28 सितंबर की सुबह नर्मदा देवी को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। तभी गांव में बाढ़ का पानी भी बढ़ रहा था। गांव में अक्सर बाढ़ का पानी आ जाता था, इसलिए लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। शाम तक नर्मदा का दर्द असहनीय हो गया। सरकारी एंबुलेंस कभी आई नहीं, इसलिए किसी न
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नर्मदा के आसपास की महिलाएं इकट्ठा होने लगीं। तेजी से बढ़ता पानी उसकी झोपड़ी में भी भर गया। वह दर्द से चीख रही थी। महिलाएं जल्दी डिलीवरी की कोशिश कर रही थीं। इन सबके बीच पानी 1 फीट, 2 फीट और फिर 5 फीट तक बढ़ता चला गया। नर्मदा को तुरंत ही उसके घास-फूस के बने छप्पर पर ले जाया गया। वहां उसने एक बेटे को जन्म दिया। अगले एक दिन तक वह उसी छप्पर पर पड़ी रही। नीचे पानी भरा हुआ था।
यह घटना कुशीनगर के शिवपुर की है। नेपाल के वाल्मीकि नगर बैराज से अचानक 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद कुशीनगर और महराजगंज के 7 गांव बर्बाद हो गए। सड़क और फसल बह गई। घरों में रखा अनाज डूब गया। दैनिक भास्कर की टीम अचानक आई इस त्रासदी को कवर करने इस गांव में पहुंची। आइए वहां की स्थिति समझते हैं…
गांव के लोग नाव के सहारे आ-जा रहे हैं।
पहले ऐलान होता था, इस बार अचानक छोड़ा पानी कुशीनगर और महराजगंज यूपी-बिहार की सीमा पर बसे हैं। इन दोनों जिलों में 7 गांव ऐसे हैं, जहां बाढ़ और बारिश के बीच यूपी के किसी रास्ते से नहीं पहुंचा जा सकता। यहां पहुंचने के लिए बिहार की सीमा में प्रवेश करना होगा। पश्चिमी चंपारण जिले में करीब 20 किलोमीटर सफर करना होगा। इसके बाद नाव या फिर ट्रैक्टर के जरिए यहां तक पहुंचा जा सकता है। दैनिक भास्कर की टीम भी इन्हीं रास्तों से गांव में पहुंची।
इस गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर नेपाल-भारत बॉर्डर पर वाल्मीकि नगर बैराज है। यहां से यूपी और बिहार की नदियों में पानी छोड़ा जाता है। हर बार पानी छोड़ने की सूचना दी जाती है। गांवों में लाउडस्पीकर से अनाउंस किया जाता है, लेकिन 28 सितंबर को जब यह बैराज पूरी तरह से भर गया तब कोई सूचना नहीं दी गई। गंडक नारायणी नदी में करीब 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। पहले से ही उफनाई नदी अपने रूद्र रूप में आ गई। रास्ते में जो भी पड़ा, सब बहा ले गई।
गांव में पानी भरा तो लोगों ने इस तरह से छप्पर पर रहने की व्यवस्था की।
कोई छत तो कोई कहीं रात भर भागता रहा शिवपुर के जगदीश भगत कहते हैं, यहां बाढ़ का पानी तो अक्सर आता ही रहता है, लेकिन उस दिन पहले गांठ भर फिर कमर भर और फिर देखते ही देखते गर्दन भर पानी भर गया। लोग अपने जानवरों को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। रात में लोग अपने बच्चों को लेकर छत पर चढ़ गए। रात भर लोग जागते और चिल्लाते रहे।
कमलेश कुशवाहा कहते हैं, हमारे गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता ही नहीं है। आप पनियाहवां से मदनपुर होते हुए नौरंगियां पहुंचेंगे। फिर रोहुआ नाला से होते हुए हम लोगों के गांव में आएंगे। लेकिन जब पानी गांव में बढ़ता है तो आसपास के इलाके भी पूरी तरह से डूब जाते हैं। रोहुआ नाला एकदम भर जाता है। फिर हमारे गांव से कोई कहीं नहीं आ-जा सकता। रास्ता पूरी तरह से ब्लॉक हो जाता है। लोग चौकी बनाकर उसके ऊपर रहते हैं। बकरियों तक को भी वहीं रखते हैं।
बाढ़ का पानी उतरने के बाद घरों में कीचड़ हो गया।
छप्पर पर महिला ने बेटे को जन्म दिया गांव में हमें पता चला कि जिस दिन बाढ़ आई थी, उस दिन मनोज की पत्नी नर्मदा ने छप्पर पर बेटे को जन्म दिया था। हम गांव के कीचड़ से होते हुए मनोज के घर पहुंचे। घर घास-फूस का बना हुआ है। दो झोपड़ी हैं, एक में परिवार रहता है, दूसरे में खाना बनाया जाता है। मनोज कहीं मजदूरी करने गए थे। घर में उनकी पत्नी नर्मदा अपने बच्चे के साथ बैठी थीं। हमने उनसे बात की। उन्होंने कहा कि पानी बढ़ने लगा तो छप्पर पर चले गए। वहीं डिलीवरी हुई। उसी पर हम लोग रात भर रहे। पानी जब कम हुआ तो नीचे उतरे।
गांव की ही गुलाबी देवी कहती हैं, यहां की स्थिति बहुत खराब है। कभी एंबुलेंस नहीं आती। क्योंकि रास्ता ही नहीं है। थोड़ा भी पानी बढ़ने पर चारो तरफ के रास्तों पर पानी भर जाता है। यहां जो हॉस्पिटल है, वहां भी नाम मात्र का इलाज होता है। यहां के इलाज से आराम नहीं होता तो खड्डा जाना पड़ता है। वहां भी अपनी गाड़ी से जाइए, यहां कोई एंबुलेंस नहीं आती।
यहां कुछ सड़कें 2004 के बाद बनी ही नहीं इन इलाकों में हम अपनी गाड़ी से नहीं जा सकते, क्योंकि एक मात्र रास्ता पूरी तरह से डूबा हुआ है। हमें शिवपुर के निजामुद्दीन मिले। उन्होंने बताया कि मैंने इस क्षेत्र के विकास को लेकर पिछले 30 सालों से लगातार संघर्ष किया है। अधिकारियों-नेताओं के पास पत्र भेजे हैं। उनके पास एक जीप है, उसी से कुशीनगर के 4 गांव शिवपुर, नारायणपुर, मर्चहवा, बकुलादाह गए। इसके बाद महराजगंज जिले के सोहगी बरवा, शिकारपुर और भोतहा गांव पहुंचे। नारायणपुर मर्चहवा गांव का तमाम हिस्सा कट चुका है, यहां के बहुत सारे लोग शिवपुर में रहते हैं।
निजामुद्दीन कहते हैं, एक बार नहीं कई बार सड़क के लिए पत्र लिखा। पुल की मांग की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। कभी वन विभाग तो कभी बिहार सरकार के चलते काम नहीं हुआ। क्षेत्र में आपको कई-कई सड़कें तो ऐसी मिलेंगी जो 2004 के बाद कभी बनी ही नहीं।
हम गांव से लौटने के बाद जहां बाढ़ राहत सामग्री बांटी जा रही थी, वहां के लिए निकल रहे थे। पूरे इलाके में देखा कि हर जगह लोग सड़कों पर अपने घरों में रखा अनाज सुखा रहे थे। उस दिन आई अचानक बाढ़ से घर में रखा पूरा अनाज भीग गया था।
यूपी के लोगों को बिहार में मिल रही बाढ़ सामग्री
इन 7 ग्राम पंचायतों में करीब 30 पुरवा हैं। कुल आबादी करीब 50 हजार के आसपास है। सरकार ने एक बार अगस्त महीने में बाढ़ राहत सामग्री बांटी थी और दूसरी बार अब हर परिवार को 10 किलो आटा, 10 किलो चावल, 10 किलो आलू, 1 किलो अरहर की दाल व गुड़, 500 ग्राम नमक, 250 ग्राम हल्दी, धनिया व मिर्च, 2 पीस साबुन, 10 पैकेट बिस्कुट, 1 लीटर रिफाइंड, 5 किलो लाई के साथ मोमबत्ती और माचिस का पैकेट भी मिल रहा।
यूपी के इन बाढ़ प्रभावित गांवों में पहुंचने का रास्ता नहीं है, इसलिए राहत सामग्री बिहार के नौरंगिया गांव से बांटी जा रही है। बाढ़ प्रभावित लोग पहले नाव वाले को 10 रुपए देते हैं, फिर यहां तक आते हैं। सामान ले जाते समय भी नाव वाले को पैसे देने पड़ते हैं। यहां किसी सरकारी नाव की व्यवस्था नहीं की गई है।
राहत सामग्री में मिले आलू दिखातीं हारुन निशा।
राहत सामग्री लेकर किनारे बैठी हारुन निशा मिले हुए आलू को बार-बार पलट रही थीं। हमने पूछा कि क्या हुआ? वह आलू दिखाते हुए कहती हैं कि जो मिला है सब खराब है। अब इसकी शिकायत किससे करें। हमको मिल गया है तो अब इसे ले ही जाना पड़ेगा।
महराजगंज जिले के शिकारपुर से आई रंभा देवी कहती हैं, छप्पर का घर था सब डूब गया। पानी बढ़ा तो हम लोग छप्पर पर चढ़ गए। 4 दिन तक उसी के ऊपर रहे।
शिकारपुर से ही आए राम दुलारे साहनी कहते हैं कि इस साल 2-3 बार बाढ़ आई। लेकिन अबकी बार जितनी आई, उतनी तो जिंदगी में कभी नहीं आई। 36-36 घंटे तक हम लोगों ने खाना तक नहीं खाया। हम लोग चाहते हैं कि एक पुल मिल जाए। सीएम योगी भी आए थे तो उन्होंने पुल बनाने की बात कही थी, अगर वही काम हो जाए हम लोगों के लिए राहत हो जाती।
विधायक बोले- बाढ़ के बीच तेजी से मदद पहुंचा रहे हमने लोगों की समस्याओं को लेकर खड्डा के स्थानीय विधायक विवेकानंद पांडेय से बात की। वह कहते हैं, नेपाल से करीब 6 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया, इससे नदी का जलस्तर बढ़ गया। कई गांव डूब गए। जिस दिन गांव में पानी पहुंचा, उसी दिन प्रशासन भी गांव में पहुंचा और कम्युनिटी किचन बनाया गया। अगले दिन योगी जी का राहत पैकेज गांव में पहुंच गया। हालांकि, मैं यह मानता हूं कि बाढ़ के चलते राहत सामग्री बांटने में 4-5 दिन लग गए।
खराब आलू की क्वालिटी को लेकर वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है, सारी चीजों की क्वालिटी अच्छी है। जो चीजें इसमें हैं, वह एक परिवार की जरूरत है। बाकी यहां जो पुल निर्माण की बात है, वह सीएम योगी की जानकारी में भी है, उन्होंने पिछले महीने यहां का दौरा किया था तभी ऐलान किया था। मुझे भरोसा है कि जल्द ही नारायणी नदी पर पुल बनेगा और हमारे क्षेत्र की जनता को राहत मिलेगी।
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