नई दिल्ली30 मिनट पहले
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1 जुलाई 2023 तक सुप्रीम कोर्ट में 69.76 हजार केस पेंडिंग थे, जो 1 दिसंबर 2023 को बढ़कर 80 हजार हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केस के इस साल का डेटा अभी नहीं आया है।
देश के पेंडिंग मामलों को लेकर नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड की रिपोर्ट आई है, जिसके बाताया गया है कि भारत के कुल 25 हाईकोर्ट में 58 लाख 59 हजार केस पेंडिंग हैं।
इनमें से करीब 42 लाख केस सिविल और 16 लाख केस क्रिमिनल नेचर के हैं। इन 58 लाख में से 62 हजार मामले 30 साल से लंबित हैं। वहीं, 3 केस 72 साल से चल रहे हैं।
इन 3 में से 2 केस कलकत्ता हाईकोर्ट और 1 केस मद्रास हाईकोर्ट में पेंडिंग है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सभी कोर्ट्स (सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट समेत अन्य कोर्ट) में 5 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं।
निचली अदालतों में 70 हजार केस 30 साल से पेंडिंग
- सभी राज्यों के लोअर कोर्ट्स में कुल 4.34 करोड़ केस लंबित हैं। सबसे ज्यादा केस उत्तर प्रदेश 1.09 करोड़ में पेंडिंग हैं, इसके बाद दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है, जहां 49.34 लाख केस पेंडिंग हैं।
- आंकड़े बताते हैं कि निचली अदालतों में पेंडिंग 70 हजार 587 क्रिमिनल केस 30 साल से ज्यादा पुराने हैं। वहीं, 36 हजार 223 सिविल केस 30 साल से ज्यादा वक्त से पेंडिंग हैं।
पिछले 10 साल में बढ़े 46 लाख पेंडिंग केस कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि पिछले 10 साल में सिविल और क्रिमिनल पेंडिंग केस की संख्या जिला स्तर पर 34 लाख से ज्यादा और हाई कोर्ट में 12.5 लाख से ज्यादा है। सुप्रीम कोर्ट में कुल 11 हजार मामले पेंडिंग हैं।
6% आबादी पेंडिंग केस से प्रभावित सुप्रीम कोर्ट ने पेंडिंग केस को लेकर 20 अक्टूबर में सुनवाई की थी। इसमें जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा था कि एक डेटा के मुताबिक, देश में 6% आबादी मुकदमेबाजी से प्रभावित है। यह चिंताजनक स्थिति है।
पेंडिंग केस निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो अहम निर्देश…
- सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर को पांच साल से ज्यादा समय से पड़े पेंडिंग केस को निपटाने के लिए चीफ जस्टिस को कमेटी बनाने के लिए कहा था, जो लगातार इन पर निगरानी कर सके। कोर्ट का कहना है कि न्याय की उम्मीद से लाखों लोग याचिका दायर करते हैं। सभी लोगों को इंसाफ मिले ये हमारी जिम्मेदारी है। न्याय में देरी से लोगों का अदालत से भरोसा कम होने लगता है।
- जिलों और तालुकाओं की सभी अदालतें यह सुनिश्चित करना होगा कि दलीलें पूरी होने के बाद पार्टियां तय दिन पर उपस्थित हों। इसके अलावा मामलों के बयान 30 दिनों के भीतर दर्ज हो जाएं। अगर किसी का बयान तयसीमा पर दर्ज नहीं हो पाया तो लिखित बताएं कि इसमें देरी क्यों हुई।
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