डिजिटल अरेस्ट से 4 महीने में 400 करोड़ की ठगी: डॉक्टर-इंजीनियर और IIT प्रोफेसर को शिकार बना रहे ठग; मास्टरमाइंड दुबई में बैठे

नई दिल्ली4 घंटे पहलेलेखक: एम. रियाज हाशमी

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यूपी, मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत देश के कई राज्यों में ऐसे केस लगभग हर रोज आ रहे हैं। - Dainik Bhaskar

यूपी, मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत देश के कई राज्यों में ऐसे केस लगभग हर रोज आ रहे हैं।

देश में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। डिजिटल अरेस्ट का मतलब वीडियो कॉल के जरिए किसी को गिरफ्तारी का डर दिखाकर उसे उसके ही घर में कैद करके मुंहमांगी फिरौती वसूलना होता है।

एक आकलन के मुताबिक, पिछले 4 माह में करीब 400 करोड़ रु. ठगे जा चुके हैं। ताज्जुब ये है कि इसमें जो शिकार बने हैं, उनमें डॉक्टर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, सैन्य अफसर और आईआईटी प्रोफेसर जैसे उच्च शिक्षित लोग शामिल हैं। यूपी, मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत देश के कई राज्यों में ऐसे केस लगभग हर रोज आ रहे हैं। इसके पीछे दुबई में बैठे मास्टरमाइंड हैं। भास्कर की पड़ताल में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।

इन सभी मामलों में सरकारी खाते बताकर जिन खातों में पैसे ट्रांसफर हुए थे, वे आम लोगों के बैंक खाते हैं और विदेश में बैठे साइबर अपराधियों के नियंत्रण में हैं। यूपी एसटीएफ ने ऐसे 6 लोगों को पकड़ा तो उन्होंने बताया- उनसे कहा जाता था कि ऑनलाइन गेमिंग या ट्रेडिंग का कमीशन उनके खातों में आएगा और ट्रांजेक्शन राशि का 10% मिलेगा। बाद में इनके खातों से पैसा दुबई में डिजिटली ट्रांसफर हुआ। दुबई में बैठे साइबर अपराधियों ने इस पैसे को क्रिप्टो करेंसी में निवेश किया।

ठगी का तरीका 4 केस के जरिए जानिए.

केस-1: लखनऊ में न्यूरोलॉजिस्ट शिकार बनीं, आधार कार्ड से मनी लॉन्ड्रिंग का झांसा लखनऊ की एक न्यूरोलॉजिस्ट 1 से 8 अगस्त तक अपने ही घर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ रहीं। दो दिन में 7 खातों में 2.81 करोड़ रु. का ट्रांजेक्शन किया। डॉ. रुचिका को ईडी अफसर बनकर फोन करने वाले ने कहा कि उनके बैंक एकाउंट का प्रयोग मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है। टंडन ने कहा कि उन्होंने तो खाते से कोई ट्रांजेक्शन किया ही नहीं, तो बताया गया कि जिन खातों से ट्रांजेक्शन हुए, उनसे लिंक मोबाइल नंबर उन्हीं के आधार कार्ड पर लिए गए हैं। बताया गया कि जेट एयरवेज के फाउंडर नरेश गोयल के खातों में ट्रांजेक्शन हुए हैं। उन्हें फिजिकली या डिजिटली जांच का सामना करना होगा।

केस-2: नोएडा में रिटायर्ड मेजर जनरल को पार्सल में ड्रग्स की बात कहकर फंसाया नोएडा में रिटायर्ड मेजर जनरल 10 से 14 अगस्त तक 5 दिन ‘डिजिटल अरेस्ट’ बने रहे। उन्होंने दो करोड़ रु. ठगों के बताए गए बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए, तब उन्हें ठगी का पता चला। मेजर जनरल धीर को डीएचएल कूरियर सर्विस अफसर बनकर फोन करने वाले ने कहा- उनके नाम पर मुंबई से ताइवान के लिए एक पार्सल है। इसमें पांच पासपोर्ट, चार बैंक क्रेडिट कार्ड, कपड़े, 200 ग्राम एमडीएमए (ड्रग्स) और एक लैपटॉप है। उन्हें मुंबई क्राइम ब्रांच में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने के लिए किसी दूसरे कॉल पर ट्रांसफर किया गया। इसके बाद इन्हें भी जांच के लिए सीबीआई अभिरक्षा या डिजिटली पूछताछ के दो ऑप्शन दिए गए।

केस-3: राजस्थान के झुंझुनूं में बिट्स पिलानी की प्रोफेसर श्रीजाता डे​ को शिकार बनाया इसी साल अप्रैल माह में बिट्स पिलानी की प्रोफेसर श्रीजाता डे तीन महीने ‘डिजिटल अरेस्ट’ रहीं। उन्होंने 7.67 करोड़ ट्रांसफर कराए। 80 लाख लोन लेकर भी दिए। श्रीजाता को ट्राई अफसर बनकर फोन करने वाले ने कहा- उनके नंबर पर साइबर क्राइम से जुड़ी शिकायतें हैं, जो एक घंटे में बंद हो जाएगा। उनके आधार नंबर पर दूसरा मोबाइल नंबर भी रजिस्टर्ड है, जिससे अवैधानिक विज्ञापन और उत्पीड़न के मैसेज भेजे गए हैं। मुंबई पुलिस कार्रवाई करने जा रही है। मुंबई पुलिस से फोन आएगा, बात करके पक्ष रख दें। नहीं तो गिरफ्तार किया जाएगा। फिर वीडियो कॉल आया, जिसमें कॉल करने वाला स्क्रीन पर नहीं था, सिर्फ आवाज थी।

केस-4: भोपाल में 66 वर्षीय रिटायर्ड लेक्चरर को फंसाया, बेनामी संपत्ति में कार्रवाई की धमकी दी इसी साल जून में डिजिटल अरेस्ट करके 1.30 करोड़ रुपए ट्रांसफर करा लिए। गैर जरूरी जांच की लंबी प्रक्रिया बचने के लिए एफडी तक ट्रांसफर की। रिटायर्ड लेक्चरर को कस्टम विभाग का अफसर बनकर फोन करने वाले ने कहा-उनके आधार कार्ड का इस्तेमाल करके एक पार्सल कंबोडिया भेजा जा रहा है, जिसमें अवैध सामान है। धमकाते हुए कहा कि उनके पास बेनामी संपत्ति है और उनकी शिकायत थाने में दर्ज कर दी गई है। इसके बाद उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बातचीत आगे बढ़ी तो उन्होंने फोन पर ही जांच का सामना करने के विकल्प को चुना और 7 दिन तक डिजिटल अरेस्ट रहे।

धाराप्रवाह अंग्रेजी में बात, I-कार्ड दिखाते हैं और बैकग्राउंड में लोगो भी ठग धाराप्रवाह अंग्रेजी में बात करते हैं। वीडियो कॉलिंग के दौरान आईडी कार्ड दिखाते हैं। जिस भी एजेंसी के अफसर को कॉल ट्रांसफर करते हैं, उसके बैकड्रॉप पर एजेंसी का लोगो दिखता है। कथित सुनवाई में प्रदर्शित सेटअप भी कोर्ट रूम का होता है, इसलिए लोग विश्वास कर लेते हैं। साइबर जांच से जुड़े एक अफसर बताते हैं कि बहुत पढ़े-लिखे, उच्च पदस्थ व रिटायर्ड लोग कानून का सम्मान अधिक करते हैं। वे इन साइ​बर अपराधियों को असली अफसर मान लेते हैं। जबकि, देश में फोन पर ऐसी जांच और पैसे ट्रांसफर का कोई प्रावधान नहीं है।

डिजिटल हाउस अरेस्ट से बचने के 3 तरीकें…

  • अनजान नंबरों से आई वीडियो कॉल्स से अगर ठगी का अंदेशा हो तो नंबर ब्लॉक करके साइबर अपराध निरोधक सेल को सूचित करें।
  • अपने फोन, लैपटॉप और डेस्कटॉप के पासवर्ड व सॉफ्टवेयर अपडेट रखें।
  • सहायता के लिए तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 या www.cybercrime.gov.in पर जानकारी दें।

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