP-बिहार से लेकर दिल्ली पुलिस तक श्रीप्रकाश की तलाश कर रही थी। लेकिन उनके पास उसकी कोई तस्वीर नहीं थी। दरअसल, अपराध की दुनिया में आने के बाद श्रीप्रकाश ने कोई तस्वीर खिंचाई ही नहीं थी। लेकिन बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद एक तस्वीर पुलिस के हाथ लगी। श्रीप्रकाश अपनी भांजी के बर्थडे में शामिल हुआ था, वहीं ये तस्वीर खींची गई। लेकिन फोटो पूरी नहीं थी। पुलिस ने हुलिया पूछा और उसका प्रिंट आउट निकलवाकर पूरे विभाग में भेज दिया।

इसी बीच एक बड़ा खुलासा हुआ। साक्षी महाराज, जो अभी उन्नाव के सांसद हैं, ने कहा, “श्रीप्रकाश ने सीएम कल्याण सिंह की हत्या के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी ले ली है।” यह सुनते ही पूरे प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। आदेश हुए कि किसी भी तरह श्रीप्रकाश को तुरंत पकड़ा जाए। जिंदा या मुर्दा।

श्री प्रकाश की प्रेमिका से लोकेशन लेकर STF की टीम ने उसे ट्रैक किया। उसकी गाड़ी को हर तरफ से घेरकर मार गिराया।

श्री प्रकाश की प्रेमिका से लोकेशन लेकर STF की टीम ने उसे ट्रैक किया। उसकी गाड़ी को हर तरफ से घेरकर मार गिराया।

प्रेमिका से मिली लोकेशन; श्रीप्रकाश एनकाउंटर में मारा गया
श्रीप्रकाश की प्रेमिका गाजियाबाद में रहती थी। वो ज्यादातर उसके साथ रहता और जब भी वहां नहीं होता तो दिन भर उससे फोन पर बात करता। श्रीप्रकाश और उसकी प्रेमिका का नंबर सर्विलांस पर लगाया गया। पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश अपनी प्रेमिका से मिलने गाजियाबाद आ रहा है। दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाईवे पर पुलिस हथियारों के साथ पहुंच गई।

दोपहर करीब 1.50 बजे। अपनी नीली सीएलो कार चलाते हुए श्रीप्रकाश हाईवे पर पहुंचा। साथ में उसके दो साथी और थे। जैसे ही उसकी कार आगे बढ़ी पुलिस की कार भी उसके पीछे लग गई। श्रीप्रकाश को खतरा महसूस हुआ तो उसने अपनी गाड़ी तेजी से भगानी शुरू कर दी।

पुलिस भी उससे ज्यादा तेजी से उसके पीछे भागी और गाड़ी को हर तरफ से घेर लिया। ये देखते ही श्रीप्रकाश ने रिवॉल्वर निकालकर फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन इस बार हथियारों से लैस STF के जवानों ने भी फायरिंग शुरू कर दी और तीनों को मार गिराया। इसके साथ ही श्रीप्रकाश शुक्ल नाम का चैप्टर खत्म हो गया।

ये तो थी श्रीप्रकाश शुक्ल के खात्मे की कहानी। इसकी हत्या के 20 साल बाद दूसरे माफिया मुन्ना बजरंगी की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी जाती है।

17 साल की उम्र में मुन्ना पर दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा
साल 1967. जौनपुर के गांव पूरेदयाल कसेरू में पारसनाथ सिंह के घर लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा प्रेम प्रकाश सिंह। घर में प्यार से सभी ‘मुन्ना’ बुलाते। पिता किसान थे और घर के हालात भी बहुत अच्छे नहीं थे इसलिए पांचवी के बाद ही मुन्ना को स्कूल छोड़ना पड़ा। इसके बाद मुन्ना ने कालीन बुनना सीखा और वही काम करने लगा।

साल 1982. मुन्ना अक्सर गांव में लड़ाई-झगड़ा करता। एक दिन आपसी विवाद की वजह से मुन्ना ने गांव में मारपीट की। पुलिस कंप्लेंट हुई। तब से गांव के लोग भी मुन्ना से डरने लगे। हद तो तब हुआ जब इसके दो साल बाद ही मुन्ना ने अपने सेठ की हत्या कर दी। एक दिन मुन्ना कालीन बुन रहा था।

काम खत्म करने के बाद उसने और उसके दोस्तों ने अपने सेठ भुल्लन से काम के पैसे मांगे। उसने पैसे देने से मना कर दिया और मुन्ना के दोस्त को बुरा भला कहा। कुछ दिन बाद भुल्लन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसकी हत्या का आरोप मुन्ना पर लगा और पुलिस ने उसकी खोज शुरू कर दी।

मुन्ना पुलिस के हाथ तो नहीं आया। लेकिन वाराणसी के एक पूर्व मेयर थे अनिल सिंह, उन्होंने मुन्ना को खोज निकला। उसको पुलिस से पकड़वाने के लिए नहीं बल्कि उससे अपना काम करवाने के लिए। अब मुन्ना अनिल के सारे दुश्मनों का मर्डर करने लगा। पहले अनिल के दुश्मन सीताराम चौरसिया की हत्या हुआ फिर अविनाश राय पर गोली चली लेकिन वो बच गए। एक-एक दुश्मन मारे जाने लगे। इल्जाम लगा मुन्ना पर। मुन्ना का आतंक बढ़ने लगा और यहीं से उनसे नाम पड़ा ‘मुन्ना बजरंगी।’

जब मुन्ना बजरंगी की मुलाकात मुख्तार अंसारी से हुई
अनिल सिंह के साथ रहते हुए एक दिन मुन्ना की मुलाकात बाहुबली मुख्तार अंसारी से हुई। ये वो वक्त था जब मुख्तार अंसारी और बृजेश-त्रिभुवन गैंग के बीच गैंगवॉर शुरू हो चुकी थी। लेकिन अब तक मुन्ना इस गैंगवार में शामिल नहीं था। साल 1990 में साधु सिंह हत्याकांड के आरोपी राजदेव पांडेय की हत्या कर दी गई। उसके बाद मुन्ना का नाम इस गैंगवार से जुड़ा। इस दौरान मुन्ना के पैर में गोली लग जाती है।

खून निकलते हुए लड़खड़ा कर वो किसी तरह मुख्तार के पास पहुंचा। मुख्तार ने तुरंत अस्पताल ले जाकर उसका इलाज कराया। मुन्ना मुख्तार का ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूला और मरते दम तक मुख्तार से साथ ही रहा। कुछ दिन बीते। मुन्ना अब ठीक हो चुका था।

मुन्ना को गोली जौनपुर के बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह ने मारी थी। सही होते ही उसने सबसे पहले नेता की हत्या कर दी। साथ में नेता के गनर समेत एक और आदमी भी मारा गया। यहीं से मुन्ना बजरंगी अंडरवर्ल्ड की दुनिया में बड़ा नाम बन गया।

विधानसभा में मुन्ना के मरने का जश्न मनाया गया, लेकिन…

तस्वीर में मुन्ना बजरंगी है। मुन्ना बाहुबली मुख्तार अंसारी का सबसे खास शूटर रहा है।

तस्वीर में मुन्ना बजरंगी है। मुन्ना बाहुबली मुख्तार अंसारी का सबसे खास शूटर रहा है।

मुन्ना को पकड़ने के लिए साल 4 मई 1998 में यूपी सरकार ने STF के गठन को मंजूरी दे दी। कुछ दिन बाद 11 सितंबर 1998 को STF को मुन्ना के मूवमेंट की जानकारी मिली। वो दिल्ली के करनाल रोड से निकलने वाला था। उसे पकड़ने के लिए जाल बिछाया। मुन्ना काले रंग की स्टीम से वहां पंहुचा तो पुलिस ने उसे घेर लिया।

गाड़ी में मुन्ना के साथ एक साथी और मौजूद था। मुन्ना को खतरा लगा तो उसने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन मुठभेड़ में मुन्ना और उसके साथी को गोली लग गई। STF की टीम दोनों को लेकर लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंची। वहां डॉक्टर ने दोनों को मृत बता दिया।

जब मुन्ना को गोली मारी गई उस वक्त यूपी विधानसभा में बढ़ते अपराध को लेकर कल्याण सिंह की सरकार पर निशाना साधा जा रहा था। इसी गहमागहमी के बीच कल्याण सिंह को एक पर्ची मिली। पर्ची देखते ही सीएम कल्याण सिंह के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पर्ची में लिखा था, ‘STF ने नामी डॉन मुन्ना को मार गिराया।’

उस समय मुन्ना का खौफ इतना ज्यादा था कि जैसे ही कल्याण सिंह ने विधानसभा में ये जानकारी सबको दी सभी ने मेजें थपथपाकर अभिवादन किया। सभी ने कल्याण सिंह को बधाई दी। सदन खत्म हो गया।

…लेकिन मुन्ना बजरंगी अभी जिंदा था
कुछ घंटे बाद मुन्ना की बॉडी को पोस्टमॉर्टम हाउस भेज दिया गया। डॉक्टर्स वहां पहुंचे तो देखा कि मुन्ना की सांसें अभी भी चल रही हैं। डॉक्टर्स ने तुरंत ये बात STF की टीम को बताई। इसी बीच बीजेपी MLA कृष्णानंद राय की हत्या हुई, जिसका इल्जाम मुन्ना पर लगा। साल 2012 में मुन्ना ने जौनपुर के मड़ियाहूं से विधानसभा चुनाव लड़ा। हार गया।

मुन्ना पुलिस कस्टडी में था जहां कुछ शूटर्स जाकर उसकी हत्या कर देते हैं।

मुन्ना पुलिस कस्टडी में था जहां कुछ शूटर्स जाकर उसकी हत्या कर देते हैं।

साल 2016 में मुन्ना के साले की हत्या कर दी गई। उस वक्त मुन्ना की पत्नी ने आरोप लगाया कि STF उनके पति की भी हत्या कर देगी। 8 जुलाई 2018. मुन्ना को झांसी जेल से बागपत जेल भेजा जाता है। अगली सुबह ही जेल में कुछ शूटर्स मुन्ना की गोली मारकर हत्या कर देते हैं। यहीं से मुन्ना चैप्टर हमेशा के लिए खत्म हो गया।

इसके साथ ही मुन्ना बजरंगी का चैप्टर क्लोज हो गया। अब तीसरा माफिया 20 साल बाद नहीं बल्कि 2 साल बाद मार गिराया गया। हम बात कर रहे हैं 2020 में मारे गए विकास दुबे की।
हाईस्कूल में तमंचा लेकर स्कूल जाता था
विकास दुबे 26 दिसंबर 1964. यूपी के चौबेपुर का बिकरू गांव। रामकुमार दुबे और सरला देवी के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा विकास दुबे। शुरू से ही विकास आपराधिक मानसिकता का था। पढ़ाई के लिए उसे चाचा के पास रसूलाबाद भेजा गया लेकिन उसका पढ़ाई से ज्यादा मन माफियागिरी में लगता था। स्टूडेंट्स को डराने और उनके बीच अपना दबदबा कायम रखने के लिए विकास अक्सर तमंचा लेकर स्कूल जाता था।

एक बार स्कूल के वाईस प्रिंसिपल और टीचर ने उससे तमंचा छीन लिया तो उसने उनकी पिटाई कर दी थी। वो अक्सर स्कूल में मार-पीट करता रहता था। लेकिन स्टूडेंट होने की वजह से उसपर कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई थी।

12वीं के बाद रेडियो ठीक करने की दुकान चलाने लगा
विकास ने जैसे-तैसे 12वीं की परीक्षा पास की। उसके बाद उसने रसूलाबाद में ही रेडियो ठीक करने की दुकान खोल दी। चार साल तक उसने उस दुकान पर काम किया। इससे उसका जेब खर्च निकल आता था। लेकिन अब भी उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं था। वो छोटी-छोटी बातों पर मारपीट करता।

इससे परेशान होकर उसके चाचा ने उसे घर बिकरू वापस भेज दिया। बिकरू जाने के बाद विकास में आपराधिक घटनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया। लेकिन विकास के अपराधों से पहले आती है उसकी प्रेम कहानी। पहले उसकी बात कर लेते हैं।

जिस लड़की से प्यार हुआ उसके भाई से कर ली दोस्ती

विकास को अपनी बुआ के घर आने वाली एक लड़की से प्यार हो गया। बाद में उसने कनपटी पर पिस्टल रखकर उससे शादी कर ली।

विकास को अपनी बुआ के घर आने वाली एक लड़की से प्यार हो गया। बाद में उसने कनपटी पर पिस्टल रखकर उससे शादी कर ली।

विकास की बुआ कानपुर के शास्त्री नगर में रहती थीं। वो कुछ वक्त के लिए यहीं रहने गया। यहीं पड़ोस में रहने वाले एयरफोर्स कर्मी एचपी निगम की बेटी रिचा आती थी। विकास से उसकी मुलाकात हुई। रिचा को उसके पापा प्यार से सोनू कहते थे। रिचा से नजदीकी बढ़ाने के लिए विकास ने उसके भाई ज्ञानेंद्र से दोस्ती कर ली।

दोस्ती इतना परवान चढ़ी कि विकास के हर काम में रिचा का भाई ज्ञानेंद्र साथ देने लगा। विकास का रिचा के घर आना-जाना शुरू हो गया। विकास किसी भी बहाने से रिचा के घर पहुंच जाता था। धीरे-धीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ीं और एक दूसरे से प्यार करने लगे। इस बीच, विकास ने रिचा के माता-पिता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। लेकिन उन्होंने दूसरी जाति में शादी करने से मना कर दिया था।

कनपटी पर पिस्टल लगाकर विकास ने रिचा से शादी कर ली
इसके बाद रिचा के पिता ने घर में पाबंदियां लगा दीं। विकास को भी घर आने से मना कर दिया। इससे गुस्साए विकास ने उनकी कनपटी पर पिस्टल लगा दी और जान से मारने की धमकी दी। विकास 1997 में रिचा को भगाकर ले गया और लव मैरिज कर ली था।

कुछ दिन बाद रिचा विकास को छोड़कर वापस आ गई। बाद में विकास की धमकियों के आगे हार मान गई और फिर साथ रहने लगी था। रिचा का भाई विकास का राइट हैंड बनकर काम करने लगा। उस पर कई आपराधिक केस दर्ज हो गए।

फिल्म से प्रेरित होकर उसे विकास पंडित के नाम से जाना जाता था
कम उम्र में ही विकास ने अपना खुद का गिरोह बनाकर अपराध करना शुरू कर दिया। सबसे पहले साल 2001 में शिवली कोतवाली में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी। इस घटना में उसे दोषमुक्त कर दिया गया। इसके बाद उसके हौसले और बढ़ गए। वो लगातार हत्या, धमकाना और जमीन हड़पने जैसे अपराध करता गया।

उसे आस-पास के इलाके में विकास पंडित के नाम से जाना जाता था। यह नाम 1999 की फिल्म अर्जुन पंडित के किरदार के नाम पर रखा गया था। उसे सब इसी नाम से बुलाते थे। धीरे-धीरे विकास एक बड़ा नाम बन गया। साल 2020 में विकास की जिंदगी में एक ऐसी घटना हुई जो उसके लिए काल साबित हो गई। हम बात कर रहे हैं बिकरू कांड की जिसमें 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी।

बिकरू गांव में 8 पुलिसवालों की लाशें बिछा दी गईं
2 जुलाई 2020. कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर, बिकरू गांव। रात के 12 बजकर 45 मिनट। विकास दुबे के बढ़ते आतंक को जड़ से खत्म करने के लिए सीओ देवेंद्र मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस टीम ने बिकरू गांव में धावा बोला। एक साथ तीन थानों का फोर्स पूरी तैयारी के साथ रात के अंधेरे में विकास दुबे को दबोचने पहुंची थी।

बिकरू गांव में जैसी ही पुलिस पहुंची पूरा गांव अंधेरे में डूबा हुआ था। गांव के अंदर जाने के लिए पुलिस की टीम आगे बढ़ी लेकिन सामने JCB मशीन खड़ी थी। रास्ता इतना संकरा कि गाड़ी तो दूर, पुलिस वाले पैदल भी बड़ी मुश्किल से ही आगे बढ़े। JCB मशीन को पार कर पुलिस वाले आगे बढ़ने लगे। थोड़ी दूर चलकर पुलिस की टीम गैंगस्टर के घर के कोने तक पहुंच गई। यहां पुलिसकर्मी ने विकास दुबे के छत पर टॉर्च मारी। टॉर्च की रौशनी जैसे ही बदमाशों तक पहुंची, सामने से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई।

गोलियों की बारिश और भीषण अंधकार के बीच पुलिस के जांबाज अपनी रक्षा के लिए इधर-उधर भागने लगे। गोलियों की गड़गड़ाहट के बीच जिसे जहां पनाह मिली वो अपनी जान बचाने के लिए छिप गया। पहली बार में ही बदमाशों ने 20-22 राउंड फायरिंग शुरू कर दी। एक-एक करके गोली 8 पुलिसकर्मियों को लगी और उनकी मौत हो गई। दरअसल पुलिस के आने की जानकारी विकास को पहले ही लग गई थी इसलिए उसने गांव में पूरी तैयारी कर रखी थी। इस कांड के बाद विकास फरार हो गया।

विकास की गाड़ी पलटी, वो भागा तो पुलिस ने मार गिराया

यूपी पुलिस विकास को लेने एमपी पहुंची। वहां उसकी गाड़ी पलट गई। उसने भागने की कोशिश की तो एनकाउंटर में मारा गया।

यूपी पुलिस विकास को लेने एमपी पहुंची। वहां उसकी गाड़ी पलट गई। उसने भागने की कोशिश की तो एनकाउंटर में मारा गया।

पुलिस अब विकास को ढूंढने में लगी थी। 9 जुलाई 2020 को वह मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में पकड़ा जाता। यूपी पुलिस एमपी पहुंचती है और विकास को यहां लाने की तैयारी करने लगती है। अगले दिन यानी 10 जुलाई की सुबह खबर आती है कि रास्ते में कानपुर के पास उसकी कार पलट गई और फिर उसने भागने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने उसका एनकाउंटर कर दिया। यहीं पर यूपी के तीसरे माफिया को मार गिराया गया।

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