अशोक तंवर बोले- धर्म-जाति की नीति देख BJP छोड़ी: 5 साल में 5 पार्टियां बदल कांग्रेस में वापसी, सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे – Haryana News

5 सालों में अलग-अलग पार्टियों का प्रचार करते अशोक तंवर।

हरियाणा में भाजपा को छोड़कर अचानक कांग्रेस में शामिल हुए नेता अशोक तंवर का आज पहला बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है, ‘भाजपा जाति और धर्म के नाम पर लड़वाती है। आज हरियाणा के अंदर किस तरीके से जाति का सहारा लेकर, जहां धर्म चले वहां धर्म चलाओ, जहां धर्म

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तंवर गुरुवार को एक चुनावी जनसभा में राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन आज उन्होंने आधिकारिक रूप से सदस्यता ली। इसके बाद दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तंवर ने कहा, ”पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस ने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा और ऐसे अन्य कार्यक्रम आयोजित किए।

भारत जोड़ो यात्रा ने देश को एक दिशा दी और लोगों में कांग्रेस पार्टी के प्रति विश्वास पैदा हुआ है। राहुल गांधी एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरे हैं। BJP राजनीति में जहां भी लागू हो, धर्म और जाति का उपयोग करती है।”

महेंद्रगढ़ में जनसभा के दौरान तंवर कांग्रेस में शामिल हो गए।

महेंद्रगढ़ में जनसभा के दौरान तंवर कांग्रेस में शामिल हो गए।

5 साल कांग्रेस से दूर रहे तंवर भाजपा को छोड़कर अचानक कांग्रेस में शामिल होने के बाद अशोक तंवर को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है। यह उनकी करीब 5 साल बाद फिर से कांग्रेस में वापसी है। उन्होंने 5 अक्टूबर 2019 में कांग्रेस को अलविदा कहा था।

इन 5 सालों में अशोक तंवर ने आम आदमी पार्टी (AAP), तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सदस्यता ली। साथ ही जाने-अनजाने में जननायक जनता पार्टी (JJP) के लिए चुनाव प्रचार भी किया। अब फिर से वह कांग्रेस में शामिल हुए हैं तो उन्हें ट्रोल किया जा रहा है।

उनकी ट्रोलिंग के संदर्भ में कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें अशोक तंवर को विभिन्न पार्टियों के बारे में बोलते हुए देखा जा सकता है। इन वीडियोज में अशोक उन पार्टियों की तारीफ कर रहे हैं, जिन्हें उन्होंने जॉइन कर लिया।

यहां पढ़िए, अलग-अलग पार्टियों के पक्ष में दिए अशोक तंवर के बयान…

JJP के पक्ष में बयान: नहीं, नहीं! सत्ता में आने का नहीं, हमारी तो सरकार बन रही है। अभी सरकार बनेगी JJP की।

AAP के लिए दिया बयान: भारत माता का लाल, करेगा कमाल, केजरीवाल-केजरीवाल।

TMC के पक्ष में बयान: अरे भाई खुली चुनौती है। इस तृणमूल को रोक के दिखाइयो। हम तो इन पापियों को खत्म करने का अकेले ही बीड़ा उठाए हुए थे। अब तो हमारे साथ शेरनी है। कर देंगे नाश इनका।

कांग्रेस के लिए बयान: आज व्यापारी-कर्मचारी त्रस्त है। और आज इनसे कोई मुक्ति दिला सकता है तो वह कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व है। सोनिया गांधी हैं, राहुल गांधी हैं।

BJP की तारीफ करता बयान: और सब जानते हैं इस बात को कि पिछले लगभग 10 वर्षों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश बदला है।

कब-कब किस दल में रहे तंवर…?

2019 में छोड़ी कांग्रेस अशोक तंवर ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI से की थी। उन्होंने दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू (JNU) में पढ़ाई करते हुए NSUI जॉइन की। इसके बाद वह JNU में 1999 में सेक्रेटरी और 2003 में NSUI के प्रेसिडेंट बने।

छात्रों की राजनीति से निकलकर उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर 2009 में सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। वहीं, 2014 में भी कांग्रेस ने उन्हें टिकट दी, लेकिन इनेलो कैंडिडेट ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद 5 अक्टूबर 2019 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।

TMC और AAP के नेता बने कांग्रेस छोड़ने के बाद अशोक तंवर ने 2021 में कुछ समय के लिए TMC जॉइन की। उस दौरान तंवर ने TMC का प्रचार किया और बंगाल की CM ममता बनर्जी को शेरनी बताया। तंवर ने 2022 में TMC को छोड़ दिया और AAP का दामन थाम लिया। यहां उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान AAP का प्रचार किया, लेकिन 2024 में तंवर ने AAP से भी त्यागपत्र दे दिया।

टिकट नहीं मिली तो भाजपा को भी छोड़ा इसके बाद तंवर ने दिल्ली जाकर BJP की सदस्यता ली। तंवर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हुए थे, इसलिए भाजपा ने उन्हें सिरसा से अपना उम्मीदवार बनाया। हालांकि, चुनाव में कांग्रेस की कैंडिडेट रहीं कुमारी सैलजा ने उन्हें हरा दिया।

लोकसभा चुनाव में हारने के बाद तंवर विधानसभा के लिए भी टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया। इसलिए, अब तंवर ने फिर से 3 अक्टूबर 2024 को कांग्रेस जॉइन कर ली। तंवर को एक समय राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। दलित समुदाय के नेता तंवर की कांग्रेस में वापसी से पार्टी को मजबूती मिल सकती है।

चुनाव से 36 घंटे पहले आखिर क्यों अशोक तंवर को लेकर आई कांग्रेस?

1. हुड्डा गुट द्वारा लगातार उपेक्षा से कुमारी सैलजा इतनी ज्यादा आहत हैं कि उन्हें मनाने के कोई उपाय काम नहीं आए। राहुल गांधी ने एक मंच पर हुड्डा और सैलजा का हाथ मिलाया, लेकिन बात नहीं बनी। सैलजा ने हाथ तो मिला लिया, लेकिन मन उनका नहीं मिला। अगले ही दिन उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा से अपनी बातचीत बंद होने का बयान दे दिया।

कांग्रेस सूत्र बताते हैं यह बात राहुल गांधी को पसंद नहीं आई। उन्होंने उस बयान के बाद ही हुड्डा से तंवर को पार्टी में लाने और सैलजा को किनारे रखने की बात शुरू की। इसमें कड़ी बने अजय माकन। फिर तंवर कांग्रेस के हो गए।

2. तंवर और हुड्डा का रिश्ता पहले से ही खराब है। इसके बावजूद हुड्डा तंवर को लाने पर इसलिए राजी हुए क्योंकि उन्हें आभास हो गया कि सैलजा की नाराजगी कांग्रेस पर भारी पड़ रही है। दलित वोटर कांग्रेस से टूट रहे हैं। ऐसे में दलित विरोधी छवि को कम करने के लिए तंवर को लाने पर हुड्डा सहमत हुए।

3. अशोक तंवर का दलितों में सैलजा की तरह असर नहीं है, लेकिन हुड्डा के लिए बड़ा शत्रु सैलजा हैं, तंवर नहीं। इसलिए बड़े शत्रु को निपटाने के लिए छोटे शत्रु से हुड्डा ने परहेज नहीं किया। सैलजा से नाराज राहुल गांधी और हुड्डा एक हो गए और सैलजा आउट हुईं, और तंवर अंदर आए।